DNA Analysis: DNA मित्रो अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शायद ही ऐसा कोई मौका गंवाया होगा जब उन्होंने ये दावा नहीं किया होगा कि उनके नेतृत्व में अमेरिका की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है. मेक अमेरिका ग्रेट अगेन का नारा देकर ट्रंप फिर से चुनाव जीते और सत्ता में आने के बाद लोगों को ख़ुशहाल अमेरिका के सपने दिखाते रहते हैं. लेकिन हकीकत ये है कि अमेरिका को सपने और दुनिया को टैरिफ की धौंस दिखाने वाले ट्रंप अपने ही देश को मंदी के करीब ले आए हैं. अमेरिका की मशहूर क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज की मानें तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था हर मोर्चे पर पस्त पड़ती जा रही है, अमेरिका एक और मंदी के मुहाने पर खड़ा है जिससे भारी वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. ट्रंप ने अमेरिका की सत्ता संभालने के बाद साढ़े सात महीनों में किस तरह अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए अमेरिका के हितों को दांव पर लगा दिया है, ये बताने से पहले आपको ये जानना चाहिए कि मूडीज की रिपोर्ट में क्या है.
मूडीज की रिपोर्ट में पहली बड़ी बात ये है कि 2025 के अंत तक अमेरिका आर्थिक मंदी की चपेट में आ सकता है. मूडीज़ का कहना है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था का एक-तिहाई हिस्सा पहले से ही संकट से जूझ रहा है. मूडीज के मुताबिक अमेरिका में नौकरियां मिलनी मुश्किल हो गई हैं और जल्द ही लोगों की नौकरियां जाने लगेंगी. मूडीज ने ये भी कहा है कि जल्द ही महंगाई में बढ़ोतरी होगी. नौकरियों में छंटनी और महंगाई की वजह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ जाएगी. अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर ये चेतावनी जारी करने वाले मूडीज एनालिटिक्स के मुख्य अर्थशास्त्री मार्क जैंडी 2008 के वित्तीय संकट की सबसे पहले भविष्यवाणी करने वालों में से एक हैं.
— Zee News (@ZeeNews) September 3, 2025
दरअसल ट्रंप अपने अच्छे काम-काज का जितना भी ढोल पीटें लेकिन सच्चाई ये है कि अमेरिका की भलाई से उनका कोई मतलब नहीं है. उनको सिर्फ़ अपनी निजी कमाई से मतलब है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने इस मामले में ट्रंप की पोल खोली है. जेक सुलिवन ने भारत से ट्रंप की नाराज़गी के बारे में बड़ा ख़ुलासा किया है. सुलिवन ने आरोप लगाया है कि ट्रंप देश के बदले अपना व्यक्तिगत फायदा देखते हैं. ट्रंप ने पाकिस्तान से फैमिली बिजनेस के लिए भारत के साथ अमेरिका के रिश्तों को खराब किया है. ट्रंप के फैसले का नुकसान पूरे देश को भुगतना होगा.
जेक सुलिवन पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल के साथ ट्रंप के परिवार से जुड़ी कंपनी वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल के साथ समझौते की तरफ़ इशारा कर रहे हैं. दोनों के बीच ये करार पहलगाम हमले के सिर्फ 4 दिन बाद यानी 26 अप्रैल को हुआ था. वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल में ट्रंप के बेटों और दामाद की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस डील के बाद ट्रंप परिवार की अरबों डॉलर की संपत्ति बढ़ गई. जानकारों का मानना है कि इसी समझौते की वजह से ट्रंप भारत के बदले पाकिस्तान का पक्ष ले रहे हैं. ट्रंप की तरफ से व्यक्तिगत लाभ लेने का एक और सबूत उस समय मिला जब उन्होंने कतर की सरकार से उपहार के रूप में मिले 400 मिलियन डॉलर के लग्जरी विमान को स्वीकार किया. इस गिफ्ट को लेकर ये चिंता जताई गई कि ये रिश्वत लेने की तरह है लेकिन ट्रंप ने इन दलीलों को खारिज कर दिया.
