रांची. झारखंड विधानसभा चुनाव में प्रचार जैसे-जैसे जोर पकड़ रहा है, मुसलमान का मुदा भी गरमाने लगा है. भाजपा के तमाम बड़े नेता लगातार किसी न किसी बहाने इस मुद्दे को उछाल रहे हैं. ताजा बयान राज्य के गोड्डा से लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे का है. दुबे का कहना है कि झारखण्ड की मुस्लिम आबादी में से 11 प्रतिशत “बांग्लादेशी घुसपैठिये” हैं. दुबे ने एक इंटरव्यू में कहा, “1951 में मुसलमानों की आबादी नौ प्रतिशत थी, आज 24 प्रतिशत है. देश में मुस्लिम आबादी चार फीसदी बढ़ी है, लेकिन हमारे संथाल परगना में 15 प्रतिशत बढ़ी है. ये 11 प्रतिशत बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं और झारखण्ड की सरकार उन्हें अपनाए हुए है.”
झारखंड में जब चुनावी माहौल जोर पकड़ ही रहा था, तभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने झारखंड के जमशेदपुर में बीजेपी की परिवर्तन रैली में मुस्लिम घुसपैठ का मुद्दा उठाया था. सितम्बर के मध्य में उन्होंने कहा था कि रोहिंग्या मुस्लिमों और बांग्लादेशियों की घुसपैठ संथाल परगना और कोल्हान के लिए असली खतरा बन कर उभर रहा है! उन्होंने सत्ताधारी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), कांग्रेस और राजद पर इस खतरे पर वोट बैंक की खातिर चुप्पी साधने का आरोप भी लगाया था. प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनाव के दौरान भी प्रचार में यह मुद्दा उठाया था. भाजपा ने तभी से इस मुद्दे को ठंडा नहीं पड़ने दिया है. जुलाई में अमित शाह ने भी एक बयान देकर मुद्दे को जिन्दा रखा.
जनजातीय आबादी करीब 16 फीसदी हुई कम
भाजपा न केवल मौखिक, बल्कि लिखित रूप से भी इस मुद्दे को हवा दे रही है. जुलाई में झारखण्ड भाजपा अध्यक्ष बाबू लाल मरांडी ने मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख कर इस मुद्दे को उठाया. इसमें उन्होंने आंकड़े देते हुए दावा किया कि साल 2031 तक संथाल परगना में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जायेंगे. हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि आबादी से जुड़ा उनका ताजा आंकड़ा और 2031 के लिए लगाये गए अनुमान का आधार क्या है? उधर, सितम्बर में प्रधानमंत्री के फिर से बयान देने के कुछ दिन पहले ही केन्द्रीय गृह मंत्रालय और UIDAI की ओर से झारखंड हाईकोर्ट में हलफनामा दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि राज्य के संथाल परगना इलाके में घुसपैठ बढ़ी है. इसमें दावा किया गया था कि राज्य में जनजातीय आबादी करीब 16 फीसदी कम हुई है.
प्रधानमंत्री के बयान के बाद शिवराज सिंह चौहान, हिमंता बिस्वा सरमा सहित कई भाजपा नेताओं ने यह मुद्दा उठाया और कहा कि राज्य में भाजपा की सरकार बनी तो एनआरसी लागू होगा. झारखण्ड बने 24 साल हुए हैं. इनमें से 13 साल भाजपा का ही राज रहा है. लेकिन उसकी मुश्किल यह है कि आदिवासी वोट उससे छिटक रहा है. माना जाता है कि इस स्थिति से निपटने के लिए वह मुस्लिम कार्ड खेल रही है.
आरक्षित सीटों पर “जीरो सक्सेस”
बीजेपी की असली चुनौती अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित 28 सीटों पर है. इन क्षेत्रों में राज्य के 28% मतदाता हैं। 2019 के चुनाव में बीजेपी को इन 28 सीटों में से केवल दो पर जीत मिली थी. उसके सत्ता से बाहर रहने का यह प्रमुख कारण बना था. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को सभी पांच आरक्षित सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। जुलाई 2023 में एक आदिवासी (बाबू लाल मरांडी) को राज्य बीजेपी का अध्यक्ष बनाने के बावजूद आदिवासी मतदाता उसके पाले में नहीं आए. इसलिए भाजपा ने मुस्लिम घुसपैठ को मुद्दा बना कर एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की है. एक तो वह राज्य के मूल मुस्लिम निवासियों को निशाना नहीं बना रही है. दूसरा, ऐसा कह कर कि मुस्लिम घुसपैठिये आदिवासियों की जमीन और महिलाओं को निशाना बना रहे हैं, आदिवासियों के हित की बात करने का संदेश दे रही है.
उत्साह के साथ बढ़ी चुनौती
लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन से भाजपा का उत्साह बढ़ा हुआ है. लोकसभा चुनाव में उसे करीब 50 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी. इस बढ़त को विधानसभा चुनाव में कायम रखना चुनौती होगी. इस चुनौती को आसान बनाने के लिए आदिवासी वोटर्स को अपने पाले में करना जरूरी होगा.
