पटना. बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा शीघ्र ही होने वाली है. इस बार मुख्य मुकाबला एनडीए गठबंधन और महागठबंधन के बीच है. इन दोनों अलायंस में बिहार की अधिकतर पार्टियों का गठजोड़ है. एनडीए में जहां भारतीय जनता पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को मिलाकर पांच दल शामिल हैं. वहीं, महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, विकासशील इंसान पार्टी के अतिरिक्त तीन वामपंथी दल- सीपीआईएमएल, सीपीएम और सीपीआई शामिल है. एक गठबंधन में पांच तो दूसरे में छह पार्टियां हैं. इसके अतिरिक्त प्रशांत किशोर की जान सुराज पार्टी, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम और शिवदीप लांडे की जय हिंद सेन भी चुनाव में अहम भागीदार होगी. अब जब चुनाव का बिगुल बजने में थोड़े ही दिनों का समय बचा है तो हम 2020 के चुनाव से लेकर शुरुआती चुनाव तक के इतिहास के बारे में जानते हैं. बीते चुनावों में का क्या इतिहास रहा और कौन सी पार्टी को राज्य की जनता ने शासन करने का अधिकार दिया यह जानते हैं.
बता दें कि वर्ष 1951 से लेकर 2020 तक 17 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. ऐसे तो यह आंकड़ा 16 होना चाहिए था, लेकिन 2005 की फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी या गठबंधन की सरकार नहीं बन पाने के कारण अक्टूबर में दुबारा चुनाव कराए गए थे. इस कारण यह आंकड़ा 17 है. तो लिए हम शुरुआत 2020 बिहार विधानसभा चुनाव से करते हैं और इसका इतिहास जानते हैं.
2020 में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई नीतीश कुमार की जेडीयू
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में जेडीयू ने 122 जबकि भाजपा ने 121 सीटों पर चुनाव लड़ा था. जीतन राम मांझी को जदयू ने अपने खाते से 7 सीटें दी थी, वहीं भाजपा ने मुकेश सहनी की वीआईपी को अपने कोटे से सीटें दी थी. इस बार लोक जनशक्ति पार्टी ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा था. जबकि दूसरी ओर महागठबंधन में कांग्रेस, राजद और वाम दलों-सीपीआईएमएल, सीपीआई, सीपीएम का गठजोड़ था. चुनाव नतीजों में राजद ने 75 सीटें जीती थी और वह सबसे बड़ी पार्टी बनी. भारतीय जनता पार्टी ने 74 सीटें जीती और दूसरे नंबर की पार्टी बनी. वहीं, जेडीयू ने 43 सीटें ही मिली और 2010 की सबसे बड़ी पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. कांग्रेस को 19 सीटें मिली. लोजपा को एक सीट मिला, जबकि अन्य दलों को 31 सीटें मिली. सरकार एनडीए की बनी थी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बने थे.
महागठबंधन की सरकार में मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार
2015 की चुनाव की बात करें तो अक्तूबर-नवंबर में चुनाव हुए थे और पूरी प्रक्रिया पांच चरणों में पूरी की गई थी. 2015 के चुनाव में भी दो प्रमुख गठबंधन थे. एक तरफ जदयू, राजद, कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल और समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) का महागठबंधन था. दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने साथ लड़ा था. 243 सीटों पर हुए चुनाव में 122 सीट के बहुमत के लिए चाहिए थे. इनमें राजद और जेडीयू बराबर-बराबर 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था. भारतीय जनता पार्टी ने 157 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. चुनाव नतीजे आए तो राजद 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. जनता दल यूनाइटेड ने 71 सीटे जीती थी. भारतीय जनता पार्टी को 53 सीटें मिलीं. इस चुनाव में कांग्रेस को 27 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी.चुनाव के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने और गठबंधन में शामिल राजद के नेता और विधायक तेजस्वी प्रसाद यादव डिप्टी सीएम बने थे.
