नादान है वह जो उन्हें नादान समझते हैं..तेज प्रताप किनारे तो 'राजद का राजा कौन?

4 hours ago

पटना. समाजवादी राजनीति का बड़ा चेहरा रहे लालू प्रसाद यादव ने वर्ष 2013 में पटना की परिवर्तन रैली में अपने परिवार को राजनीति में आगे बढ़ना शुरू किया. यहां अपने दोनों बेटे तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव को उन्होंने लॉन्च कर दिया.जनता के सामने अपने दोनों बेटों को लाने के बाद से ही यह क्लियर होने लगा था कि उनकी विरासत कौन संभालेगा. हालांकि, तब इसमें थोड़ा वक्त था और लालू यादव जांचना परखना चाहते थे कि किस पर वह भरोसा कर सकते हैं. दोनों भाइयों (तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव) के उम्र में केवल एक साल का अंतर है. तेज प्रताप यादव बड़े लालू यादव के बड़े बेटे हैं तो तेजस्वी यादव छोटे. लेकिन, लालू यादव परिवार के करीब रहने वाले पत्रकार बताते रहे हैं कि हमेशा से उनके दिल के करीब तेजस्वी यादव रहे हैं. हालांकि, माता राबड़ी देवी का यह हमेशा ही प्रयास रहा है कि कभी भी तेज प्रताप यादव को कभी भी उपेक्षा का अनुभव न हो.

लालू यादव के चारा घोटाला केस में फंसने और लगातार कोर्ट के चक्कर में फंसे रहने के कारण एक दौर आरजेडी के राजनीतिक अवसान का भी आया जब नीतीश कुमार की राजनीतिक रूप से परवान पर थे. वर्ष 2010 के विधान सभा चुनाव में आरजेडी की करारी हार और जेडीयू-बीजेपी की प्रचंड जीत से लालू यादव को रणनीति बदलनी पड़ी. समय बीतता गया और वर्ष 2013 में तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव की लॉंचिंग के साथ ही बिहार की राजनीति में बदलाव होना शुरू हुआ. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू यादव की करीबी हो गई और सियासत के समीकरण बदल गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जबरदस्त लोकप्रियता के बावजूद वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव और नीतीश कुमार की जोड़ी कमाल कर गई और महागठबंधन ने प्रचंड जीत प्राप्त की. दोनों भाइयों (तेज प्रताप यादव-तेजस्वी यादव) ने चुनाव जीताऔर विधानसभा पहुंच गए. अब बात उपमुख्यमंत्री और मंत्री बनने की आई तो दोनों ही भाइयों के बीच की अदावत सामने आ गई.

और तेजप्रताप यादव के मन में उपेक्षा का भाव घर कर गया

दरअसल, तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया और इसके बाद तेज प्रताप यादव स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए. बड़ा भाई होने के नाते परंपरागत रूप से उपमुख्यमंत्री का पद तेज प्रताप यादव को जाना था, लेकिन तेजस्वी यादव के उमुख्यमंत्री बनने के बाद तेज प्रताप यादव ने बड़े भाई की भूमिका निभाई और अपनी पीड़ा पचा गए. हालांकि, वह खुश नहीं थे यह सभी जानते थे.लालू यादव के परिवार के करीब रहने वाले मीडिया जगत के लोगों का कहना है कि यही वह समय था जब उनके मन में उपेक्षा का भाव घर करने लगा था. बाद के दौर में दोनों भाइयों के बीच में सामने से तो कोई कड़वाहट नहीं दिखती, लेकिन राजनीति के गलियारों में रहने वाले लोग दोनों भाइयों के बीच अंदर ही अंदर दुराव महसूस करते रहे.

तेज प्रताप को आरजेडी में अपनी हैसियत का अहसास होने लगा

बात आगे बढ़ती गई और खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ राजनीति भी चलती रही. उपेक्षा और अपेक्षा के बीच सियासी कहानी भी निकलती रही. बीतते वक्त के साथ समय आ गया वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव का. तब तेज प्रताप यादव स्वयं को फुल पावर में समझते थे. उन्होंने अपने पसंद के लोगों को टिकट देने के लिए वादा भी कर लिया था. लेकिन, यहां से तेज प्रताप को आरजेडी में अपनी हैसियत का अहसास होने लगा. इस चुनाव में कैंडिडेट चयन में उनकी एक न चली. तब तेज प्रताप यादव ने राष्ट्रीय जनता दल के संरक्षक पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया- ‘नादान है वह जो उन्हें नादान समझते हैं’!

तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के बीच राजनीतिक दूरी.

