पहले कश्मीर में होता था प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का पद, कैसे खत्म हुआ ये

5 hours ago

अक्टूबर 1947 का कश्मीर का भारत में विलय हो गया. कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरिसिंह ने विलय पत्र पर साइन किए. कश्मीर में तब से अब तक बहुत से बदलाव आए. अब तो ये पूर्ण राज्य भी नहीं है. केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है तो कश्मीर को देश के सबसे विशेष राज्य का दर्जा देने वाला आर्टिकल 370 और 35 ए की भी समाप्ति हो चुकी है. जानते हैं कि कश्मीर कैसे सियासी और संवैधानिक तौर पर बदलता चला गया.

News18 हिंदी Last Updated :April 28, 2025, 12:51 ISTEditor pictureFiled by
  Sanjay Srivastava

01

आजादी के बाद कुछ सालों तक कश्मीर के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री और राज्यपाल को सदर ए रियासत कहा जाता था. 50 के दशक में एक कानून के जरिए इस व्यवस्था को खत्म कर दिया गया. भारत में विलय के बाद कश्मीर को आर्टिकल 370 और आर्टिकल 35 एक के तहत विशेष राज्य का दर्जा और अधिकार मिले हुए थे, जिसे नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार 2019 में एक कानून लाकर पूरी तरह खत्म कर दिया. साथ ही जम्मू - कश्मीर का राज्य का दर्जा भी खत्म हो गया. अब ये राज्य केंद्र शासित प्रदेश है. लिहाजा मुख्यमंत्री से ज्यादा शक्तियां राज्यपाल के पास होती हैं.

02

क्या थी कश्मीर की पुरानी व्यवस्था और ये कैसे खत्म हो गई. दरअसल नेशनल कॉन्फ्रेंस ने ही 1953 में संविधान में संशोधन करके जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री के पद को बदलकर मुख्यमंत्री में तब्दील कर दिया था. इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहम्मद गुलाम सादिक़ ने संविधान संशोधन के बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

03

इसके बाद केंद्र सरकार 1965 में कश्मीर में एक संशोधन के जरिए पूरे तौर पर कश्मीर में सदर-ए-रियासत और वज़ीरे-ए-आज़म के पद को खत्म कर दिया. केंद्र सरकार ने 1965 में जम्मू-कश्मीर के संविधान एक्ट में छठा संशोधन करके ये कदम उठाया था. इस संशोधन के बाद 'सदर ए रियासत' और 'प्राइम मिनिस्टर' के पद को खत्म कर गर्वनर और चीफ मिनिस्टर के पद मंजूर किए गए. इसी के साथ 1952 से संवैधानिक तौर पर जम्मू कश्मीर के 'प्रेसीडेंट' यानी 'सदर ए रियासत' रहे कर्ण सिंह का भी पद खत्म हो गया और कश्मीर में राजवंश का एक अध्याय भी खत्म हो गया.

04

इसके पीछे भी एक कहानी है और ये राज्य के मुख्यमंत्री से ज्यादा राजा से जुड़ी ज्यादा है. वर्ष 1949 में कश्मीर के संवैधानिक प्रमुख महाराजा हरिसिंह ही थे. कर्ण सिंह उनके वारिस थे. 20 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी कबायलियों के हमले के बाद 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर के महाराजा हरिसिंह और भारत सरकार के बीच एक समझौता हुआ. इसके तहत महाराजा की स्थिति राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में बरकरार रही, लेकिन शेख अब्दुल्ला का आपातकालीन प्रशासक के पद पर नियुक्त कर राज्य में सरकार चलाने की जिम्मेदारी उन्हें दे दी गई. इसके बाद उन्हें 05 मार्च 1948 को राज्य का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया.

05

राज्य प्रशासन को लेकर शेख अब्दुल्ला और महाराजा के बीच टकराव के हालात अक्सर पैदा होने लगे. शुरुआती दिनों में ये कम थे, लेकिन आने वाले महीनों के साथ ये बढ़ते चले गए. घाटी में ऐसा लग रहा था दो समानांतर सत्ताएं चल रही हैं. अब्दुल्ला बार बार दिल्ली में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से शिकायत करते कि महाराजा उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं.