आरजेडी की करारी हार, बिहार में फिर से नीतीश सरकार
वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड, बीजेपी के साथ गठबंधन में थी. इस चुनाव में नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. जेडीयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिनमें 115 पर जीत दर्ज की थी. भाजपा ने 102 में 91 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, आरजेडी 168 सीटों पर लड़कर महज 22 सीटे ही जीत पाई थी. जबकि, लोक जनशक्ति पार्टी 75 सीटों में से केवल 3 सीटें ही जीत सकी थी. कांग्रेस ने इस बार आरजेडी से अलग होकर चुनाव लड़ा था और सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन, उसे सिर्फ चार सीटें ही मिली थी. कांग्रेस की यह बेहद ही करारी हार थी. इस बार भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने थे.
एक साल के भीतर दो बार हुए बिहार विधानसभा चुनाव
वर्ष 2005 में दो बार फरवरी और अक्तूबर में चुनाव करवाने पड़े थे. दरअसल, 2003 में जनता दल के शरद यादव गुट, लोक जनशक्ति पार्टी, जॉर्ज फर्नांडीज और नीतीश कुमार की समता पार्टी ने मिलकर जदयू का गठन किया था. तब लालू यादव के करीबी रहे नीतीश कुमार ने उन्हें चुनौती दी. फरवरी 2005 में हुए चुनाव में राबड़ी देवी के नेतृत्व में राजद ने 2015 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन इनमें से 75 सीटें ही जीत पाया. जबकि,जेडीयू ने 138 सीटों पर चुनाव लड़ा और 55 सीटें जीती थी. भाजपा को 103 में से 37 सीटे प्राप्त हुईं तो कांग्रेस को 84 में से महज 10 सीटों पर जीत हासिल हुई. ऐसे में 122 सीटों पर स्पष्ट बहुमत किसी को नहीं मिल पाया और कोई गठबंधन मिलकर भी स्थायी सरकार नहीं बन पाया.
नवंबर के चुनाव में नीतीश सरकार ने बनाई स्थाई सरकार
ऐसे में कुछ महीनों के लिए राष्ट्रपति शासन लागू हुआ और अक्टूबर-नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए. इस चुनाव में जदयू 139 सीटों पर लड़कर 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने 102 में 55 सीटें जीतीं. लालू यादव की राष्ट्रीय जनता पार्टी 175 सीटों पर लड़ी, लेकिन वह 54 सीटें ही जीत पाई. लोजपा को 203 में से सिर्फ 10 सीटें ही प्राप्त हो पाई. वहीं कांग्रेस 51 में से महज 9 सीटें जीत पाई. बता दें कि इसी वर्ष रामविलास पार्टी ने अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया था. एक बार फिर इस चुनाव में नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ सरकार बनाई.
1997 से 2000 तक घटनाक्रम काफी उथल-पुथल वाला
बिहार के इतिहास में वर्ष 2000 का विधानसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है. दरअसल, चुनाव मार्च 2000 में हुए थे और नवंबर 2000 में झारखंड, बिहार से अलग हो गया था. लेकिन, चूंकि एकीकृत चुनाव हुए थे तो इसमें 324 सीटें हुआ करती थी. विधानसभा में तब बहुमत के लिए 162 सीटों की आवश्यकता रहती थी. इस चुनाव में राजद ने 293 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 124 सीटें जीती थी. भाजपा को 168 में 67 सीटें मिली तो समता पार्टी को 120 में 34 सीटें जीतीं. कांग्रेस को 324 में से 23 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी. इस वर्ष राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं थीं. इससे पहले का घटनाक्रम भी काफी उथल-पुथल वाला था, क्योंकि 1997 में तीन हफ्तों तक बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था. चारा घोटाले में कार्रवाई के बाद इस्तीफा देने पर लालू यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया था.