कोल्हान में किसी का साथ नहीं
कोल्हान क्षेत्र में 2019 में बीजेपी का पूरी तरह सफाया हो गया था. उसे 14 में से एक भी सीट नहीं मिली थी. तीन पूर्व आदिवासी मुख्यमंत्रियों—चंपाई सोरेन, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा—का साथ इस बार कोल्हान में उसे कितना फायदा दिला पाएगी, यह भी निश्चित नहीं है.
संथाल में भी बुरा हाल
संथाल परगना में भी बीजेपी के लिए चुनौती है। यहाँ की 18 सीटों में से जेएमएम ने 9 और कांग्रेस ने 4 सीटें 2019 में जीती थीं. इस जीत के पीछे आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय का मजबूत समर्थन था। इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए बीजेपी ‘रोटी, बेटी और माटी’ का नारा दे रही है, जिसमें “बांग्लादेशी घुसपैठियों” (यानी मुस्लिम समुदाय) पर उनकी बेटियों से शादी करने और उनकी जमीन और नौकरियां हथियाने का आरोप लगाया जा रहा है। संथाल परगना में दुमका, जामताड़ा, गोड्डा, साहेबगंज, पाकुड़ और देवघर के कुछ हिस्से शामिल हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की जनसंख्या में 68% हिंदू हैं.
झारखण्ड में मुस्लिम आबादी करीब 60 लाख (15 प्रतिशत) है. कुछ अहम क्षेत्र की बात करें तो एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकुड़ में 35.08 प्रतिशत मुस्लिम वोट हैं, राजमहल में 34.06 प्रतिशत, जामताड़ा में 38 प्रतिशत, गोड्डा में 27 प्रतिशत, मधुपुर में 25 प्रतिशत, गांडे में 23 प्रतिशत, टुंडी में 22 प्रतिशत, राजधनवार में 17 प्रतिशत, महगामा में 17 प्रतिशत और हटिया में 16 प्रतिशत मुस्लिम वोट हैं।
लाभार्थियों से खतरा
सत्ताधारी गठबंधन ने र्थियों का एक बड़ा वर्ग भी तैयार कर लिया है. जेल से रिहा होकर मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन ने कई कल्याणकारी योजनाएँ शुरू की हैं। अगस्त में उनकी सरकार ने मैय्या सम्मान योजना की शुरुआत की, जिसमें 18 से 50 साल की महिलाओं को 1,000 रुपये मासिक सहायता दी जा रही है। चुनाव की तारीखों की घोषणा से ठीक एक दिन पहले कैबिनेट ने दिसंबर से इस राशि को 2,500 रुपये प्रति माह करने का फैसला लिया। अन्य पहलों में 40 लाख परिवारों का 3,584 करोड़ रुपये का बकाया बिजली बिल माफ करना, गरीब परिवारों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली उपलब्ध कराना, और 1,76,977 किसानों का 400.66 करोड़ रुपये का कृषि ऋण माफ करना शामिल है। इन योजनाओं से लाभान्वित होने वालों की संख्या भी बड़ी है। केवल मैय्या सम्मान योजना के तहत 53 लाख लाभार्थी हैं, जो 2019 के विधानसभा चुनाव में डाले गए 1.5 करोड़ वोटों का लगभग एक तिहाई है और JMM-कांग्रेस-RJD गठबंधन को मिले कुल वोटों के बराबर है.
मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोपी भी मुसलमानों को नहीं दे रहे टिकट
मुसलमानों के नाम पर राजनीति हो रही है. सत्ताधारी गठबंधन पर भाजपा तुष्टिकरण के आरोप लगाती रही है, लेकिन राजनीति में मुस्लिम हाशिये पर ही हैं. जब से राज्य बना है, तब से उनकी राजनीतिक हैसियत बढ़ने के बजाय कम ही हुई है. 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मुसलमानों को पिछले चुनावों के मुकाबले सबसे कम टिकट दिया था. इस बार भी स्थिति कोई अलग नहीं है. झारखण्ड में 2005 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे। कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने मिलकर गठबंधन में चुनाव लड़ा था। उस समय कांग्रेस की ओर से पाँच मुस्लिम उम्मीदवार और JMM की ओर से चार मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे गए थे। इसी चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने भी पाँच मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था।
2009 के चुनाव में कांग्रेस ने झारखंड विकास मोर्चा (JVM) के साथ गठबंधन किया। कांग्रेस ने आठ मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया, जबकि JVM ने दो मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा। इस चुनाव में JMM और RJD ने भी चार-चार मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था। 2014 के चुनाव में सभी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। कांग्रेस की ओर से सात मुस्लिम उम्मीदवार, JMM से छह, JVM से छह और RJD की ओर से एक मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़े.
2019 के चुनाव में JMM, कांग्रेस और RJD ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा। इस गठबंधन में JMM ने चार, कांग्रेस ने तीन और RJD ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने झारखंड के किसी भी चुनाव में किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है. इस बार कांग्रेस ने अब तक दो मुस्लिम उम्मेदवार उतारे हैं. इस बीच झारखण्ड मुस्लिम राजनीति का नया अखाड़ा बना हुआ है. इसका परिणाम वोटों की गिनती के बाद दिखेगा.
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FIRST PUBLISHED :
October 28, 2024, 18:46 IST