06

हालात को टालने के लिए पहले नेहरू ने महाराजा पर दवाब डाला कि उन्हें राज्य की सक्रियता से खुद को अलग कर देना चाहिए. इसी क्रम में केंद्र के इशारे पर महाराजा के 19 साल के बेटे कर्ण सिंह को सदर ए रियासत और गर्वनर बनाकर उन्हें संवैधानिक प्रमुख की स्थिति पर बहाल किया गया. माना गया कि हालात इससे सुधर पाएंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. इसी परिप्रेक्ष्य में नेहरू को लगा कि अगर कुछ महीनों के लिए महाराजा और उनके वारिस को राज्य से बाहर जाने को कहा जाए तो राज्य में हालात पटरी पर आ जाएंगे. साथ ही राज्य की राजनीति में महाराजा का प्रभाव भी कम हो जाएगा. ये काम उन्होंने सरदार पटेल को सौंपा कि वो महाराजा को कुछ महीनों के लिए राज्य से बाहर जाने को कहें.

07

राजमोहन गांधी की किताब पटेल ए लाइफ में कर्ण सिंह के हवाले से कहा गया, नेहरू ने ये सरदार पटेल पर छोड़ दिया था कि वो मेरे पिता को कैसे कश्मीर से हटाते हैं. 29 अप्रैल 1949 को हमने सरदार पटेल के घर पर साथ में भोजन किया. फिर डिनर के बाद सरदार मेरे पेरेंट्स को लेकर अलग कमरे में चले गए. जब वो लौटे तो चेहरा फीका पड़ा हुआ था और मां अपने आंसू रोकने की कोशिश कर रही थीं.

08

कर्ण सिंह का कहना था, सरदार पटेल ने पिता ने विनम्रता लेकिन दृढ़ता से कहा कि उन्हें कुछ महीनों के लिए कश्मीर से बाहर चले जाना चाहिए. पटेल की बात सुनकर पिता अवाक रह गए, लेकिन पटेल का चेहरा सख्त था. उन्होंने ये भी कहा कि ये राष्ट्रहित में होगा. जब सरदार पटेल हमें बाहर गेट तक छोड़ने आए तो उनके चेहरे भींचा हुआ था, सख्ती बरकरार थी.

09

इसी के बाद पटेल के सुझाव पर कर्ण सिंह को इलाज के लिए लंबे समय के लिए अमेरिका भेजा गया. इसके बाद शेख अब्दुल्ला को अपनी मनमर्जी से कश्मीर में राज चलाने की छूट मिल गई. इसके बाद महाराजा का कश्मीर छूट ही गया. महाराजा ने चार शादियां की थीं. उनके अंतिम दिन मुंबई में बीते. वहीं 1961 में उनका निधन हो गया.

10

1951 में कश्मीर में पहली बार चुनाव हुए. नेशनल कांफ्रेंस इस चुनावों में जीती और शेख अब्दुल्ला अब राज्य के निर्वाचित प्रधानमंत्री (मुख्यमंत्री) बने. हालांकि इसके बाद हालात कुछ ऐसे बने कि खुद नेहरू ने शेख की सरकार को बर्खास्त कर उन्हें 13 सालों के लिए जेल में डाल दिया. तब नेहरू ने ये काम सदर ए रियासत बने राज्य के संवैधानिक प्रमुख कर्ण सिंह के जरिए करवाया.

11

चार साल बाद नेहरू ने अब्दुल्ला को गिरफ्तार कराया. 13 सालों तक वो जेल में रहे. हालांकि 1975 में फिर उनकी मुख्यमंत्री के रूप में वापसी हुई और वो 1982 तक बदस्तूर चीफ मिनिस्टर बने रहे. इसी बीच केंद्र सरकार ने छठे संशोधन के जरिए राज्य में जरूरी बदलाव कर दिए.

12

वर्ष 2019 में कश्मीर की स्थिति में सबसे बड़ा बदलाव आया जबकि केंद्र सरकार ने एक कानून पास करके राज्य के विशेष दर्जा को खत्म कर दिया. राज्य को खास दर्जा देने वाली आर्टिकल 370 और 35 ए को खत्म कर दिया गया. इसके अलावा जम्मू कश्मीर दो राज्यों में बांटकर इसके पूर्ण राज्य के दर्जा को भी खत्म कर दिया गया. अब जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है. 06 साल तक जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू रहा. इसके बाद पिछले साल यहां चुनाव कराए गए, जिसमें नेशनल कांफ्रेंस की जीत हुई और अब उमर अब्दुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री हैं.

Read Full Article at Source