भारत-अमेरिका ट्रेड डील पर संकट के बादल, 1 अगस्त से पहले समझौता मुश्किल! कहां अटक रहा पेच?

11 hours ago

भारत और अमेरिका के बीच संभावित मिनी ट्रेड डील पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. 1 अगस्त की डेडलाइन नजदीक है, लेकिन अब तक पांच दौर की बातचीत के बावजूद कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है. भारत की व्यापारिक टीम हाल ही में वॉशिंगटन से बिना किसी समझौते के लौटी है. अब खबर है कि अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल भारत दौरे पर आ रहा है, लेकिन कई रिपोर्ट्स के अनुसार डील की संभावनाएं कमजोर हो चुकी हैं.

दरअसल, अमेरिका चाहता है कि भारत अमेरिकी कृषि और डेयरी प्रोडक्ट्स को अपने बाजार में ज्यादा पहुंच प्रदान करे. इनमें जेनेटिकली मॉडिफाइड अनाज और डेयरी आइटम शामिल हैं, जो भारत की नीतियों और सांस्कृतिक मान्यताओं से टकराते हैं. भारत का कृषि सेक्टर पहले से ही असंगठित और छोटे किसानों से जुड़ा हुआ है, जो अमेरिकी कंपनियों के मुकाबले कॉम्पिटिशन में कमजोर साबित हो सकते हैं.

वहीं, भारत में डेयरी प्रोडक्ट्स का धार्मिक और सामाजिक महत्व भी है. अमेरिकी डेयरी में अक्सर ऐसे पशु शामिल होते हैं जिन्हें मांसाहारी डाइट दिया जाता है, जो भारत की बहुसंख्यक शाकाहारी आबादी के लिए स्वीकार्य नहीं है. ऐसे में भारत के लिए इन मांगों को स्वीकार करना न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक रूप से भी जोखिम भरा हो सकता है.

क्यों अहम है यह डील?
ट्रंप प्रशासन ने अप्रैल में चेतावनी दी थी कि अगर भारत अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार नहीं खोलेगा तो 26% तक का टैरिफ भारतीय निर्यात पर लगाया जा सकता है. भारत का टेक्सटाइल, फार्मा, केमिकल और ज्वैलरी सेक्टर इससे खास तौर पर प्रभावित होगा. यह ऐसे समय में होगा जब भारत खुद को चीन का ऑप्शन बनाकर ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है.

भारत की रणनीति: बातचीत जारी रखो, समय खींचो
भारत ने अब तक तीन रणनीतिक हथियारों का इस्तेमाल किया है: निरंतर बातचीत से टैरिफ की धमकी को टालना, सेंसिटिव क्षेत्रों पर झुकाव न दिखाना और अमेरिका की चीन विरोधी रणनीति में अपनी भू-राजनीतिक अहमियत का लाभ उठाना. अभी तक ट्रंप प्रशासन ने भारत को कोई औपचारिक टैरिफ नोटिस नहीं भेजा है, जो इस बात का संकेत हो सकता है कि अमेरिका अभी बातचीत के दरवाजे बंद नहीं करना चाहता.

आगे क्या?
हाल ही में अमेरिकी ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट ने संकेत दिया कि डील की क्वालिटी टाइमिंग से ज्यादा अहम है. यानी अगर बातचीत पॉजिटिव दिखे तो डेडलाइन आगे बढ़ सकती है. लेकिन उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर बातचीत में प्रगति नहीं होती तो टैरिफ के जरिए दबाव बढ़ाया जाएगा.

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