Last Updated:May 01, 2025, 09:34 IST
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए 8 साल की बच्ची की कस्टडी मां को दी. पिता को हर महीने के पहले और तीसरे शनिवार-रविवार को बच्ची से मिलने की अनुमति दी.

सुप्रीम कोर्ट ने एक पिता से बच्ची की कस्टडी छीन ली. (सांकेतिक फोटो)
हाइलाइट्स
सुप्रीम कोर्ट ने 8 साल की बच्ची की कस्टडी मां को दी.पिता को हर महीने पहले और तीसरे शनिवार-रविवार को मिलने की अनुमति.सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट का फैसला पलटा.नई दिल्ली: एक कपल अलग-अलग रहते हैं. दोनों की एक बेटी है. उम्र है आठ साल. वह किसके पास रहेगी, इसे लेकर अदालत में मामला था. केरल हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि 8 साल की बच्ची हर महीने 15-15 दिन अपने माता-पिता के साथ रहेगी. जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो मामला पलट गया. सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को पलटा और बच्ची की कस्टडी मां को दे दी. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी इस बात पर थी कि 15 दिन जब बच्ची अपने पिता की कस्टडी में थी, तब उसे एक दिन भी घर का खाना नहीं मिला. पिता अक्सर उसे होटल का ही बर्गर, पिज्जा और खाना खिलाता था. जबकि बच्ची घर का रोटी-चावल खाने को तरसती थी
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने बच्ची से बातचीत करने के बाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करने के कई कारण गिनाए. बेंच ने पाया कि बच्ची को घर का बना खाना नहीं मिल रहा था. वो अपने तीन साल के भाई से अलग थी और पिता के अलावा उसके साथ कोई नहीं था. ऐसे में भले ही पिता उसे प्यार करते हों लेकिन उनके घर का माहौल और परिस्थितियां बच्ची के अनुकूल नहीं थीं. दरअसर, सिंगापुर में नौकरी करने वाले पिता ने तिरुवनंतपुरम में एक घर किराए पर लिया था और अपनी बेटी के साथ रहने के लिए हर महीने आता-जाता था. इस दौरान वह होटल-रेस्टोरेंट से ही खाना खाता था.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, मामले में फैसला सुनाते हुए जस्टिस मेहता ने कहा, ‘लगातार रेस्टोरेंट/होटल का खाना खाने से एक बड़े आदमी की भी तबीयत खराब हो सकती है. फिर आठ साल की बच्ची की क्या बात करें. बच्ची को संपूर्ण स्वास्थ्य, विकास और बढ़त के लिए पौष्टिक घर का बना खाना चाहिए. दुर्भाग्य से पिता बच्ची को ऐसा पोषण देने की स्थिति में नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘वो पिता को घर का बना खाना मुहैया कराने का निर्देश देने पर विचार करता, लेकिन बच्ची को 15 दिन की अपनी कस्टडी के दौरान पिता के अलावा किसी का साथ नहीं मिलता है. यह एक अतिरिक्त पहलू है जो बच्ची की कस्टडी के लिए उनके दावे के खिलाफ जाता है.’
मां के घर मिलेगा बेहतर माहौल
यह जानकर कि मां घर से काम करती है और उसके माता-पिता उसके साथ हैं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्ची को मां के घर पर अपने भाई के साथ बेहतर साथ मिलेगा. इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश पर भी नाराजगी जताई जिसमें तीन साल के बेटे की हर महीने 15 दिन की कस्टडी पिता को दी गई थी. इसे पूरी तरह से अनुचित बताते हुए कहा गया कि इससे बच्चे के भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या आदेश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, ‘इस प्रकार बच्ची को उसकी मां के घर जो भावनात्मक और नैतिक समर्थन मिलता है. वह अंतरिम कस्टडी अवधि के दौरान पिता द्वारा प्रदान किए जा रहे समर्थन से कहीं अधिक है. 15 दिनों की वह अवधि, जिसमें बेटी अपने पिता के साथ रहेगी, उसे अपने तीन साल के भाई से भी अलग करेगी.’ सुप्रीम कोर्ट ने पिता को हर महीने के पहले और तीसरे शनिवार और रविवार को बेटी की अंतरिम कस्टडी लेने और हर हफ्ते दो दिन वीडियो कॉल पर बातचीत करने की अनुमति दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन दो दिनों में से किसी भी दिन, पिता बच्ची से मिलने और चार घंटे के लिए उससे मिलने का हकदार होगा. लेकिन यह बच्ची की सहमति और एक काउंसलर की देखरेख के अधीन होगा.
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