1995 में मुख्यमंत्री बने लालू यादव, 1997 में बनाई आरजेडी
वर्ष 1995 का विधानसभा चुनाव भी काफी दिलचस्प था. बिहार में राजद था और ना जदयू. 1994 में नीतीश कुमार ने समता पार्टी बनायी थी और लालू यादव से अलग हो गए थे. उसके पहले लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में जनता दल ने 264 सीटों पर बिहार में चुनाव लड़ा था और 167 सीटें जीती थी. 324 सदस्य विधानसभा में 162 का बहुमत होता था. भाजपा ने 315 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन महज 41 सीटें ही जीत पाई थी. कांग्रेस 320 सीटों पर लड़कर 29 सीटें जीती थी. उस समय झामुमो भी बिहार से ही चुनाव लड़ता था. झामुमो ने 63 में से 10 सीटें जीती थी. समता पार्टी को 310 में से महज 7 सीटें मिली थी. इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी लालू यादव की थी और बहुमत भी प्राप्त कर चुकी थी. लिहाजा लालू यादव मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन, 1997 में चारा घोटाला के कारण बिहार के मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा और उन्होंने राबड़ी देवी को सीएम बना दिया. वर्ष 1997 में जनता दल में फूट भी हो गई तो 1997 में लालू प्रसाद ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का गठन किया.
लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी
वर्ष 1990 के विधानसभा चुनाव की पृष्ठभूमि में वर्ष 1988 भी था. इस वर्ष कई दलों का विलय हुआ था और जनता दल अस्तित्व में आया था. बिहार चुनाव भी जनता दल ने लड़ा था. 276 सीटों पर चुनाव लड़कर जनता दल ने 122 सीटें जीतीं और सबसे बड़ी पार्टी बनकर खड़ी हुई. बहुमत का आंकड़ा 162 था. कांग्रेस 323 सीटों पर लड़कर 71 सीटें जीत पाई थी और भाजपा को 237 सीटों में 39 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया 109 पर लड़कर 143 सीटें जीती थी. जेएमएम 82 में से 19 सीटें जीत पाया था. तब बिहार में लालू यादव के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी.
एक ही कार्यकाल में चार मुख्यमंत्री बनाने पड़े
वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. 323 विधानसभा सीटों में कांग्रेस को 196 सीटों पर विजय प्राप्त हुई और प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनी. लेकिन, कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी के कारण एक ही कार्यकाल में चार मुख्यमंत्री बनाने पड़े थे. 1985 के विधानसभा चुनाव में लोक दल को 261 में 46 भाजपा को 234 में से 16 सीटें मिली थी. उस समय जनता पार्टी भी मैदान में थी और जो बाद में जनता दल में शामिल हो गई थी. जनता पार्टी को 229 में 13 सीटें मिली थी. 1985 से 1988 तक बिहार के मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे थे. उसके लगभग 1 साल बाद भागवत झा आजाद, फिर कुछ महीनो तक सत्येंद्र नारायण सिंह और फिर डॉ जगन्नाथ मिश्रा बिहार के मुख्यमंत्री थे.
करीब 3 साल तक सीएम रहे डॉक्टर जगन्नाथ मिश्रा
वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस (इंदिरा) चुनाव लड़ रही थी और 311 में से 169 सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस (यू) 185 में से 14 सीटें मिली थी. अब भाजपा ने 246 में 21 सीटें जीती थी. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने 135 में से 23 सीटों पर जीत हासिल की थी. जनता पार्टी को तब 254 में 42 सीटें मिली थी. इस कार्यकाल में 4 महीने तक राष्ट्रपति शासन भी लागू रहा था. उसके बाद करीब 3 साल के लिए डॉक्टर जगन्नाथ मिश्रा और एक साल के लिए चंद्रशेखर सिंह बिहार के मुख्यमंत्री बने थे.
कर्पूरी ठाकुर और राम सुंदर दास बने बिहार के मुख्यमंत्री
वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव में बिहार की 311 सीटों पर जनता पार्टी ने चुनाव लड़ा था जिसमें 214 सीटों पर जीत प्राप्त की थी. कांग्रेस ने 286 में 57 सीटें, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने 73 में से 21 सीटें जीती थी. जनता पार्टी की सरकार बनी थी. लगभग 2 महीने तक राष्ट्रपति शासन था. इसके बाद लगभग एक साल के लिए 1979 में कर्पूरी ठाकुर और फिर 1980 तक राम सुंदर दास बिहार के मुख्यमंत्री बने थे.