तेज प्रताप यादव को इग्नोर करते हुए तेजस्वी यादव ने लिया फैसला

बात बिगड़ती गई और तेजस्वी यादव अपनी चलाने पर अड़े रहे. तत्काल ही राजद की ओर से घोषणा कर दी गई कि तेज प्रताप यादव के ससुर पूर्व मंत्री चंद्रिका राय सारण से राजीव प्रताप रूडी के सामने चुनाव लड़ेंगे. बता दें कि यह वही समय था जब तेज प्रताप यादव का उनकी पत्नी ऐश्वर्या राय से बिगाड़ हो चुका था और तलाक की अर्जी पड़ चुकी थी. बावजूद इसके तेज प्रताप यादव को इग्नोर करते हुए तेजस्वी यादव ने लालू यादव की सहमति से उनके ससुर (चंद्रिका राय) को सारण से टिकट दिया जाना उन्हें नागवार गुजरा. तब इस चर्चा ने भी खूब जोर पकड़ा था कि तेज प्रताप यादव स्वयं अपने ससुर के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. लेकिन, बिगड़ती स्थिति को बाद में संभाल लिया गया और सब ठंडा पड़ गया.

अर्जुन उड़ जाते थे और हम रह जाते थे जमीन पर-तेज प्रताप यादव

हालांकि, आरजेडी पर तेजस्वी यादव के एकाधिकार के बीच तेजप्रताप यादव की छटपटाहट भी राजनीतिक और पारिवारिक सतह पर दिखती रही. बड़ा भाई होना और छोटे को छोड़ देना, शायद तेज प्रताप यादव इस द्वंद्व में रहे तभी तो मई 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी पीड़ा इन शब्दों में बयां की. तेज प्रताप यादव ने तब तेजस्वी यादव के सामने ही मंच पर कहा, हमेशा से हम व्याकुल रहे कि तेजस्वी जी के साथ, जो हमारे अर्जुन हैं उनके कार्यक्रम में जाएं, लेकिन ये पहले ही हेलीकॉप्टर से उड़ जाते थे और हम रह जाते थे जमीन पर. जाहिर है तेजप्रताप के इस बयान से साफ था कि अपने छोटे भाई तेजस्वी के साथ हर वक्त साथ होना चाहते थे, लेकिन तेजस्वी ने तेजप्रताप से दूरी बना रखी थी.

वर्ष 2029 लोकसभा चुनाव के दौरान नालंदा की सभा में तेज प्रताप यादव ने अर्जुन और कृष्ण की कहानी सुनाई थी.

दोनों भाइयों के बीच की दूरी तब भी दिखी जब…

यहां यह भी बता दें कि लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव खुद को अक्सर कृष्ण कहते रहे हैं और छोटे भाई तेजस्वी यादव को अर्जुन. अगर महाभारत के संदर्भों से देखें तो प्राय: अर्जुन भगवान कृष्ण की हर बात मान लेते हैं, भले ही वह तर्क भी करते थे. लेकिन, लालू परिवार के महाभारत में स्थिति विपरीत लग रही है, क्योंकि यहां कृष्ण (तेज प्रताप) उपेक्षित दिख रहे हैं और अर्जुन (तेजस्वी) ही नेतृत्व की भूमिका में हैं. खटास की कहानी का एक वाकया थोड़ा पीछे वर्ष 2019 के ही जनवरी में भी दिखा था. दोनों भाइयों के बीच की दूरी तब भी दिखी जब 26 जनवरी, 2019 को जब तेज प्रताप यादव आरजेडी कार्यालय जा रहे थे तो मेन गेट में ताला जड़ दिया गया था. हालांकि, तेज प्रताप ने इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे को जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन सियासी गलियारों में यही चर्चा थी कि ऐसा तेजस्वी यादव के कहने पर ही किया गया था.

मीसा भारती को शायद इस बात की भनक लग गई थी!

दरअसल, तेजस्वी यादव आरजेडी मेंअपना कद बढ़ाते चले गए, जबकि बहन मीसा भारती और तेजप्रताप एक तरह से किनारे पड़ गए. तेजप्रताप यादव, तेजस्वी यादव और मीसा भारती के बीच कुछ ऐसे ही वाकयों को देखा जाए तो तेजप्रताप की छटपटाहट साफ दिखती रही. वर्ष 2018 में जब 2019 की लोकसभा चुनाव की तैयारियां हो रही थीं तो मीसा भारती को शायद इस बात की भनक लग गई थी कि भाई वीरेंद्र को पाटलिपुत्र से उतार कर उन्हें किनारे करने की कोशिश की जा रही है. इसीलिए उन्होंने तब तल्खी में कहा था, अगर कोई सामने से लड़ेगा तो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तरह लड़ेंगे, लेकिन पीठ में कोई खंजर घोंपेगा तो हम बर्दाश्त नहीं करेंगे, चाहे वह पार्टी का कार्यकर्ता क्यों न हो.

2019 लोकसभा चुनाव में तेज प्रताप यादव और मीसा भारती ने उपेक्षा का दंश झेला.

