Last Updated:July 02, 2025, 08:12 IST
आज का इतिहास: 2 जुलाई 1757 को प्लासी की लड़ाई में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की हत्या के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपने पैर जमा लिए.

प्लासी की जीत के परिणामस्वरूप अंततः उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश शासन स्थापित हुआ.
हाइलाइट्स
प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला की हत्या हुईमीर जाफर ने सिराजुद्दौला के साथ धोखा कियाप्लासी की जीत से ब्रिटिश शासन की नींव पड़ीआज का इतिहास: बंगाल के अंतिम स्वतंत्र नवाब सिराजुद्दौला की हत्या के साथ ही उनके शासन की समाप्ति को भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन की नींव माना जाता है. प्लासी की लड़ाई में नवाब की सेना के सेनापति मीर जाफर ने उनके साथ धोखा किया. 23 जून, 1757 को बंगाल की सेना रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व वाली ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना से हार गयी. हार के बाद दो जुलाई 1757 को जवाब सिराजुद्दौला को पकड़ लिया गया. ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हुए समझौते के मुताबिक मोहम्मद अली बेग ने नवाब की हत्या कर दी. सिराजुद्दौला की हत्या को लेकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मीर जाफर के बीच समझौता हुआ था. बंगाल के अंतिम नवाब सिराजुद्दौला की कब्र पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद के खुशबाग में स्थित है.
18वीं शताब्दी के मध्य तक, मुगल साम्राज्य, जिसने कभी भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण कर रखा था, पतन की स्थिति में था. क्योंकि देशी भारतीय और यूरोपीय राज्य अपने स्वयं के राजनीतिक और आर्थिक शक्ति आधार बनाने का प्रयास कर रहे थे. ईस्ट इंडिया कंपनी इन प्रतिस्पर्धी शक्तियों में से एक थी. व्यापारिक वर्चस्व के लिए फ्रांसीसियों से लड़ते हुए, इसने स्थानीय राजनीति में भी अपनी भागीदारी शुरू कर दी, खास तौर पर भारत के सबसे अमीर प्रांत बंगाल में. बंगाली शासक सिराजुद्दौला का कंपनी के साथ कुछ समय से विवाद चल रहा था. प्लासी की लड़ाई से एक साल पहले जब कंपनी ने सात साल के युद्ध (1756-63) के छिड़ने के बाद फ्रांसीसियों के खिलाफ सैन्य तैयारियां रोकने से इनकार कर दिया तो उसने कलकत्ता (कोलकाता) में फोर्ट विलियम के गढ़ पर हमला करके उस पर कब्जा कर लिया था.
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कलकत्ता का ब्लैक होल
फोर्ट विलियम के आत्मसमर्पण के कुछ समय बाद सिराजुद्दौला ने कई कैदियों को एक छोटी सी कालकोठरी में बंद कर दिया. एक बचे ब्रिटिश व्यक्ति के विवरण के अनुसार 146 कैदियों में से 123 की इस भीड़ में मौत हो गई. ‘कलकत्ता का ब्लैक होल’ बाद में ब्रिटिश बदला और विजय के लिए एक उपयोगी औचित्य साबित हुआ. तब से यह काफी विवाद का विषय रहा है. फरवरी 1757 तक कंपनी और ब्रिटिश सेना ने कलकत्ता को वापस जीत लिया था. अगले महीने रॉबर्ट क्लाइव ने चंद्रनगर के फ्रांसीसी किले पर कब्ज़ा कर लिया. 1757 के वसंत में विरोधी सेनाओं के बीच कई छोटी-छोटी झड़पें हुईं.
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सत्ता में परिवर्तन की जरूरत
यह जानने पर कि सिराजुद्दौला फ्रांसीसियों के साथ बातचीत कर रहे हैं कंपनी ने फैसला किया कि अपने राजनीतिक और वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए शासन में बदलाव की जरूरत है. सिराजुद्दौला को खत्म करने की चाहत रखने वालों में वह अकेले नहीं थे. जगत सेठ बंगाल बैंकिंग परिवार के मुखिया महताब राय को चिंता थी कि नवाब अपने स्वार्थ के लिए सेठ की बड़ी संपत्ति जब्त कर लेंगे. इसलिए जगत सेठ और क्लाइव ने गुप्त रूप से प्रस्ताव रखा कि अगर सिराजुद्दौला युद्ध में हार जाते हैं तो वे सिराजुद्दौला के सेना कमांडरों में से एक मीर जाफर को बंगाल का नया नवाब बना देंगे. 23 जून 1757 को प्लासी में मीर जाफर को मौका मिला.