ट्रंप ने सत्ता संभालने के बाद से निजी फायदे के लिए सिर्फ़ दुनिया के अलग-अलग देशों से ही संबंध ख़राब नहीं किए हैं बल्कि अमेरिका के लोगों की नाक में भी दम कर रखा है. सरकारी दफ़्तर से लेकर यूनिवर्सिटी तक अमेरिका के निशाने पर रहे हैं. सबसे पहले सरकारी नौकरियों की बात करते हैं. ट्रंप प्रशासन ने सरकारी खर्चों में कमी लाने के लिए बड़े पैमाने पर छंटनी की योजना बनाई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सत्ता संभालने के एक महीने के भीतर ही 9,500 से अधिक सरकारी कर्मचारियों को हटा दिया गया. ट्रंप ने 20 लाख सरकारी कर्मचारियों को स्वैच्छिक इस्तीफे का प्रस्ताव दिया जिनमें से 75,000 कर्मचारियों ने ये प्रस्ताव स्वीकार किया है. योजना के तहत कुल 23 लाख सरकारी कर्मचारियों में से आधे को हटाने का लक्ष्य है, जिससे 10 लाख से अधिक नौकरियां प्रभावित हो सकती हैं
ट्रंप की तुनकमिजाजी का शिकार उनके प्रशासन के कुछ अहम लोग भी बने हैं. अभी कुछ ही दिन पहले ट्रंप ने अमेरिका के सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व की प्रमुख लिसा कुक को उनके पद से बर्खास्त कर दिया. हालांकि लिसा कुक ने उन्हें पद से हटाने की ट्रंप की कोशिश को कानूनी रूप से चुनौती दी है. उनकी दलील है कि ट्रंप के पास उन्हें बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है. ट्रंप के निशाने पर अमेरिका की यूनिवर्सिटी भी रही हैं. ट्रंप ने यहूदी-विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर हार्वर्ड, कोलंबिया और जॉन्स हॉपकिन्स जैसी बड़ी यूनिवर्सिटी की फंडिंग में कटौती की है, उनके ख़िलाफ़ जांच का आदेश दिया है और उन पर दबाव भी डाले हैं. इसकी वजह से दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बनाने वाली अमेरिका की यूनिवर्सिटीज मुश्किलों में घिरी हुई हैं.
इसके अलावा ट्रंप ने कई शहरों का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया है. वॉशिंगटन डीसी, लॉस एंजिलिस, शिकागो, बाल्टीमोर और सिएटल जैसे शहरों में ट्रंप ने सेना तैनात की है. इसके खिलाफ जोरदार विरोध भी हुआ है लेकिन ट्रंप पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं. आने वाले समय में ट्रंप 19 राज्यों में सेना की तैनाती करने जा रहे हैं. ट्रंप की इन्हीं नीतियों का नतीजा है कि जॉन बोल्टन और एलन मस्क जैसे उनके पुराने दोस्त अब दुश्मन बन बैठे हैं. साथ ही अमेरिका में उनकी लोकप्रियता में तेज़ी से गिरावट आ रही है. सत्ता संभालते समय जनवरी 2025 में ट्रंप की अप्रूवल रेटिंग 46-47% के आसपास थी लेकिन अगस्त आगे-आते ट्रंप की अप्रूवल रेटिंग गिरकर 37-40% के बीच आ गई. यानी महज़ 7-8 महीनों में ट्रंप के अप्रूवल रेटिंग में 10 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट आई है और अगर अमेरिका आर्थिक मंदी की चपेट में आ गया तो ट्रंप की बची-खुची साख जाते भी देर नहीं लगेगी.
मित्रों, एक तरफ़ डोनाल्ड ट्रंप दुनिया के ज़्यादातर देशों के साथ-साथ अमेरिका के लोगों को भी अपना दुश्मन बना रहे हैं. इनमें भारतीय मूल के लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने ट्रंप को जिताने में अहम भूमिका निभाई थी. अमेरिका से आज की बड़ी खबर ये है कि अब वहां, ब्राह्मणों के समर्थन में नवारो हटाओ आंदोलन शुरू हो गया है. अमेरिका में बसे हिंदुओं ने राष्ट्रपति ट्रंप से अपने कारोबारी सलाहकार पीटर नवारो को बर्खास्त करने की मांग की है. हिंदू संगठनों ने मांग की है कि पीटर नवारो को व्हाइट हाउस ट्रेड ऑफिस के डायरेक्टर पद से तत्काल बर्खास्त किया जाए.