संदेश यह गया कि कमान अपने हाथों में लेना चाहते हैं…

इसके बाद एक वाकया 16 दिसंबर 2018 का है जब तेजप्रताप बेहद ही तल्ख तेवर के सात आरजेडी ऑफिस पहुंचे, मीटिंग ली और विरोधियों के खिलाफ हुंकार भरते हुए जंग का ऐलान कर दिया. इससे ये संकेत साफ निकलकर आया था कि तेजप्रताप पार्टी की कमान खुद लेना चाहते थे.लेकिन, राह की बाधा तो लालू यादव थे यह भी वह जानते थे और वह अपने पिता के आज्ञाकारी पुत्र रहे हैं, यह सभी जानते हैं. दिसंबर 2018 में जब तेजप्रताप यादव ने ये घोषणा की कि वो बिहार के सभी 40 लोकसभा क्षेत्रों में बदलाव यात्रा निकालेंगे तो सियासी गलियारों में हलचल मच गई थी. संदेश यह गया कि कमान अपने हाथों में लेना चाहते हैं. लेकिन, सामने से कमान लालू यादव के हाथ में थी तो वह कुछ कर भी नहीं सकते थे.

सियासत के संघर्ष में तेजस्वी यादव अपने बड़े भाई पर भारी पड़े

हालांकि, सभी यही जानते थे कि तेजस्वी यादव अब उस रोल में आ चुके थे जो वालू यादव चाहते थे. 13 मई 2019 को वह किस्सा सामने आया जिसका जिक्र हम ऊपर कर चुके हैं जब नालंदा की एक चुनावी सभा में तेजप्रताप ने तेजस्वी के सामने ही मंच पर कहा कहा था कि हमारे अर्जुन उड़ जाते थे और हम जमीन पर रह जाते थे.विरासत की सियासत के संघर्ष में तेजस्वी यादव अपने बड़े भाई पर तब ही भारी दिखने लगे थे जब 28 मार्च को तेजप्रताप ने छात्र राजद के संरक्षक पद से भी इस्तीफा दे दिया था. इस्तीफा देने से महज दो घंटे पहले तेज प्रताप यादव ने न्यूज 18 बताया था कि वह सिर्फ तेजस्वी को सुझाव देने की हैसियत रखते हैं न कि किसी निर्णायक भूमिका में हैं.तेजप्रताप को आरजेडी में भाव नहीं मिल रहा था.

तेज प्रताप कसमसाते रहे और तेजस्वी की पकड़ बनी रही

ये तब भी जाहिर हुआ था जब 3 जनवरी 2019 को पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से बहन मीसा भारती के चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद तेजस्वी यादव ने खुलकर मीडिया के सामने इसका विरोध किया और उन्हें अनुशासन की नसीहत तक दे डाली थी. ऐसे में तेजप्रताप की ‘तेज सेना’ बनाने की पहल भी तेजस्वी के एकाधिकार को चुनौती देने की एक कोशिश भर मानी जा रही है.इसके बाद तेजप्रताप यादव ने 28 जून 2019 को ‘तेज सेना’ नाम का संगठन लॉंच करने की घोषणा की थी. तब उन्होंने युवाओं से अपनी सेना में शामिल होने की अपील की थी. आप समझ सकते हैं कि कभी बदलाव यात्रा, कभी लालू-राबड़ी मोर्चा तो कभी तेज सेना के नाम पर तेज प्रताप खुद को आरजेडी की मुख्य धारा की राजनीति में स्थापित करने की कोशिश करते रहे, परन्तु तेजस्वी यादव की पकड़ लगातार बनी रही.

तेजस्वी यादव ने लालू यादव को साध लिया और लालू यादव को भी तेजस्वी पर पूरा भरोसा रहा है.

लोकसभा चुनाव में  करारी हार के बाद निशाने पर तेजस्वी

लालू यादव और राबड़ी देवी का हमेशा ही प्रयास रहा कि दोनों भाई एक रहें, लेकिन दोनों का दुराव राजनीति को पढ़ने वाले लगातार पढ़ते ही रहे. इसके बाद जुलाई 2019 का वह वाकया भी सामने आया जब राष्ट्रीय जनता दल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तेजप्रताप यादव ने अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव को अर्जुन कहकर बुलाया और हाथ में गीता दे दिया. तेजप्रताप ने यह भी कहा कि मेरी बात बहुतों को खटकती है, लेकिन मैं वही बोलता हूं जो लालू जी बोलते हैं. तेजप्रताप ने कहा कि नाराजगी होना स्वाभाविक है. इसलिए सबकी भावना का सम्मान करना होगा.उन्होंने तब यह भी कहा था कि कि संगठन में लालू-राबड़ी और केवल लालटेन है. पार्टी के भीतर कोई सेना या मोर्चा बनाने की जरूरत नहीं. सबको एकजुट होकर चुनाव में जाना है. दरअसल, लोकसभा चुनाव में आरजेडी की करारी हार के बाद निशाना तेजस्वी यादव थे.