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सिराजुद्दौला के पास थे 50 हजार सैनिक
सिराजुद्दौला के पास 16,000 घुड़सवारों सहित लगभग 50,000 सैनिक थे. उनके पास 50 फील्ड गन भी थीं. फ्रांसीसियों से उधार लिए गए अधिकारी इस तोपखाने की कमान संभालते थे. लेफ्टिनेंट कर्नल रॉबर्ट क्लाइव ने ब्रिटिश सेना की कमान संभाली. पहले क्लर्क रहे क्लाइव ने कंपनी की सैन्य सेवा में प्रवेश किया था और उनकी सामरिक प्रतिभा और व्यक्तिगत बहादुरी ने उन्हें तेजी से पदोन्नति हासिल की थी. उनकी सेना में लगभग 3,000 सैनिक थे, जिनमें 2,100 भारतीय सिपाही (पैदल सेना) और लगभग 800 यूरोपीय सैनिक शामिल थे. इनमें 1 मद्रास यूरोपीय रेजिमेंट और 39वीं रेजिमेंट के 600 क्राउन सैनिक शामिल थे. क्लाइव के पास केवल दस फील्ड गन और दो छोटी हॉवित्जर तोपें थीं.
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क्या हुआ लड़ाई में
सेनाएं भागीरथी-हुगली नदी के तट पर, कलकत्ता (कोलकाता) से लगभग 100 मील (160 किमी) उत्तर में प्लासी के छोटे से गांव के पास मिलीं. नवाब की शुरुआती तोपें सीमा से बाहर थीं, जबकि विभिन्न झड़पें अनिर्णायक थीं. भारी बारिश के कारण लड़ाई बाधित हुई. ब्रिटिश तोपखाने वालों ने जल्दी से अपनी तोपों और गोला-बारूद को तिरपाल से ढक दिया. दुश्मन ऐसा करने में विफल रहे और उनकी तोपें युद्ध के काम की ना रहीं. नवाब के सैनिक आगे बढ़े, यह मानते हुए कि क्लाइव की तोपें भी बेकार हो गई हैं. उन्हें आग की बौछार का सामना करना पड़ा और जल्द ही वे अस्त-व्यस्त होकर पीछे हट गए. इस समय नवाब की घुड़सवार सेना की कमान संभाल रहे मीर जाफर ने लड़ने से इनकार कर दिया. दिन के अंत तक क्लाइव नवाब की हताश सेना को परास्त करने की स्थिति में था, जिससे उसके केवल 22 सैनिक मारे गए तथा 50 घायल हुए और 500 से अधिक सैनिक घायल हुए. बाद में मीर जाफर ने सिराजुद्दौला को मार डाला और उनकी जगह नवाब नियुक्त किया गया.
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इस जीत ने ब्रिटिश शासन स्थापित किया
लेकिन मीर जाफर एक कठपुतली शासक से ज्यादा कुछ नहीं था. उसे अंग्रेजों के साथ की गई संधियों के जरिए बंगाल का नियंत्रण छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. सिराजुद्दौला की हार का मतलब यह भी था कि बंगाल में अब फ्रांसीसी ताकत नहीं रह गई थी. प्लासी में जीत के बाद क्लाइव को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया. 1765 में उन्होंने कंपनी के लिए सम्राट शाह आलम द्वितीय से बंगाल के टैक्स और सीमा शुल्क राजस्व एकत्र करने का अधिकार ‘दीवानी’ हासिल किया. इसने क्षेत्र में ब्रिटिश सैन्य वर्चस्व की पुष्टि की और कंपनी को भारत में राजनीतिक हिस्सेदारी दी. कंपनी ने करों को इकट्ठा करने और अपने क्षेत्रों की निगरानी करने के लिए एक विशाल नागरिक और सैन्य प्रशासन बनाया. अब यह केवल एक वाणिज्यिक संगठन नहीं रहा, बल्कि एक साम्राज्यवादी शक्ति बन गया था. प्लासी की जीत के परिणामस्वरूप अंततः उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश शासन स्थापित हुआ.
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