Last Updated:July 21, 2025, 18:58 IST
Rajasthan Politics : थप्पड़कांड में आठ महीने जेल में रहकर आए नरेश मीणा ने बाहर आते ही अपनी सियासी शतरंज को बिछाना शुरू कर दिया है. बारां में उन्होंने भगत सिंह के फोटो पर खून से तिलक कर खूब सियासी ड्रामेबाजी की....और पढ़ें

हाइलाइट्स
नरेश मीणा ने जेल से रिहाई के बाद सियासी सक्रियता बढ़ाई.मीणा ने भगत सिंह की फोटो पर खून से तिलक कर सियासी ड्रामा किया.अंता उपचुनाव में नरेश मीणा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागी.जयपुर. राजस्थान की राजनीति में आजकल थप्पड़बाज नरेश मीणा चर्चा में बने हुए हैं. टोंक जिले के देवली उनियारा विधानसभा सीट उपचुनाव में एसडीएम को थप्पड़ मारकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए नरेश मीणा आठ महीने से ज्यादा समय तक जेल में रहे. लंबी कानूनी लड़ाई और प्रकिया से गुजरने के बाद हाल ही में उन्हें हाईकोर्ट से जमानत मिली थी. जमानत पर बाहर आते ही वे उस समरावता गांव गए जहां उन्होंने एसडीएम को थप्पड़ मारा था. उस दिन उन्होंने कहा कि वे जमानत पर हैं लिहाजा माला आदि नहीं पहनेंगे. लेकिन उसके बाद हाल ही में वे बारां में गए और वहां उन्होंने शहीद भगत सिंह की फोटो पर अपने खून से तिलक कर पूरी राजनीतिक ड्रामेबाजी की.
मीणा बारां जिले के कवाई इलाके के रहने वाले हैं. बारां जिले के छबड़ा से पहले साल 2023 में विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. लेकिन हार गए थे. बारां जिले की ही अंता सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी से विधायक बने कंवरलाल मीणा को करीब 20 साल पुराने केस में सजा हो जाने के कारण उनकी विधायकी चली गई. अंता सीट अभी खाली है. इस पर उपचुनाव होने हैं. राजनीति के जानकारों के अनुसार जेल से बाहर आते ही नरेश मीणा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा फिर से जाग उठी है. थप्पड़ कांड में जेल जाने के बाद उनके पक्ष एक लहर चली थी. वे इस लहर पर सवार होकर बीते आठ महीने से चर्चा में बने हुए हैं. अब वे इससे भुनाना चाहते हैं.
Tonk SDM Thappad Kand: 8 महीने बाद जेल से बाहर आए नरेश मीणा, सीधे समरावता पहुंचे, जानें क्यों?
आखिर नरेश मीणा ऐसा क्यों कर रहे हैं?
जमानत होने के बाद उनकी सक्रियता ने कई सवाल खड़े किए हैं. आखिर नरेश मीणा ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या यह उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, सामाजिक समीकरणों का दबाव या राजस्थान की राजनीति में बदलते समीकरणों का परिणाम है? दरअसल नरेश मीणा का राजनीतिक सफर राजस्थान यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति से शुरू हुआ था. वहां उन्होंने एनएसयूआई के तहत अपनी पहचान बनाई. राजस्थान विवि छात्रसंघ चुनाव में महासचिव का पद जीतकर उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया.
स्थानीय समीकरणों को अपने पक्ष में करने की कोशिश
मीणा समाज राजस्थान में एक प्रभावशाली समुदाय है. खासकर देवली-उनियारा और अंता जैसे क्षेत्रों में उनकी ताकत का आधार रहा है. उनके परिवार की राजनीतिक विरासत भी मजबूत है. हालांकि कांग्रेस पार्टी के भीतर बार-बार टिकट न मिलना उनके लिए सबसे बड़ा झटका रहा. 2024 के उपचुनाव में भी टिकट कटने के बाद उन्होंने देवली उनियारा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. लेकिन फिर हार गए. इससे साफ है कि उनकी बगावत पार्टी नेतृत्व के खिलाफ थी. उनकी यह रणनीति मीणा समाज के बीच अपनी पैठ को मजबूत करने और स्थानीय समीकरणों को अपने पक्ष में करने की कोशिश थी.
थप्पड़ कांड से बनी आक्रामक छवि
समरावता गांव में मतदान के दौरान नरेश मीणा की ओर से एसडीएम को थप्पड़ मारने की घटना ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया. इसमें उन्होंने प्रशासन पर फर्जी वोटिंग का आरोप लगाया. इससे उनकी आक्रामक छवि को और मजबूत मिली. उनके समर्थकों का दावा है कि यह कदम स्थानीय ग्रामीणों के मतदान के बहिष्कार और प्रशासन के कथित दबाव के जवाब में उठाया गया. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह एक आवेगपूर्ण कदम था या सोची-समझी रणनीति?
जन क्रांति यात्रा उनके फोकस को क्लियर कर रही है
नरेश मीणा की यह छवि उन्हें एक दबंग और बागी नेता के रूप में स्थापित करती है जो स्थानीय समुदाय, खासकर मीणा समाज के बीच लोकप्रियता हासिल करने में मददगार साबित हुई. उनके समर्थकों ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन किए. इससे साफ है कि उनकी इस छवि ने उन्हें एक सामुदायिक नायक के रूप में पेश किया. उनकी हालिया जन क्रांति यात्रा विशेष रूप से गुर्जर-मीणा-धाकड़ जैसे जातीय समीकरणों वाले क्षेत्रों में उनकी रणनीति को और साफ करती है.
दीर्घकालिक राजनीतिक रणनीति पर काम कर रहे हैं
नरेश मीणा का व्यवहार उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा, सामुदायिक समीकरणों का लाभ उठाने की रणनीति और राजस्थान की राजनीति में अपनी जगह बनाने की कोशिश का परिणाम है. उनकी आक्रामक छवि और बगावती रुख ने उन्हें मीणा समाज और अन्य समुदायों में लोकप्रिय बनाया, लेकिन यह उनके लिए दोधारी तलवार भी है. जेल से रिहाई के बाद उनकी सक्रियता और बयानबाजी यह संकेत देती है कि वे अब एक दीर्घकालिक राजनीतिक रणनीति पर काम कर रहे हैं. अंता उपचुनाव उनके लिए एक नया अवसर हो सकता है. लेकिन उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे अपनी छवि को कितना संतुलित कर पाते हैं. बहरहाल राजनीतिक दांवपेंच जारी है.
(इनपुट-विपिन तिवारी बारां)
संदीप ने 2000 में भास्कर सुमूह से पत्रकारिता की शुरुआत की. कोटा और भीलवाड़ा में राजस्थान पत्रिका के रेजीडेंट एडिटर भी रह चुके हैं. 2017 से News18 से जुड़े हैं.
संदीप ने 2000 में भास्कर सुमूह से पत्रकारिता की शुरुआत की. कोटा और भीलवाड़ा में राजस्थान पत्रिका के रेजीडेंट एडिटर भी रह चुके हैं. 2017 से News18 से जुड़े हैं.
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Jaipur,Jaipur,Rajasthan