Last Updated:March 20, 2025, 14:50 IST
मेघालय ने टीबी मुक्त भारत के लिए अनूठी मुहिम चलाई है. देसी डॉक्टर, ग्रामीण महिलाएं और ऑटो चालक इसमें अहम भूमिका निभा रहे हैं. 2024 में री भोई जिले के 60 गांव टीबी मुक्त घोषित हुए.

मेघालय: देसी डॉक्टर और ऑटो चालक की मुहिम से टीबी मुक्त गांव
हाइलाइट्स
मेघालय ने 60 गांवों को टीबी मुक्त घोषित किया.देसी डॉक्टर, ग्रामीण महिलाएं और ऑटो चालक अहम भूमिका निभा रहे हैं.मेघालय में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का उपयोग किया जा रहा है.टीबी मुक्त भारत के लिए पूरे देश में जंग लड़ी जा रही है. लेकिन देश का एक ऐसा हिस्सा है, जो अपनी अनूठी मुहिम के लिए रोल मॉडल के तौर पर उभर रहा है. जिन लोगों की भूमिका को नजरंदाज कर दिया जाता है, वही लोग पीएम मोदी के सपनों का भारत बनाने में जुटे हैं. देसी डॉक्टर, ग्रामीण महिलाएं और ऑटो चालक टीबी से छुटकारा दिलाने में अहम रोल निभा रहे हैं.
पूर्वोत्तर के मेघालय ने तीन हजार देसी डॉक्टरों को प्रशिक्षण देकर पारंपरिक चिकित्सक बना दिया. जो अब अपने गांव में संदिग्ध मरीज मिलने पर तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में सूचित कर रहे हैं. इन मरीजों को स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाने के लिए मेघालय ने गांव की सक्रिय महिलाओं को प्रशिक्षित कार्यकर्ता बनाया है. इसी तरह गांवों का आवागमन करने वाले ऑटो और टैक्सी चालकों को इस मुहिम से जोड़ा है. इन प्रयासों के चलते मेघालय के 12 जिलों के 7153 गांव अब धीरे धीरे टीबी मुक्त होने लगे हैं. यहां के अति पिछड़ा री भोई जिला में 2024 के दौरान 60 गांवों को टीबी मुक्त घोषित किया गया. इस मुहिम से पहले 2023 में केवल सात गांवों को ही यह सफलता मिल पाई थी.
पूर्वोत्तर में क्यों अपनाना पड़ा अनूठा तरीका
री भोई के जिलाअधिकारी अभिलाष बरनवाल ने न्यूज 18 इंडिया को बताया कि भारत के दूसरे हिस्सों की तुलना में पूर्वोत्तर राज्यों के लिए जमीनी स्तर पर समर्थन हासिल कर पाना बेहद मुश्किल है. री भोई के डीएम अभिलाष बरनवाल ने बताया कि कोरोना टीकाकरण को लेकर यहां काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. पहली खुराक का कवरेज करीब 75 फीसदी तक पहुंचा पाया जबकि दूसरी खुराक का कवरेज 30 फीसदी तक ही पूरा हो पाया.
उन्होंने कहा कि पिछड़ेपन के चलते आकांक्षी जिला होने के बाद भी री भोई ने 16 हजार से ज्यादा उच्च जोखिम वाली आबादी की जांच कराई है. जिले के 60 गांवों में बीते एक साल से कोई भी नया मामला सामने नहीं आया है. दरअसल, 2011 तक भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की जनसंख्या 45,772,188 थी।यह क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम राज्यों से बना है. आबादी के लिहाज से मेघालय करीब तीसरे स्थान पर है जहां 39,39,344 लोगों की आबादी है और इनमें 85.9 फीसदी जनजातीय समुदाय से हैं. करीब 22 वर्ग किलोमीटर पहाड़ी वाले इस राज्य में पांच जिला पूर्वी खासी, री भोई, पूर्वी गारो, पश्चिमी गारो और दक्षिण गारो में टीबी का प्रकोप सबसे ज्यादा है.
पहाड़ी क्षेत्र होने के चलते यहां छोटी छोटी आबादी वाले गांव हैं जहां का आवागमन काफी मुश्किल है. पूर्वोत्तर राज्यों में टीबी का उपचार चुनौतीपूर्ण है और इसे अक्सर बहुत कलंकित माना जाता है।ऐसे में मेघालय सरकार ने पहली बार टीबी मरीजों के साथ साथ उनके तीमारदारों को भी अस्पतालों तक लाने के लिए निःशुल्क परिवहन सुविधा शुरू की है।इसके अलावा, मरीजों और उनके परिवारों के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और तेजी से ठीक होने के लिए हर महीने 2,000 रुपये की लागत से पोषण पोटली भी दी जा रही है।अब तक इस मुहिम का जमीनी स्तर पर काफी लाभ मिला है.
सबसे अलग है यहां की खासी चिकित्सा
आयुर्वेद, होम्योपैथी या फिर यूनानी की तरह मेघालय में खासी नामक पारंपरिक चिकित्सा काफी प्रसिद्ध है. लगभग सभी गांवों में इसी चिकित्सा के जरिए मरीजों का इलाज किया जाता है. हालांकि इस पद्धति को अभी तक चिकित्सा की मुख्यधारा से नहीं जोड़ा गया है. प्रशासन ने बड़ी संख्या में प्रशिक्षण देकर पारंपरिक हीलर या चिकित्सक बनाया है।जो संदिग्ध मरीजों की पहचान करने के बाद उन्हें अस्पताल तक पहुंचाने में मदद करते हैं.
2025 टीबी मुक्त का पीएम मोदी का संकल्प
टीबी मरीजों की पहचान के लिए देश में स्क्रीनिंग तेज़ कर दी गई है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य रखा है. इसी टारगेट को पूरा करने के लिए देशभर टीबी मरीजों की पहचान के लिए स्क्रीनिंग में काफी तेजी आ गयी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा किया था कि देश को साल 2025 में टीबी मुक्त कर लिया जाएगा।टीवी मुक्त भारत बनाने के लिए मार्च 2018 में पीएम मोदी ने अभियान की शुरुआत की थी.
Location :
Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
March 20, 2025, 14:50 IST