Last Updated:September 04, 2025, 09:55 IST
Ahmedabad Land Sinking: इंसानी हस्तक्षेप की वजह से प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति पैदा हो रही है. हालात ऐसे बन गए हैं कि जो समस्या उत्तरकाशी और जोशीमठ में सामने आई थी, अब वही संकट अहमदाबाद और सूरत जैसे शहरों भी...और पढ़ें

Ahmedabad Land Sinking: तकरीबन ढाई से तीन साल पहले उत्तराखंड के जोशीमठ और उत्तरकाशी में एक घटना सामने आई थी. यह मामला जमीन धंसने से जुड़ा हुआ था. जमीन धंसाव की वजह से घरों में दरारें पड़ने लगी थीं और नए प्राकृतिक संकट की आहट स्पष्ट तौर पर सुनाई पड़ने लगी थी. इसके बावजूद इससे कोई सबक नहीं सीखा गया. अब यही संकट देश के मैदानी हिस्सों में सामने आने लगा है. गुजरात से चौंकाने वाली खबर सामने आई है. एक रिसर्च में पता चला है कि प्रदेश के कई शहरों में जमीनें धंस रही हैं. जमीन धंसाव की सालाना दरें चौंकाने के साथ डराने वाली भी हैं. खासकर अहमदाबाद, सूरत और कच्छ की हालत काफी संवेदनशील है.
कल्पना कीजिए कि आपके पैरों के नीचे की जमीन धीरे-धीरे धंस रही है. यह चौंकाने वाला सच है. अत्यधिक भूजल दोहन (Groundwater Extraction) और भूगर्भीय बदलावों (Tectonic Changes) के कारण भारत के कई शहर और कस्बे (गुजरात से लेकर पश्चिम बंगाल, पंजाब से असम, केरल से लेकर हिमालय तक) धीरे-धीरे जमीन धंसने की प्रक्रिया का सामना कर रहे हैं. देहरादून स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज़ (UPES) के शोधकर्ताओं अलीम्पिका गोगोई, गिरीश कोठियारी और अतुल कुमार पाटीदार ने हाल ही में जियोसिस्टम्स एंड जियोएनवायरनमेंट (2025) में एक प्रीप्रिंट के रूप में प्रकाशित समीक्षा अध्ययन में इस गंभीर खतरे की ओर इशारा किया है. इस रिपोर्ट में वर्षों से किए गए स्वतंत्र अध्ययनों को समेटकर एक व्यापक तस्वीर पेश की गई है. इसी विषय पर सिंगापुर की नान्यांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (NTU) ने भी कई तटीय शहरों (Coastal Cities) में जमीन धंसने के आंकड़े जुटाए हैं.
जोशीमठ में जमीन धसान की वजह से भवनों में दरारें आ गई थीं. (पीटीआई/फाइल फोटो)
अहमदाबाद और सूरत सबसे प्रभावित
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, अहमदाबाद में कई अध्ययनों ने लगातार भूमि धंसने की प्रक्रिया दर्ज की है. साल 2017 से 2020 के बीच तीन बड़े सब्सिडेंस जोन पहचाने गए, जहां जमीन सालाना 2.5 सेंटीमीटर तक धंसी. साल 2014 से 2020 के बीच NTU अध्ययन में पाया गया कि पिपलाज इलाके में जमीन 4.2 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की दर से धंस रही है. वहीं, 2020–2023 की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, बापल और वटवा इलाके में यह दर 3.5 सेंटीमीटर सालाना रही. सूरत भी इससे अछूता नहीं है. वर्ष 2014 से 2020 के बीच यहां 0.01 से 6.7 सेंटीमीटर तक वार्षिक धंसाव दर्ज हुआ, जिसमें करंज क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित रहा.
कच्छ और सौराष्ट्र में भी बदलाव
स्टडी रिपोर्ट की मानें तो कच्छ क्षेत्र में औसतन 4.3 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से जमीन धंस रही है. कुछ इलाकों में यह 2.2 सेंटीमीटर तक दर्ज किया गया है. अधिकांश क्षेत्र 4.5 से 7.5 मिलीमीटर सालाना की दर से धंस रहे हैं. कट्रोल हिल फॉल्ट लाइन पर करीब 2.5 मिलीमीटर प्रति वर्ष का धंसाव दर्ज हुआ है. अध्ययन में आगे बताया गया है कि भूजल का अत्यधिक दोहन ग्राउंडवॉटर वाले परतों में दबाव घटा देता है, जिससे मिट्टी सघन होकर स्थायी रूप से बैठने लगती है और जमीन धंसने की घटनाएं सामने आती हैं. इससे भवनों में दरारें, दीवारों और छतों में क्रैक जैसे ढांचागत नुकसान सामने आ सकते हैं.
तकनीक से निगरानी
इन निष्कर्षों तक पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने InSAR (Interferometric Synthetic Aperture Radar) तकनीक का सहारा लिया, जो उपग्रहों की मदद से जमीन के सूक्ष्मतम धंसाव को भी मिलीमीटर स्तर की सटीकता से मापती है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस खतरे को गंभीरता से नहीं लिया गया तो शहरी बुनियादी ढांचे, जल प्रणालियों, कृषि और लाखों लोगों के जीवन पर गहरा असर पड़ सकता है.
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...
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Location :
Ahmedabad,Ahmedabad,Gujarat
First Published :
September 04, 2025, 09:34 IST