दिल्ली की उस मुख्यमंत्री की कहानी, जिनकी प्याज की वजह से चली गई कुर्सी

13 hours ago

हाइलाइट्स

1998 में प्याज की बढ़ती कीमतों ने गिरा दी दिल्ली में सुषमा स्वराज की सरकारचुनाव से महज दो माह पहले बीजेपी ने कद्दावर नेता स्वराज को मुख्यमंत्री बनायासुषमा स्वराज को आगे करने के बाद भी BJP अपना सियासी किला नहीं बचा पायी

Sushma Swaraj: क्या किसी सब्जी के दाम किसी सरकार को गिरा सकते हैं? ये सुनने में तो अटपटा लगता है, लेकिन जब दिल्ली की राजनीति का इतिहास पलटकर देखेंगे तो पाएंगे कि यह हकीकत है. साल 1998 में प्याज की बढ़ती कीमतों ने दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज की सरकार गिरा दी थी. सुषमा स्वराज मुख्यमंत्री बनने के बाद राजधानी में कानून व्यवस्था को लेकर बेहद सजग थीं. उनका मानना था कि राजधानी में लड़कियां सुरक्षित रहें. उनका यह प्रयास सफल भी रहा. उनके कार्यकाल में दिल्ली में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में कमी आई, लेकिन अचानक प्याज के दामों में हुई बढ़ोतरी के कारण राजधानी की जनता ने उन्हें नकार दिया. 

साल 1993 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दिल्ली में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी. उस समय बीजेपी के दिग्गज नेता मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बने. 1996 में मदन लाल खुराना की जगह साहिब सिंह वर्मा को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया. मदन लाल खुराना दो साल 86 दिन तक मुख्यमंत्री पद पर रहे. हालांकि साहिब सिंह वर्मा भी अपना बचा हुआ कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. विधानसभा चुनाव से महज दो महीने पहले बीजेपी ने अपनी कद्दावर महिला नेता सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बना दिया. उन्होंने काफी कम समय के लिए दिल्ली की गद्दी संभाली थी, लेकिन, प्याज की कीमतों ने उनसे वह मौका भी छीन लिया.

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सीएम बनने से पहले केंद्र में मंत्री थीं सुषमा
बीजेपी ने जब साल 1998 में सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाने का दांव खेला तो उस समय वह अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र सरकार में सूचना-प्रसारण और दूरसंचार मंत्री थीं. उनके पास राज्य सरकार में भी काम करने का अनुभव था. वह हरियाणा में कैबिनेट मंत्री रह चुकी थीं. उस समय प्याज की बढ़ती कीमतें केवल दिल्ली में नहीं बल्कि पूरे देश में लोगों को रुला रही थीं. प्याज की कीमतों को लेकर विपक्ष भी दिल्ली की बीजेपी सरकार को घेरने लगा. बीजेपी आलाकमान ने हालात को काबू करने के लिए साहिब सिंह वर्मा की जगह सुषमा स्वराज को दिल्ली की अगुआई करने का मौका दिया. 

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स्वराज ने हालात संभालने की कोशिश की
सुषमा स्वराज ने कमान संभालने के बाद प्याज की कीमतों को कम करने को लेकर कई प्रयास किए. उन्होंने जनता को पांच रुपये किलो के हिसाब से प्याज मुहैया कराने का भी वादा किया. लेकिन वो ऐसा करने में असफल रहीं. उनका कोई भी प्रयास सफल नहीं रहा. नतीजा यह हुआ कि आम जनता की नजर में सरकार की विश्वसनीयता घटती चली गई. जबकि सुषमा स्वराज को दिल्ली की राजनीति में भाजपा का ट्रंप कार्ड माना जा रहा था.

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शीला के आने से दिलचस्प हुई सियासी जंग
कांग्रेस ने सुषमा स्वराज के खिलाफ एक अन्य महिला नेता शीला दीक्षित पर दांव लगाया. कांग्रेस ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की बागडोर शीला दीक्षित को सौंप दी. उत्तर प्रदेश के एक नामी राजनीतिक परिवार की बहू शीला दीक्षित ने दिल्ली में कांग्रेस संगठन को सक्रिय कर खुद को सुषमा स्वराज के विकल्प के तौर पर स्थापित किया. इस तरह से दिल्ली की सियासी जंग दिलचस्प हो चली थी. शीला दीक्षित का जादू दिल्ली पर इस कदर छाया कि सुषमा स्वराज को आगे करने के बाद भी भाजपा अपना सियासी किला नहीं बचा पायी. उसके बाद की कहानी से तो सभी वाकिफ हैं. शीला दक्षित उसके बाद 2014 तक लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं.   

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शीला ने लगाई सीएम बनने की हैट्रिक
सुषमा स्वराज दिल्ली में सरकार तो नहीं बचा सकी थीं, लेकिन उन्होंने अपनी विधानसभा सीट जीत ली थी. दिल्ली की जनता द्वारा नकार दिए जाने बावजूद वो दिल्ली की राजनीति से बराबर जुड़ी रहीं. उस समय दिल्ली बीजेपी में  लालकृष्ण आडवाणी, मदनलाल खुराना, अरुण जेटली, विजय कुमार मल्होत्रा के साथ सुषमा स्वराज का नाम प्रमुखता से लिया जाता था. प्याज की बढ़ती कीमत और महंगाई के कारण बीजेपी केवल 15 सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस को 52, जनता दल को एक और निर्दलीयों को दो सीटें मिलीं. 1993 के बाद भाजपा कभी दिल्ली में सत्ता में वापसी नहीं कर सकी.

Tags: Arvind kejriwal, Delhi Elections, Sheila Dikshit, Sushma Swaraj

FIRST PUBLISHED :

January 9, 2025, 13:06 IST

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