Last Updated:July 26, 2025, 11:28 IST
Supreme court on Marital Dispute: सुप्रीम कोर्ट ने सास-बहू के झगड़े में पति-पत्नी को बच्चों के भविष्य के लिए रिश्ते को एक मौका देने की सलाह दी. जस्टिस नागरत्ना ने कहा, मां का सम्मान करते हुए पत्नी की भावनाओं को...और पढ़ें

हाइलाइट्स
सुप्रीम कोर्ट ने सास-बहू विवाद पर बड़ी बात कही.कोर्ट ने कहा, पति-पत्नी को बच्चों के भविष्य के लिए रिश्ते को मौका दें.मां का सम्मान करते हुए पत्नी की भावनाओं का मान रखें- सुप्रीम कोर्टहम अक्सर ही कई घरों में सास-बहू के बीच झगड़ा होते देखते हैं. कई बार ऐसे झगड़ों में पुरुष सदस्य भी पिस जाता है, जहां मां अपने बेटे पर पत्नी की बातें सुनने का इल्जाम लगाती है, तो वहीं पत्नी अपने पति पर मां की बातों पर चलने का… ऐसे ही पारिवारिक झगड़े से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने साफ किया कि मां का सम्मान करते हुए भी पत्नी की भावनाओं और विचारों को समान महत्व दिया जाना चाहिए.
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने एक ऐसे विवाहित जोड़े को यह सलाह दी जो अलग रह रहे हैं और उनके बच्चों भी बंट गए हैं. महिला अभी भारत में रह रही हैं, जबकि उनका पति अमेरिका में रहते हैं. ऐसे में उनका एक नाबालिग बेटा अपनी मां के साथ रहता है, जबकि बेटी दादी के पास रह रही है.
‘बीवी और बच्चों को वापस ले जाइए, जिम्मेदार पिता बनिए’
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये पेश हुए पति-पत्नी को कोर्ट ने स्पष्ट कहा, ‘आप दोनों को अपने रिश्ते को फिर से एक मौका देना चाहिए, कम से कम अपने बच्चों के भविष्य के लिए.’
इस दौरान पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहे. पति ने झूठा केस दर्ज करवाने का आरोप लगाया तो पत्नी ने उपेक्षा की शिकायत की. इस पर कोर्ट ने कहा कि दोनों को अब बच्चों के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए.
‘पत्नी से ज्यादा मां की बात मानना सबसे बड़ी समस्या है’
सुनवाई के दौरान जब पति बार-बार अपनी मां का जिक्र करता रहा, तो जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी की, ‘समस्या तब शुरू होती है जब मां की बात पत्नी से ज्यादा मानी जाती है. हम यह नहीं कह रहे कि मां को नजरअंदाज कीजिए, लेकिन पत्नी से भी बात कीजिए. अब बड़े हो जाइए.’
पति ने जब बताया कि उसने अपने बेटे को आज तक देखा ही नहीं, क्योंकि वह मां के साथ रह रहा है, तो कोर्ट ने तुरंत पत्नी से बच्चे को कैमरे के सामने लाने को कहा. पत्नी ने बताया कि बच्चा स्कूल गया हुआ है. इस पर कोर्ट ने निर्देश दिया कि ‘मध्यस्थता के दौरान बच्चे को उसके पिता से जरूर मिलवाया जाए. कल्पना कीजिए, एक बच्चा जिसने न अपने पिता को देखा है, न अपनी बहन को- यह मत होने दीजिए.’
यह मामला भले ही कानूनी था, लेकिन कोर्ट की भाषा और रुख बेहद संवेदनशील और रिश्तों की मरम्मत को प्राथमिकता देने वाला था. अदालत ने साफ संकेत दिया कि विवाह सिर्फ कानूनी बंधन नहीं, भावनात्मक ज़िम्मेदारी भी है. और उसमें पत्नी की बात को सुनना, समझना और सम्मान देना उतना ही ज़रूरी है जितना किसी मां के प्रति कर्तव्य निभाना.
सुप्रीम कोर्ट ने दंपति को मध्यस्थता से अपने मतभेद सुलझाने की सलाह दी है और उम्मीद जताई है कि दोनों बच्चों के लिए यह रिश्ता एक बार फिर से जुड़ सकेगा.
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें
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New Delhi,Delhi