पटना. राजनीति में समय सबसे बड़ी कसौटी होता है और बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार ने दो दशक इस कसौटी पर खड़े होकर गुजारे हैं. लेकिन सवाल यह है-क्या जनता भी अब उन्हें उतना ही भरोसेमंद मानती है जितना पहले? चुनावी मौसम में आए तीन सर्वे इस सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं. बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से पहले आई तीन प्रमुख सर्वे रिपोर्ट्स ने जो तथ्य सामने लाए हैं वो काफी चौंका रहे है. चाणक्य, पोलस्ट्रैट और आईएएनएस-मैटराइज… तीनों एजेंसियों के आंकड़ों का निचोड़ ऐसा है जो बिहार चुनाव को लेकर जनता क्या सोचती है, यह स्पष्ट रूप से जाहिर हो रहा है. दरअसल, विपक्ष जहां नीतीश कुमार को ‘थका हुआ’ नेता बता रहा है, वहीं सर्वे के नतीजे किसी और कहानी का इशारा करते हैं.
बिहार चुनाव को लेकर तीन सर्वे एजेंसियों- चाणक्य, पोलस्ट्रैट और आईएएनएस-मैटराइज ने अपने आंकड़े सार्वजनिक किए हैं वो इतना तो साफ-साफ बता रहे हैं कि 20 वर्षों के शासन के बावजूद नीतीश कुमार अब भी बिहार की जनता के सबसे भरोसेमंद चेहरा बने हुए हैं.खास बात यह है कि ऐसा तब है जब बीते दो-तीन वर्षों से विपक्ष लगातार उन्हें ‘थका हुआ’ और ‘रिटायरमेंट के लायक’ बताता रहा है, लेकिन सर्वे यह संकेत दे रहे हैं कि बिहार की जनता उन्हें अब भी ‘स्थिरता, सुशासन और भरोसे’ के प्रतीक के रूप में देखती है.
नीतीश लोकप्रिय, 46% की अब भी पहली पसंद
आईएएनएस-मैटराइज सर्वे के अनुसार, 46 प्रतिशत लोगों ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में पहली पसंद बताया है, जबकि तेजस्वी यादव को केवल 15 प्रतिशत समर्थन मिला है. इस सर्वे में 73 प्रतिशत जनता ने माना कि नीतीश कुमार के शासनकाल में कानून-व्यवस्था बेहतर रही है, जबकि लालू यादव के दौर को केवल 12 प्रतिशत लोगों ने अच्छा माना. यह आंकड़ा दर्शाता है कि दो दशक पुराने ‘सुशासन बाबू’ का टैग आज भी जनता के मन में कायम है.
तीन सर्वे, एक नतीजा-बिहार में एनडीए को बढ़त
बिहार के तीनों प्रमुख सर्वे एनडीए को स्पष्ट बढ़त दे रहे हैं. आईएएनएस-मैटराइज के ओपिनियन पोल में एनडीए 153-164 सीटें तो इंडिया गठबंधन 76-87 सीटें दी गई हैं. वहीं, पोलस्ट्रैट के सर्वे में एनडीए 133-143 सीटें और इंडिया गठबंधन 93-102 दी जा रहीं हैं. जबकि चाणक्य के सर्वे आंकड़ों के अनुसार, एनडीए 128-134 सीटें जीत रहा है तो इंडिया गठबंधन 102-108 सीटों पर बढ़त प्राप्त करेगा. इन तीनों रिपोर्टों में एनडीए को बहुमत और नीतीश कुमार को लोकप्रिय नेता बताया गया है. इसका मतलब साफ है-जनता के लिए बिहार में अभी भी ‘परिवर्तन’ से ज्यादा ‘स्थिरता’ अहम है.
‘थके हुए नेता’ की राजनीति बनाम जनता की धारणा
बता दें कि तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर लगातार नीतीश कुमार की उम्र और सेहत पर तंज कसते रहे हैं. तेजस्वी प्राय: कहते हैं कि अब उन्हें (नीतीश कुमार) विश्राम लेना चाहिए और प्रशांत किशोर कहते हैं कि नीतीश कुमार राजनीति के अंत की ओर बढ़ रहे हैं. दोनों यही संकेत देने की कोशिश करते रहे हैं कि बिहार की जनता बदलाव चाहती है. लेकिन, सियासी सच्चाई यही है कि सर्वे इसके विपरीत तस्वीर पेश कर रहे हैं. वोटर नीतीश कुमार के अनुभव, स्थिरता और विकास के प्रतीक के तौर पर अब भी उन्हें प्राथमिकता दे रहे हैं.
मोदी फैक्टर और बिहार में एनडीए गठबंधन का लाभ
सर्वे में यह भी जाहिर होता है कि लोग अनुभव को अधिक वरीयता दे रहे हैं. दरअसल, इन्हीं सर्वे रिपोर्ट्स में बताया गया है कि 63 प्रतिशत लोगों ने माना कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का बिहार चुनाव पर सीधा असर पड़ेगा. ऐसे में एनडीए को इसका सीधा लाभ मिल रहा है. नीतीश कुमार का संगठनात्मक नेटवर्क और पीएम मोदी की लोकप्रियता, दोनों मिलकर विपक्ष के लिए मुश्किल खड़ी कर रहे हैं.
यही वजह है कि पोलस्ट्रैट के सर्वे में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर रही है, लेकिन जनता मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में नीतीश कुमार को ही प्राथमिकता दे रही है.
जनता बदलाव नहीं, बल्कि बिहार में स्थिरता चाहती है
दरअसल, बिहार में नीतीश कुमार के लंबे कार्यकाल पर लोग थकान से ज़्यादा भरोसे और निरंतरता की भावना से देख रहे हैं. महिलाओं की भागीदारी, शराबबंदी, पंचायत सशक्तिकरण और कानून-व्यवस्था में सुधार जैसे मुद्दे अब भी उनकी पहचान बने हुए हैं. युवाओं में बेरोजगारी जैसे सवाल जरूर हैं, लेकिन सर्वे बताते हैं कि 26 से 59 वर्ष आयु वर्ग के मतदाता अब भी एनडीए के समर्थन में झुके हुए हैं.
नीतीश ‘एंटी-इनकंबेंसी’ के बावजूद ‘प्रो-स्टेबिलिटी’ का चेहरा
तीन अलग-अलग एजेंसियों के सर्वे में समान निष्कर्ष उभरना यह दिखाता है कि बिहार में नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी नहीं, बल्कि भरोसे की भावना ज्यादा मजबूत है. विपक्ष भले उन्हें ‘थका हुआ’ बताने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन जनता अब भी मानती है कि नीतीश कुमार शासन का ऐसा चेहरा हैं, जिन पर संकट के समय भरोसा किया जा सकता है. कह सकते हैं कि- विपक्ष को नीतीश शायद थके हुए लगें, लेकिन बिहार की जनता अब भी उन्हीं के साथ चलने को तैयार दिखती है.

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