Last Updated:December 03, 2025, 07:55 IST
Supreme Court on Talaq and Dowry सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 की व्याख्या ऐसे की जानी चाहिए, जिससे महिलाओं के सम्मान, समानता और आर्थिक सुरक्षा को मजबूती मिले.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तलाक और दहेज को लेकर एक बेहद अहम फैसला सुनाया.सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तलाक और दहेज को लेकर एक बेहद अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने परिवार की तरफ से शादी के वक्त उसे या उसके पति को दिए गए नकद, सोना, जेवर और दूसरे उपहारों को वापस पाने की हकदार है. कोर्ट ने इसे महिला की मालिकाना संपत्ति बताते हुए कहा कि शादी खत्म होने पर यह सब उसे लौटाया जाना अनिवार्य है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 की व्याख्या ऐसे की जानी चाहिए, जिससे महिलाओं के सम्मान, समानता और आर्थिक सुरक्षा को मजबूती मिले. बेंच ने इसके साथ ही कहा कि भारत के ग्रामीण और छोटे कस्बों में अब भी सामाजिक-आर्थिक और लैंगिक असमानताएं मौजूद हैं, ऐसे में कानून की व्याख्या करते समय महिलाओं की वास्तविक परिस्थितियों को ध्यान में रखना जरूरी है.
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा, ‘अदालतें संविधान के मूल्यों समानता, गरिमा और स्वायत्तता को आगे बढ़ाने वाली संस्थाएं हैं. इसलिए कानून की व्याख्या सामाजिक न्याय की भावना से जुड़े रहकर की जानी चाहिए.’
क्या कहता है कानून?
दरअसल 1986 के अधिनियम की धारा 3 तलाकशुदा मुस्लिम महिला को यह अधिकार देती है कि वह शादी से पहले, शादी के समय या शादी के बाद रिश्तेदारों, दोस्तों, पति या ससुराल पक्ष की तरफ से दिए गए सभी उपहार, जेवर, नकद और सामान वापस मांग सकती है.
कोर्ट ने 2001 के डेनियल लतीफी बनाम भारत संघ फैसले का हवाला देते हुए कहा कि तलाक के बाद मुस्लिम महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए यह कानून बनाया गया था.
कोर्ट ने पूर्व पति को क्या दिया आदेश?
इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला की याचिका स्वीकार करते हुए उसके पूर्व पति को 17,67,980 रुपये उसके बैंक खाते में जमा करने का आदेश दिया. यह राशि मेहर, दहेज, 30 भोरी सोने के आभूषण और अन्य उपहारों जैसे फ्रिज, टीवी, स्टेबलाइज़र, शोकेस, बॉक्स बेड और डाइनिंग सेट की कुल कीमत के रूप में निर्धारित की गई है.
अदालत ने कहा कि यह भुगतान छह सप्ताह के भीतर किया जाए और अनुपालन शपथपत्र भी दाखिल किया जाए, वरना पति को 9% सालाना ब्याज देना होगा.
हाईकोर्ट ने क्या सुनाया था फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में दिए गए कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें महिला को पूरी राशि देने से इनकार किया गया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने मामले को केवल सिविल विवाद की तरह देखा और कानून के सामाजिक उद्देश्यों को समझने में चूक की.
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि हाईकोर्ट ने विवाह रजिस्टर की एंट्री में की गई सुधार की पुष्टि करने वाले गवाहों की गवाही को अनदेखा कर दिया और मामले को गलत दिशा में ले लिया.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न सिर्फ एक महिला के अधिकारों को बहाल करता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं की संपत्ति और सम्मान पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता. यह निर्णय महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है.
About the Author
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
December 03, 2025, 07:55 IST

31 minutes ago
