दल-बदल करने वालों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, तेलंगाना स्पीकर को दी चेतावनी...

23 hours ago

Last Updated:July 31, 2025, 15:56 IST

तेलंगाना में कांग्रेस में शामिल हुए BRS के 10 विधायकों की अयोग्यता पर सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को तीन महीने में फैसला लेने का आदेश दिया है. अदालत ने देरी पर नाराजगी जताई और लोकतंत्र बचाने की बात कही.

दल-बदल करने वालों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, तेलंगाना स्पीकर को दी चेतावनी...सुप्रीम कोर्ट

हाइलाइट्स

सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर को तीन महीने में फैसला सुनाने को कहा.कोर्ट ने विधायकों की देरी पर नाराजगी जताते हुए चेतावनी दी.कांग्रेस में गए BRS विधायकों की अयोग्यता पर अब तेजी से सुनवाई होगी.

नई दिल्ली- तेलंगाना की राजनीति इन दिनों फिर सुर्खियों में है. वजह है 10 ऐसे विधायक जिन्होंने चुनाव तो एक पार्टी से लड़ा था लेकिन जीतने के बाद किसी और पार्टी में चले गए. अब इन नेताओं की सदस्यता खतरे में पड़ गई है, क्योंकि मामला देश की सबसे बड़ी अदालत तक पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर बड़ा और सख्त फैसला सुनाया है.

2023 में तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हुए थे. इस चुनाव में भारत राष्ट्र समिति (BRS), जो पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के नाम से जानी जाती थी, हार गई. कांग्रेस को बहुमत मिला और वह सरकार बनाने में सफल रही. चुनाव खत्म होने के कुछ महीनों बाद ही BRS के 10 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए. यानी उन्होंने अपनी पुरानी पार्टी को छोड़ दिया और नई पार्टी की तरफ ‘पाला बदल’ लिया. इनमें से एक विधायक तो 2024 का लोकसभा चुनाव भी कांग्रेस के टिकट पर लड़ चुके हैं.

दल-बदल पर क्या है नियम?
भारत के संविधान में एक खास कानून है जिसे ‘दसवीं अनुसूची‘ यानी एंटी-डिफेक्शन लॉ कहते हैं. इसका मतलब होता है कि कोई भी विधायक या सांसद अगर अपनी पार्टी से चुना गया है, तो वह बिना इस्तीफा दिए दूसरी पार्टी में नहीं जा सकता. अगर वह ऐसा करता है, तो उसे अयोग्य (डिसक्वालिफाई) करार दिया जा सकता है और उसकी सीट जा सकती है.

लेकिन इस कानून पर फैसला लेने का अधिकार होता है विधानसभा अध्यक्ष (Speaker) के पास. यही वजह है कि इन 10 विधायकों के खिलाफ BRS ने स्पीकर के पास शिकायत की थी. लेकिन स्पीकर ने इस पर कोई जल्दी फैसला नहीं लिया.

जब बात कोर्ट तक पहुंची
स्पीकर की इस चुप्पी के खिलाफ कुछ लोगों ने हाईकोर्ट का रुख किया. हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने कहा कि स्पीकर को तय समय के भीतर फैसला लेना चाहिए. लेकिन बाद में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस फैसले को पलट दिया और कहा कि कोर्ट स्पीकर को समय तय करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता.

अब मामला सुप्रीम कोर्ट में गया. सुप्रीम कोर्ट ने डिवीजन बेंच का फैसला खारिज कर दिया और सिंगल बेंच की बात को सही ठहराया. कोर्ट ने साफ कहा कि तीन महीने के अंदर स्पीकर को इन 10 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेना ही होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर वक्त रहते इस तरह के मामलों का निपटारा नहीं हुआ तो लोकतंत्र को नुकसान हो सकता है. कोर्ट ने कहा कि हम ऐसा नहीं होने दे सकते कि ‘ऑपरेशन सफल हो लेकिन मरीज मर जाए’ मतलब अगर फैसला देर से आया तो उसका असर ही खत्म हो जाएगा.

कोर्ट ने पुराने सांसदों और नेताओं की बातों का हवाला देते हुए कहा कि जब ये कानून बनाया गया था, तब भी यही चिंता थी कि ऐसी घटनाएं लोकतंत्र की नींव को हिला सकती हैं. अदालत ने यह भी कहा कि विधानसभा अध्यक्ष भले ही ट्रिब्यूनल की तरह काम करते हों, लेकिन वे सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की निगरानी से बाहर नहीं हैं. यानी उनके फैसले या उनकी चुप्पी को भी चुनौती दी जा सकती है.

क्यों मायने रखता है यह फैसला?
भारत में पहले भी कई बार हुआ है कि विधायक या सांसद अपनी पार्टी छोड़कर किसी और पार्टी में शामिल हो गए. कई बार यह सिर्फ सत्ता के लालच में होता है, जिससे सरकारें गिर जाती हैं या बहुमत का खेल बदल जाता है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बहुत अहम है.

कोर्ट ने साफ कहा कि संसद को भी इस कानून की प्रक्रिया पर फिर से सोचने की जरूरत है. आजकल कई बार देखा गया है कि विधानसभा अध्यक्ष जानबूझकर इन मामलों को टालते हैं, ताकि उनकी पार्टी को फायदा हो. ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह लोकतंत्र की सेहत के लिए खतरनाक है.

तेलंगाना की सियासत में क्यों आया भूचाल?
तेलंगाना की राजनीति में यह विवाद तब शुरू हुआ जब कांग्रेस ने 2023 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की. कांग्रेस को 119 में से 64 सीटें मिलीं, जबकि BRS सिर्फ 39 सीटों पर सिमट गई. इससे पहले BRS के पास 88 सीटें थीं.

चुनाव के बाद BRS के 10 विधायक कांग्रेस में चले गए, जिससे विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस सत्ता में आकर BRS के विधायकों को अपनी तरफ खींच रही है. और अगर स्पीकर ने जल्दी कार्रवाई नहीं की, तो और भी विधायक पाला बदल सकते हैं.

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