हिंदू संगठनों का आरोप है कि नवारो हिंदू विरोधी बयान देते हैं. अमेरिका के हिंदू पीटर नवारो के ब्राह्मण वाले बयान से ख़ास तौर पर नाराज हैं. नवारो ने 2 दिन पहले एक इंटरव्यू में कहा था कि पीएम मोदी एक महान नेता हैं. ये समझ नहीं आ रहा है कि भारतीय नेता रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ कैसे सहयोग कर रहे हैं जबकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. तो मैं बस इतना ही कहूंगा कि भारतीय लोग, कृपया समझें कि वहां क्या हो रहा है. रूस से तेल खरीद के जरिए मुनाफा ब्राह्मण कमा रहे हैं जबकि इसके चलते होने वाला नुकसान पूरे भारत के लोग उठा रहे हैं, हमें इसे रोकना होगा.
नवारो ने ये बयान देकर उसी तरह भारत के लोगों को बांटने की कोशिश की, जिस तरह किसी ज़माने में अंग्रेज़ करते थे. ऐसे बयान के जरिए नवारो ने भारत में जाति युद्ध भड़काने की कोशिश की. यही वजह है कि अमेरिका के हिंदुओं ने अब पीटर नवारो के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है. एक तरफ डोनाल्ड ट्रंप और उनके साथियों ने भारत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा है, वहीं दूसरी तरफ़ भारत के पुराने और पक्के दोस्त पुतिन खुलकर भारत का साथ दे रहे हैं. ट्रंप की धमकियों के बीच पुतिन ने भारत और रूस के बीच साझेदारी मज़बूत करने के लिए 2 बड़े फ़ैसले लिए हैं.
रूस की तरफ़ से पहला फैसला ये लिया गया है कि रूस, भारत को S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की सप्लाई बढ़ाने के लिए तैयार है. वर्ष 2018 में भारत ने रूस के साथ पांच S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने का समझौता किया था. ये डील लगभग 48 हज़ार करोड़ रुपये की थी. अब तक भारत को तीन S-400 सिस्टम मिल चुके हैं और बाकी 2 की डिलीवरी 2026-27 तक हो जाने की उम्मीद है. ये वही एयर डिफेंस सिस्टम है, जिसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की ओर से किए गए मिसाइल हमलों को हवा में ही नाकाम कर दिया था. हालांकि इस सौदे को लेकर कुछ चुनौतियां भी हैं. अमेरिका ने भारत को S-400 खरीदने पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी थी.
रूस की तरफ़ से दूसरा फैसला ये लिया गया है कि भारत को तेल खरीदने पर पहले से ज़्यादा डिस्काउंट मिलेगा. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के लिए रूसी तेल 3 से 4 डॉलर प्रति बैरल सस्ता हो सकता है. रूस से तेल ख़रीदने की वजह से ही ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाया था. एक तरफ़ अमेरिका की धमकी के बावजूद भारत और रूस की दोस्ती मज़बूत हो रही है, वहीं दूसरी तरफ़ सऊदी अरब और इराक़ जैसे देशों ने यूरोपियन यूनियन की धमकी के आगे घुटने टेक दिए हैं. सऊदी अरब की तेल कंपनी आरामको और इराक़ की तेल कंपनी सोमो ने भारत की नायरा एनर्जी को कच्चे तेल की बिक्री रोकने का फ़ैसला लिया है. नायरा एनर्जी आम तौर पर हर महीने 20 लाख बैरल कच्चा तेल इराक़ से ख़रीदती है जबकि 10 लाख बैरल सऊदी अरब से लेकिन यूरोपियन यूनियन की धमकी के बाद अगस्त में उसे सऊदी अरब और इराक़ से तेल नहीं मिला. यूरोपियन यूनियन से डरकर सऊदी अरब और इराक़ ने नायरा एनर्जी को तेल नहीं बेचने का फ़ैसला लिया, नायरा में रूस की कंपनी रोसनेफ्ट की बड़ी हिस्सेदारी है.