नई दिल्ली. जरा फर्ज कीजिए कि एक आदमी अपने जीवनभर की गाढ़ी कमाई लगाकर सपनों का घर खरीदता है. बिल्डर उसे 3 साल में मकान बनाकर देने का न सिर्फ वादा करता है, बल्कि लिखित में एग्रीमेंट भी करवाया जाता है. बावजूद इसके 11 साल बीतने पर भी जब घर नहीं मिलता तो खरीदार अपना पैसा वापस मांगता है. अब कंपनी या बिल्डर न तो घर दे रहा और न ही पैसा वापस कर रहा, तो एक आम आदमी क्या करेगा. जाहिर है कि वह मदद के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएगा. अब कंपनी ने दावा कर दिया कि घर खरीदने वाला ग्राहक तो उपभोक्ता है ही नहीं, लिहाजा उपभोक्ता अदालत इस पर सुनवाई ही नहीं कर सकती है. ऐसे में उस आम आदमी पर भला क्या बीतेगी, अंदाजा लगाइये.
यह कोई कहानी नहीं है, बल्कि दिल्ली-एनसीआर में फ्लैट खरीदने वाले हजारों ग्राहकों की आप बीती है. ऐसी ही एक खरीदार हैं गुरुग्राम की रहने वाली निर्मल सतवंत सिंह. उन्होंने अपने जीवनभर की पूंजी लगाकर 24 जुलाई, 2013 को दिल्ली के एक बिल्डर वीएसआर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड से 114 एवेन्यू में 3 फ्लैट बुक कराए थे. इसके लिए निर्मल ने 2.4 करोड़ रुपये का भुगतान किया और कंपनी ने दावा किया उन्हें 3 साल के भीतर फ्लैट का पजेशन दे दिया जाएगा. 11 साल बीतने के बाद भी जब ऐसा नहीं हुआ तो निर्मल ने उपभोक्ता आयोग में शिकायत करके अपना पैसा और खुद को हुई परेशानियों का भी हर्जाना मांगा.
पैसा मांगने पर कंपनी ने क्या किया
निर्मल ने उपभोक्ता आयोग में शिकायत करने से पहले कई साल तक कंपनी के चक्कर काटे और उससे फ्लैट का पजेशन देने या फिर पैसा लौटाने की अपील की. ग्राहक ने जब-जब अपने पैसे मांगे कंपनी ने उन्हें पजेशन के लिए एक नया समय दे दिया. इतना ही नहीं बाकायदा एग्रीमेंट करके हर बार पजेशन की डेट बढ़ाती रही. दर्जनों बार गुहार लगाने के बाद भी जब कंपनी ने कोई सही और संतुष्टि वाला जवाब नहीं दिया तो मजबूरन निर्मल को उपभोक्ता आयोग का सहारा लेना पड़ा.
कंपनी ने क्या दी दलील
उपभोक्ता अदालत में कंपनी ने ऐसी-ऐसी दलील दी जिसे सुनकर किसी भी ग्राहक का पारा हाई हो सकता है. कंपनी ने रखरखाव, अपनी सीमाओं और अन्य पहलुओं के आधार पर ग्राहक की शिकायत को खारिज करने की दलीलें दी. इतना ही नहीं कंपनी ने तो यहां तक कहा कि उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत मकान खरीदने वाला ग्राहक उपभोक्ता की श्रेणी में ही नहीं आता. खरीदार ने यह फ्लैट मुनाफा कमाने के लिए लिया था, जो कॉमर्शियल उद्देश्यों के लिए था. इतना ही नहीं कंपनी ने तो फोरम पर ही सवाल उठा दिए और कहा कि उसे इस मामले की सुनवाई का ही अधिकार नहीं है. कहा कि फ्लैट के पजेशन में देरी की वजह प्रदूषण और सरकार की वजह से निर्माण का रोका जाना था. जब कुछ नहीं सुना गया तो बोली कि फ्लैट तो बनकर तैयार है, बस ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट का इंतजार है. इसके बाद पजेशन दे दिया जाएगा.
क्या बोला उपभोक्ता आयोग
कंपनी की सभी दलीलों को खारिज करके उपभोक्ता फोरम ने साफ कह दिया कि मकान खरीदार भी उपभोक्ता की श्रेणी में आता है, क्योंकि उसने फ्लैट के लिए भुगतान किया है. यह प्रॉपर्टी भी जिंदगी को चलाने के लिए खरीदी गई थी. इसके साथ ही आयोग ने कंपनी से ग्राहक के 2.4 करोड़ रुपये वापस करने का आदेश दिया. इसके साथ ही 5 लाख रुपये मानसिक प्रताड़ना और 50 हजार रुपये मुकदमे पर हुए खर्च के रूप में लौटाने का भी आदेश दिया. जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल 11 साल में भी पजेशन नहीं दे पाने को कंपनी की सेवा में कमी माना.
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FIRST PUBLISHED :
January 9, 2025, 08:55 IST