लगभग 2 महीने तक राष्ट्रपति शासन लागू रहा
इससे पहले वर्ष 1972 में विधानसभा चुनाव हुए थे जिसमें कांग्रेस को 269 में से 167 सीटें मिली थी. कांग्रेस 272 में से 30 सीटें जीत पाई थी. इसके अतिरिक्त भारतीय जनसंघ ने भी चुनाव में भी अपना पना दम दिखाने की कोशिश की थी. 270 में से 25 सीटें जीती थी. तब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) को 256 सीटों पर चुनाव लड़कर महज 33 सीटें प्राप्त हुई थी. इस विधानसभा के कार्यकाल में लगभग 2 महीने तक राष्ट्रपति शासन लागू रहा था. इसके बाद एक या दो साल के लिए केदार पांडे, अब्दुल गफूर और डॉ जगन्नाथ मिश्रा बिहार के सीएम बने थे.
दरोगा प्रसाद राय, कर्पूरी ठाकुर, भोला पासवान शास्त्री बने सीएम
वर्ष 1969 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेकिन उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. 318 सीटों पर विधानसभा चुनाव में बहुमत के लिए 160 सीटें चाहिए थी. लेकिन, कांग्रेस को 318 सीटों में से महज 118 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी. भारतीय जनसंघ को 303 में 34 सीटें मिली थी. इस चुनाव में एसएसपी को 191 में 52 और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 162 में से 25 सीटें मिली थी. हरिहर सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. इस कार्यकाल में राष्ट्रपति शासन के बाद दरोगा प्रसाद राय, कर्पूरी ठाकुर और भोला पासवान शास्त्री थोड़े-थोड़े महीनों के लिए मुख्यमंत्री बनाए गए थे.
थोड़े-थोड़े समय के लिए चार मुख्यमंत्री
इसके पहले 1967 में विधानसभा चुनाव हुआ था जिसमें कांग्रेस को 318 में से 128 सीटें, एसएसपी को 199 में से 68 और जन क्रांति दल को 60 में से 13 सीटें मिली थी. तीनों दलों में से थोड़े-थोड़े समय के लिए चार मुख्यमंत्री बने थे. भारतीय जनसंघ ने 271 में से 26 सीटें प्राप्त की थी.
1952 से 1962 का बिहार विधानसभा का इतिहास
देश की स्वतंत्रता के बाद 1952 में बिहार विधानसभा का पहली बार चुनाव हुआ था. कई पार्टियों ने इसमें भाग लिया, लेकिन कांग्रेस ही उस समय सबसे बड़ी पार्टी बनी. उस चुनाव में कांग्रेस को 322 में से 239 सीटें मिली थी. जिसमें कांग्रेस सत्ता में आई. श्रीकृष्ण सिंह बिहार के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने और डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा राज्य के पहले उपमुख्यमंत्री बने. इसके बाद फिर 1957 में चुनाव हुआ और इसमें भी कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल की. कांग्रेस ने 312 में से 210 सीटें जीतीं. इसके बाद 1962 में चुनाव हुए जिसमें 318 में से 185 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की. इस चुनाव में स्वतंत्र पार्टी को 259 में से 50 सीटें मिली थी. कांग्रेस पार्टी के पंडित बिनोदानंद झा ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.
वर्ष 1937 में हुआ था बिहार विधानसभा का गठन
जानकारी के लिये बता दें कि बिहार विधानसभा का गठन स्वतंत्रता मिलने से पहले ही वर्ष 1937 में हुआ था. उस काउंसिल के पहले चेयरमैन सच्चिदानंद सिन्हा थे और पहले स्पीकर हम दयालु सिंह चुने गए थे. गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के व्यवस्थाओं के अनुसार जनवरी 1937 में बिहार विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए थे. इसके बाद 20 जुलाई 1937 को डॉ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में पहली सरकार का गठन हुआ था. 22 जुलाई में से 30 को विधानमंडल का अधिवेशन हुआ.फिर वर्ष 1952 में बिहार विधानसभा का पहली बार चुनाव हुआ था जिसमें कांग्रेस सत्ता में आई थी.श्रीकृष्ण सिंह बिहार के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने और डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा राज्य के पहले उप मुख्यमंत्री बने.