दादा हैं शिंदे से कच्चे खिलाड़ी, भाजपा से डील में पड़े कमजोर, वरना होते CM!

2 hours ago

Maharashtra Election Result: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के रिजल्ट आने के चार दिन बाद भी अभी तक वहां नई सरकार के गठन पर कोई फैसला नहीं हो पाया है. मंगलवार 26 नवंबर को राज्य विधानसभा का कार्यकाल भी खत्म हो गया. एकनाथ शिंदे ने सीएम पद से इस्तीफा भी दे दिया. इस बीच महायुती को शानदार जीत मिलने के बाद गठबंधन के भीतर सीएम पद को लेकर तकरार बना हुआ है. महायुती में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी है और उसके पास 132 सीटें हैं. जबकि शिवसेना नेता और सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया और महायुती को जबर्दस्त जीत मिली.

ऐसे में सीएम पद की रेस में भाजपा के देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे हैं. लेकिन गठबंधन के एक और अहम चेहरे अजित पवार का नाम कहीं नहीं लिया जा रहा है. जबकि राजनीतिक रूप से अजित पवार अपने दोनों साथी नेता में सीनियर हैं. प्रशासनिक अनुभव के मामले में वह सब पर भारी हैं. वह 1982 से सार्वजनिक जीवन में हैं. वह पांच बार के उपमुख्यमंत्री हैं. सबसे पहले वह पृथ्वीराज चव्हाण के मुख्यमंत्री काल में डिप्टी सीएम बनाए गए थे. ऐसे में कई बार इच्छा जता चुके हैं कि वह भी सीएम बनना चाहते हैं.

सबसे सीनियर
खैर यह अलग बात है. इस बार भी वह महायुति गठबंधन में है. उनके पास 42 विधायक हैं. इसकी पूरी संभावना है कि वह छठी बार डिप्टी सीएम की कुर्सी संभालें. वह अब 65 वर्ष के हो चुके हैं. दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे हैं. वह 60 साल के हैं. वह प्रशासनिक और राजनीतिक अनुभव में अजित पवार से जूनियर हैं लेकिन, अपनी शानदार बार्गेनिंग पावर की बदौलत करीब ढाई साल तक महाराष्ट्र के सीएम रहे.

दरअसल हम यहां दोनों नेताओं की तुलना इसलिए कर रहे हैं क्योंकि दोनों में काफी समानताएं हैं. दोनों ने एक फैमिली पार्टी को तोड़कर अपनी राह खुद बनाई है. वैसे एक मौका था जब अजित पवार के पास सीएम बनने का चांस था. अगर उन्होंने भाजपा के साथ बेहतर डील की होती तो वह राज्य के सीएम बन गए होते. जिस तरह से एकनाथ शिंदे ने भाजपा के साथ डील कर जून 2022 में राज्य में सीएम की कुर्सी हासिल कर ली. और ऐसा संभव था कि उनके सीएम बनने पर उनके गुरु और चाचा शरद पवार भी नाराज नहीं होते.

बात नवंबर 2019 की
यह बात 23 नवंबर 2019 की है. उस वक्त एनसीपी दोफाड़ नहीं हुई थी. शरद पवार के बाद अजित पवार एनसीपी के दूसरे सबसे बड़े नेता थे. पार्टी प्रदेश संगठन में उनकी तूती बोलती थी. फिर उन्होंने 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शरद पवार की अनुमति के बगैर भाजपा के साथ डील कर सरकार बना ली. उस वक्त एनसीपी के पास 54 विधायक थे. उन्होंने 23 नवंबर 2019 को रातोंरात देवेंद्र फडणवीस के साथ सरकार बनाई और डिप्टी सीएम बन गए. हालांकि वह सरकार तीन दिनों में ही गिर गई. शरद पवार नहीं माने और अजित के पाले में गए विधायकों को वापस बुला लिया. यह एक ऐसा मौका था जब वह भाजपा के साथ कड़ी डील कर सकते थे. हालांकि भाजपा द्वारा सीएम की कुर्सी नहीं छोड़ेने के कारण ही उसका शिवसेना के साथ गठबंधन टूटा था.

एकनाथ शिंदे आगे निकले
अब आप सोच रहे होंगे कि यह कैसे हो सकता था. लेकिन, यह हो सकता था. क्योंकि चंद महीनों बाद भाजपा ने यह बात मान ली. भाजपा ने शिवसेना को तोड़कर आए एकनाथ शिंदे को सीएम की कुर्सी थमा दी, जबकि उनसे पास करीब 40 विधायक थे. अजित पवार उस वक्त भी पिछड़ गए. वह चुनाव नतीजे आने के बाद से ही भाजपा के साथ जाना चाहते थे, लेकिन चाचा शरद पवार की वजह से वह ऐसा नहीं कर पाए थे. अंततः उन्होंने जुलाई 2023 वही काम किया जो नवंबर 2019 में किया था. एनसीपी के एक बड़े धड़े को अपने साथ लेकर वह महायुती में शामिल हो गए.

महायुति में एकनाथ शिंदे की शिवसेना के पास भी 40 विधायक थे और अजित की एनसीपी के पास भी 40 विधायक. लेकिन, एकनाथ शिंदे ने सही समय पर भाजपा के साथ सही डील की और वह बड़ी पार्टी और बना नेता बन गए जबकि अजित पवार इस खेल में पिछड़ गए. नवंबर 2019 में अगर अजित पवार भाजपा के साथ डील में सीएम की कुर्सी हासिल करने में सफल हो गए होते तो आज महाराष्ट्र और एनसीपी की राजनीति कुछ अलग होती.

Tags: Ajit Pawar, Devendra Fadnavis, Eknath Shinde, Maharashtra Elections

FIRST PUBLISHED :

November 27, 2024, 12:05 IST

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