नई दिल्ली. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था आराम से आगे बढ़ रही है, क्योंकि हमारा फाइनेंशियल सिस्टम बहुत मजबूत है. CNBC-TV18 Global Leadership Summit में गवर्नर ने केंद्रीय बैंक की चुनौतियों और उससे निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर भी अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि हमारा एक्सचेंज रेट दायरे में है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता को बताता है. विदेशी मुद्रा भंडार भी काफी बेहतर स्थिति में है, जिससे हमें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.
आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘वैश्विक चुनौयितों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था आराम से आगे बढ़ रही है, क्योंकि हमारा वित्तीय तंत्र काफी मजबूत और स्थिर है. हमारा अनुमान है कि इस साल भी ग्लोबल ट्रेड काफी ज्यादा रहने वाला है, जबकि चुनौतियां बरकरार हैं.’ अगले महीने होने वाली एमपीसी बैठक में ब्याज दरें घटाने की बात पर उन्होंने कहा कि मैं आज भी पॉलिसी रेट को लेकर अपनी बात पर कायम रहना चाहूंगा. आरबीआई गवर्नर ने पिछली बैठक में कहा था कि अभी रेपो रेट घटाने का सही समय नहीं है, जबकि महंगाई पर उन्होंने चिंता जताई थी.
भरा है आरबीआई का भंडार
शक्तिकांत दास ने कहा कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अभी दुनिया में चौथे नंबर पर है और हमारे पास 12 महीने का सामान आयात करने जितना रिजर्व है. इतना ही नहीं हमारी एक्सचेंज रेट पॉलिसी भी पूरी तरह दायरे में चल रही है, जो अर्थव्यवस्था की मजबूती की ओर इशारा करती है. मनी रेट और रेपो रेट दोनों ही एक-दूसरे के समानांतर चल रहे हैं, लिहाजा मनी मार्केट को लेकर भी चिंता की कोई बात नहीं है. गौरतलब है कि डॉलर के मुकाबले रुपया अभी सर्वकालिक निचले स्तर पर चल रहा है, बावजूद इसके आरबीआई ने इसे चिंता की बात नहीं बताई है.
आरबीआई गवर्नर ने अर्थव्यवस्था पर अपनी बात रखी.
असर डाल रहा क्लाइमेट चेंज
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के फाइनेंशियल सिस्टम को हमेशा नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. अभी क्लाइमेट चेंज का असर हमारे फाइनेंशियल सिस्टम पर दिख रहा है, लेकिन हम इसके जोखिम से निपटने की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि एमपीसी ने अक्टूबर में अपनी बैठक में रुख बदलकर ‘तटस्थ’ करने का फैसला किया था, जो हमारे रुख में अधिक लचीलेपन को दिखाता है.
केंद्रीय बैंकों की चुनौतियां गंभीर
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि सभी केंद्रीय बैंकरों के लिए चुनौतियां बहुत अधिक हैं.
लिहाजा हमें एक ओर बहुत कम या बहुत देर से करने और दूसरी ओर बहुत अधिक और बहुत जल्दी करने के बीच में से एक चुनना होता है. इस चुनौतीपूर्ण माहौल में विश्व स्तर पर सरकारी बांड जारी करने की दर बढ़ रही है, भले ही कई उन्नत अर्थव्यवस्थाओं ने आसान रास्ता अपना लिया है. इसकी वजह से सरकारों के ऊपर कर्ज भी बढ़ सकता है. ग्लोबल इकनॉमी पर भले ही अभी दबाव दिख रहा हो, लेकिन इस साल भी वैश्विक व्यापार ज्यादा रहने का अनुमान है.
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FIRST PUBLISHED :
November 14, 2024, 12:33 IST