युवा नेतृत्व के लिए तेजस्वी यादव आरजेडी में ज्येष्ठ पर श्रेष्ठ!

बहरहाल, लालू यादव का साथ तेजस्वी यादव पर बना रहा और वर्ष 2020 विधानसभा चुनाव फिर तेजस्वी यादव के नेतृत्व में जाने का फैसला लिया गया. तेजस्वी यादव की लोकप्रियता परवान पर थी और इसकी साफ झलक चुनाव नतीजों में भी दिखी. सीटों में एनडीए और महागठबंधन के बीच बहुमत से 12 सीटों का अंतर रह गया, तो वोटों में भी महज 12 हजार का ही अंतर रहा. जाहिर है एक युवा नेतृत्व के लिए तेजस्वी यादव आरजेडी में सर्वश्रेष्ठ हो गए और ज्येष्ठ (बड़े) भाई का कद छोटा हो गया. एक वाकया बात 2021 का भी है. 30 अक्टूबर विधानसभा उपचुनाव के लिए कांग्रेस ने प्रत्याशी उतारकर महागठबंधन को मुश्किल में डाला तो तेज प्रताप यादव ने तारापुर के निर्दलीय प्रत्याशी संजय कुमार के लिए चुनाव प्रचार करने की घोषणा कर दी.

ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया, मां ने आंखें खोल दीं…

लड़ाई यहीं नहीं रुकी तेजस्वी यादव ने तेज प्रताप का चैलेंज दबे अंदाज में स्वीकार कर लिया और तारापुर के निर्दलीय प्रत्‍याशी संजय कुमार को आरजेडी में शामिल करा लिया और तेज प्रताप के मंसूबों पर पानी फेर दिाय. तेजस्वी ने एक और झटका तब दिया जब उप चुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की लिस्ट से तेज प्रताप यादव, मां राबड़ी देवी और बहन मीसा भारती का नाम हटा दिया. साफ था कि राबड़ी देवी और मीसा भारती तो बस नाम भर थे, असल निशाना तेज प्रताप यादव ही रहे. तब तेज प्रताप भी चुप नहीं रहे और 11 अक्तूबर 2021 को ट्वीट में लिखा, ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया, मां ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया… मेरा नाम रहता ना रहता मां और दीदी का नाम रहना चाहिए था…इस गलती के लिए बिहार की महिलाएं कभी माफ नहीं करेगीं,दशहरा में हम मां की ही अराधना करते हैं ना जी!

तेज प्रताप यादव ने प्राइवेट लाइफ की कहानी दुनिया को सुनाई और सियासी चूक कर गए.

अदावत की आग जलती रही और…

यहां एक और वाकया जानिये…इसके पहले 2 अक्टूबर 2021 को तेज प्रताप यादव ने तेजस्वी यादव पर इशारों में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि कुछ लोग लालू प्रसाद यादव को बंधक बनाकर रखे हुए हैं. इसके बाद तेजस्वी यादव ने अपने बड़े भाई तेजप्रताप के आरोप का जवाब दिया है.उन्होंने कहा कि उनके पिता लालू प्रसाद का व्यक्तित्व इस प्रकार है कि इस तरह के आरोप मेल नहीं खाते हैं. बहरहाल राजनीतिक कद पाने के लइे अदावत की आग जलती रही और वर्ष 2022 भी आ गया जब नीतीश कुमार ने पाला बदला तो फिर सत्ता बदली भी हो गई.इस बार फिर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ही बने और तेज प्रताप यादव फिर मंत्री ही रह गए. जाहिर है टीस तो रही ही होगी.

आरजेडी में अब तेजस्वी युग है और अब तो तेज प्रताप यादव…?

इसके बाद तो वह हो गया जब लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में तेजस्वी युग की शुरुआत हो गई. 18 जनवरी 2025 को पटना मौर्या होटल में आयोजित पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अब तेजस्वी यादव को वो सभी शक्ति दे दी गई जो लालू यादव के पास थी.आरजेडी के संविधान की धारा 35A में संशोधन किया गया और लालू के साथ-साथ तेजस्वी यादव को पार्टी से जुड़े सभी बड़े फैसले और साथ ही चुनाव में सिंबल जारी करने का अधिकार भी प्राप्त हो गया. इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर लालू प्रसाद जो पार्टी के फैसले ले सकते थे वही फैसला अब तेजस्वी यादव भी लेते हैं. जाहिर है आरजेडी में अब तेजस्वी युग है और अब तो तेज प्रताप यादव बाहर भी हो चुके हैं.

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