बिहार की राजनीति में कौन होगा सोनम की तरह बेवफा? इन चेहरों पर है सबकी नजर

2 days ago

Last Updated:June 09, 2025, 18:51 IST

Sonam Bewafa in Bihar Chunav: राजा रघुवंशी हत्याकांड में पत्नी सोनम रघुवंशी की गिरफ्तारी के बाद 'सोनम बेवफा' ट्रेंड कर रहा है. लोग पूछ रहे हैं कि इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में गठबंधन दलों में से कौन नेता या प...और पढ़ें

बिहार की राजनीति में कौन होगा सोनम की तरह बेवफा? इन चेहरों पर है सबकी नजर

बिहार की आगामी चुनाव में कौन होगा सोनम की तरह बेवफा?

हाइलाइट्स

चिराग पासवान ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा किया.उपेंद्र कुशवाहा ने सीटें कम मिलने पर नाराजगी जताई.नीतीश कुमार का गठबंधन बदलने का इतिहास रहा है.

पटना. देश में इस समय ‘सोनम बेवफा हो गई’ काफी ट्रेंड कर रहा है. इंदौर निवासी राजा रघुवंशी की हत्या के मामले में पत्नी सोनम रघुवंशी गिरफ्तार हुई हैं. बीते 14 दिनों से सोनम रघुवंशी गायब थीं. लेकिन सोमवार सुबह सोनम की गिरफ्तारी ने इस केस से पर्दा उठा दिया है. अब सोशल मीडिया पर ‘सोनम बेवफा’ काफी ट्रेंड करने लगा है. क्योंकि बिहार विधानसभा का चुनाव भी इसी साल नवंबर महीने में होने वाला है. ऐसे में सोशल मीडिया पर एनडीए और महागठबंधन को लेकर भी लोग सवाल पूछ रहे हैं कि क्या बिहार की राजनीति में कौन होगा सोनम की तरह बेवफा? बिहार की राजनीति में गठबंधनों का इतिहास, विश्वासघात, अवसरवाद और बदलते समीकरणों से भरा रहा है. राजा रघुवंशी हत्याकांड और उनकी पत्नी सोनम रघुवंशी की साजिश को बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव 2025 के संदर्भ में लोग जोड़कर देख रहे हैं. ऐसे में नजर डालते हैं कि क्या कोई पार्टी या नेता बिहार चुनाव से पहले ‘सोनम की तरह बेवफा’ साबित हो सकता है?

प्रमुख चेहरे और संभावित ‘विश्वासघात’
चिराग पासवान: लोजपा (रामविलास) के सुप्रीमो और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान अपने बयानों से पिछले कुछ दिनों से चर्चा में हैं. चिराग पासवान ने हाल ही में आरा रैली में दावा किया कि उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, जो एनडीए के लिए एक बड़ा संकेत है. यह बयान गठबंधन में असंतोष और उनकी महत्वाकांक्षा को दर्शाता है. अगर सीट बंटवारे में उनकी पार्टी को कम सीटें मिलीं तो चिराग ‘सोनम की तरह’ गठबंधन को धोखा दे सकते हैं और तीसरे मोर्चे या विपक्षी गठबंधन जैसे जन सुराज पार्टी के साथ बातचीत शुरू कर सकते हैं.

उपेंद्र कुशवाहा (राष्ट्रीय लोक मोर्चा): कुशवाहा ने भी मुजफ्फरपुर रैली में साफ किया कि अगर उनकी सीटें कम की गईं तो वे चुप नहीं बैठेंगे. उनका यह रुख एनडीए के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. कुशवाहा का इतिहास रहा है कि वे गठबंधन बदलते रहे हैं. 2014 में एनडीए, फिर महागठबंधन और अब फिर एनडीए में हैं. ऐसे में अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे महागठबंधन की ओर रुख कर सकते हैं.

पशुपति कुमार पारस: चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस पहले ही एनडीए में अपनी उपेक्षा से नाराज हैं. उनकी पार्टी (रालोजपा) को कम महत्व मिलने की स्थिति में वे गठबंधन पहले ही छोड़ने का ऐलान कर चुके हैं. हाल ही में तेजप्रताप के शादी वाले प्रकरण में अनुष्का यादव के भाई आकाश यादव को पार्टी से बाहर निकालकर वह आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को खुश कर चुके हैं. सूत्रों की मानें तो पारस का झुकाव महागठबंधन की तरह है.

जीतन राम मांझी (HAM): मांझी का इतिहास भी गठबंधन बदलने का रहा है. 2014 में जेडीयू छोड़कर महागठबंधन में गए, फिर 2019 में एनडीए में लौट आए. अगर हम को कम सीटें मिलीं तो मांझी भी गठबंधन के प्रति ‘बेवफाई’ दिखा सकते हैं.

नीतीश कुमार: नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के सबसे बड़े ‘गठबंधन स्विचर’ रहे हैं. 2013 में एनडीए छोड़कर महागठबंधन में गए, 2017 में वापस एनडीए में आए, 2022 में फिर महागठबंधन में गए और 2024 में फिर एनडीए में लौटे. नीतीश की ‘विश्वासघात’ की प्रवृत्ति जगजाहिर है. अगर बीजेपी उन पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए दबाव डालती है या सीट बंटवारे में जेडीयू को कम सीटें मिलती हैं तो नीतीश फिर से पाला बदल सकते हैं.

मुकेश सहनी (VIP): मुकेश सहनी की पार्टी VIP ने 2020 में एनडीए के साथ गठबंधन किया था, लेकिन बाद में महागठबंधन में शामिल हो गए. उनकी निषाद समुदाय पर मजबूत पकड़ है, लेकिन अगर सीट बंटवारे में उनकी पार्टी को कम सीटें मिलीं तो वे फिर से एनडीए की ओर जा सकते हैं. सहनी का अवसरवादी रुख उन्हें ‘सोनम’ की तरह बेवफा बना सकता है.

वाम दल (CPI, CPI(M), CPI(ML)): वाम दलों ने 20 मई 2025 को भारत बंद का ऐलान किया है, जिसे महागठबंधन समर्थन दे रहा है. लेकिन अगर सीट बंटवारे में उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे तीसरा मोर्चा बना सकते हैं या कुछ सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार उतार सकते हैं, जिससे महागठबंधन को नुकसान होगा.

कांग्रेस: कांग्रेस बिहार में कमजोर स्थिति में है, लेकिन राहुल गांधी की सक्रियता से पार्टी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश में है. अगर आरजेडी कांग्रेस को कम सीटें देती है तो कांग्रेस गठबंधन से अलग होकर तीसरे मोर्चे की ओर जा सकती है या कुछ सीटों पर अकेले लड़ सकती है.

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