मंगलसूत्र की हिंदू शादियों में सिंदूर और काफी अहमियत रहती है. दोनों को सुहाग की निशानी माना जाता है. शादी का ये पवित्र धागा मंगलसूत्र आजकल राजनीतिक कारणों से चर्चा में है. दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार अभियान में मंगलसूत्र बड़ा मुद्दा बन गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी जनसभा के दौरान कहा कि कांग्रेस और इंडी गठबंधन की नजर आपके मंगलसूत्र व संपत्ति पर है. इसके बाद सभी राजनीतिक दलों की ओर से इस पर प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि मंगलसूत्र की शुरुआत कहां से हुई थी? भारत के अलावा किस-किस देश में शादीशुदा महिलाएं मंगलसूत्र पहनती हैं?
मान्यताओं के मुताबिक, मंगलसूत्र पत्नी और पति को पवित्र रिश्ते में जोड़ता है. शादी होते ही काफी महिलाएं मंगलसूत्र पहनना शुरू कर देती हैं. ज्योतिषविदों की मानें तो मंगलसूत्र मे कई देवी देवताओं का वास होता है. यह भी माना जाता है कि मंगलसूत्र एक ऐसा पवित्र बंधन है जो पति और पत्नी के रिश्ते को बुरी नजर से बचाता है. सुहागिन महिलाओं के मंगलसूत्र पहनने की परंपरा काफी पुरानी है. इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है.
कब और कहां से हुई शुरुआत?
देवघर के ज्योतिषाचार्य पं. नंदकिशोर मुद्गल के मुताबिक, मंगलसूत्र को पति पत्नी का रक्षा कवच माना जाता है. मंगलसूत्र के इतिहास का जिक्र आदि गुरु शंकराचार्य की किताब ‘सौंदर्य लहरी’ में भी मिलता है. इतिहासकारों के मुताबिक, मंगलसूत्र पहनने की परंपरा छठी शताब्दी में शुरू हुई थी. मंगलसूत्र के साक्ष्य मोहन जोदाड़ो की खुदाई में भी मिले हैं. मंगलसूत्र पहनने की शुरुआत सबसे पहले दक्षिण भारत से हुई. इसके बाद धीरे-धीरे भारत में ही नहीं बल्कि कुछ दूसरे देशों में भी यह प्रचलित हो गया. तमिलनाडु में इसे थाली या थिरू मंगलयम कहते हैं. वहीं, उत्तर भारत में इसे मंगलसूत्र कहा जाता है.
मंगलसूत्र का शाब्दिक अर्थ ‘एक शुभ धागा’ है, जिसे दुल्हन के गले में बांधा जाता है.
क्या है मंगलसूत्र का मतलब?
मंगलसूत्र का शाब्दिक अर्थ ‘एक शुभ धागा’ है, जिसे दुल्हन के गले में बांधा जाता है. वह इसे जीवनभर पहने रहती है. यह आमतौर पर हल्दी में डुबोए गए काले या पीले धागे में पिरोए गए काले मोतियों वाला हार होता है. हालांकि, अलग-अलग क्षेत्रों में इसका स्वरूप भी बदल जाता है. कुछ जगह पर मंगलसूत्र में सोने, सफेद या लाल मोतियों को भी जोड़ा जाता है. भारत, नेपाल, बंग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं के अलावा सीरियाई ईसाइयों जैसे गैर-हिंदू लोग भी मंगलसूत्र पहनते हैं.
कुछ जगहों पर नहीं पहनतीं?
भारत में ऐसे कई समुदाय हैं, जिनमें मंगलसूत्र नहीं पहना जाता है. इसके बजाय दूसरे वैवाहिक प्रतीकों को पहना जाता है. उत्तर भारत के बड़े हिस्से में शादीशुदा महिलाएं पैरों में बिछुआ, कांच की चूड़ियां, गले में कंठी पहनती हैं. भारतीय आभूषणों की इतिहासकार डॉ. उषा बालकृष्णन बताती हैं कि विवाह के बाद दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाने की प्रथा आधुनिक अवधारणा है, जो व्यवसायों की विपणन रणनीतियों के कारण संभव हुई है. हालांकि, वह यह भी बताती है कि मंगलसूत्र के महत्व को आदि शंकराचार्य ने सौंदर्य लहरी में भी बताया है. हिंदू परंपरा के अनुसार, मंगलसूत्र पति की लंबी उम्र के लिए पहना जाता है.
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कब उतारा जाता है मंगलसूत्र?
प्राचीन काल में दुल्हन के आभूषण बुढ़ापे और विधवा होने पर आर्थिक सुरक्षा के तौर पर भी काम करते थे. डॉ. बालाकृष्णन और मीरा सुशील कुमार ने अपनी किताब ‘इंडियन ज्वेलरी: द डांस ऑफ द पिकॉक’ में लिखा है कि ऐतिहासिक रूप से भारत में गहने वैवाहिक जीवन के शुभ प्रतीक थे. केवल विधवा होने पर या सांसारिक मोहमाया को त्यागते समय उन्हें उतारा जाता था. किताब में अथर्वेद के बारे में लिखा गया है कि विवाह समारोह दुल्हन के पिता के यह कहने के साथ समाप्त होता था कि मैं सोने के आभूषणों से सजी इस लड़की को तुम्हें सौंपता हूं. वह बताती हैं कि मंगलसूत्र शुभ धागे के रूप में माना जाता था. शुभ अवसरों पर हल्दी या कुमकुम में भिगोया हुआ धागा शरीर के नाड़ी बिंदुओं जैसे गर्दन या कलाई पर बांधा जाता है.
समय के साथ मंगलसूत्र की बनावट में भी अंतर आ गया.
मंगलसूत्र से जुड़ी हुई मान्यताएं
समय के साथ मंगलसूत्र की बनावट में भी अंतर आ गया. समय के साथ मंगलसूत्र के तौर पर पीले धागे की जगह काले और सोने के मोतियों ने ले ली. मंगलसूत्र को लेकर देश में मान्यताएं कम नहीं हैं. माना जाता है कि इसमें मौजूद काले मोती भगवान शिव का रूप हैं और सोने का संबंध माता पार्वती से है. मान्यता है कि मंगलसूत्र में 9 मनके होते हैं. ये मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इन 9 मनकों को पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि के प्रतीक के तौर पर भी माना गया है. मंगलसूत्र महिलाओं के 16 श्रृंगार में एक है.
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FIRST PUBLISHED :
April 24, 2024, 19:32 IST