'मजून-ए-इश्क' से लेकर गौरया के दिमाग तक-ताकत के लिए क्या खाते थे राजा-महाराजा

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Last Updated:July 10, 2025, 19:33 IST

ताकत के लिए आखिर क्या क्या खाते थे राजा- महाराजा और नवाब. जानेंगे तो हैरान हो जाएंगे. कोई गौरैया का भेजा खाता था तो कोई सोने का भस्म लिया करता था.

भारत के राजा-महाराजा और नवाब अपनी शारीरिक शक्ति, सहनशक्ति और मर्दानगी बढ़ाने के लिए विशेष आहार और जड़ी-बूटियों का उपयोग करते थे. ये उपाय आयुर्वेद, यूनानी चिकित्सा और पारंपरिक ज्ञान पर आधारित थे. वो इसके लिए अश्वगंधा, शिलाजीत, सफेद मूसली और कौंच के बीच का सेवन करते थे, इन सभी से यौन शक्ति बढ़ती थी. दूध-घी और ड्राई फ्रूट्स प्रचुर मात्रा में खाते थे तो शहर के साथ कच्चे अंडे का सेवन करते थे.

पंजाब के सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह अश्वगंधा और शिलाजीत का नियमित सेवन करते थे. बादाम का शरबत (बादाम, केसर, दूध और मिश्री का मिश्रण) पीते थे. घोड़े की सवारी और व्यायाम पर विशेष जोर देते थे. कहा जाता है कि एक आंख और चेचक के निशानों के बावजूद, उनकी शारीरिक ताकत और सैन्य कौशल प्रसिद्ध था.

राजा महाराजा नुस्खा के फायदेराजा महाराजा की जड़ी बूटी प्राचीन काल में राजा अपनी इतनी सारी रानियों को कैसे संतुष्ट रखते थे? मर्दाना ताकत बढ़ाने के लिए राजा महाराजा यूज़ करते थे ये नुस्खे sir bhupinder singh, nawab wajid ali shah, indian kings food

<br />आजादी से पहले भारत में 565 के आसपास देसी रियासतें थीं. सबके अपने-अपने राजा, महाराजा, नवाब और निजाम थे. खानेपीने से लेकर जिंदगी जीने के इनके शौक भी निराले थे. पटियाला के महाराजा भूपेंद्र सिंह इनमें सबसे मशहूर थे. वह 6 फीट लंबे थे और उनका वजन करीब 136 किलो था.  देखने में भीमकाय और लंबे चौड़े. महाराज के हरम में 350 महिलाएं थीं.  डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स ने फ्रीडम एट मिडनाइट में लिखा कि सर भूपेंद्र सिंह कामोत्तेजक दवाएं लेने लग गए थे. इसके लिए उन्होंने विदेशी डॉक्टर को बुलाकर खासतौर पर इसी सेवा पर रख लिया था. उसे मोटा वेतन देते थे.

ताकत की दवा, ताकत के लिए क्या खाते थे राजा

<br />पटियाला के महाराजा अपनी ताकत बढ़ाने के लिए मोतियों, सोने, चांदी और तरह-तरह की जड़ी-बूटियां लिया करते थे. उनके लिए खास औषधि बनती थी, जो गौरैया के भेजे यानी दिमाग से बनती थी. गौरैया के भेजे को निकालकर उसमें बारीक गाजर मिलाकर खास दवा तैयार की जाती थी, जो ताकत बढ़ाने वाली मानी जाती थी. महाराजा नियमित सोने के भस्म का सेवन करते थे. तभी अपनी सभी रानियों के साथ रात में गुजार पाते थे.

नवाब वाजिद अली

<br />अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह ने भी खास हकीम रखा हुआ था. जो उनके लिए हर रोज नए नुस्खे बनाया करते थे. नवाब को स्वर्ण भस्म ताकत के लिए सबसे प्रिय था, जिसे वह दूध के साथ लेते थे. नवाब वाजिद अली शाह को मुतंजन भी खासा पसंद था. इस खास व्यंजन को केसरी रंग के चावल को काजू, किशमिश, बादाम और दूसरे मेवों में पकाया जाता था. फिर उसपर खोया और चांदी का वर्क लगाकर परोसा जाता था. मीठा पुलाव बाद में इसी का रूप बना.

मुतंजन क्या है

<br />मुतंजन मुख्य रूप से मिडिल ईस्ट से आया व्यंजन माना जाता है. कई फूड एक्सपर्ट दावा करते हैं कि मुगलों के खानसामों ने भारत में मुतंजन को बनाना शुरू किया. फिर धीरे-धीरे लोकप्रिय हो गया. लेखक मिर्जा जाफर हुसैन अपनी किताब 'कदीम लखनऊ की आखिरी बहार' में मुतंजन के बारे में विस्तार से लिखा और ये बताया कि किस तरीके से मुगलों से लेकर नवाबों तक को यह बहुत प्रिय था.

वह मुर्ग़ों को विशेष आहार देकर पालते थे. उनके अंडे खाते थे. हकीमों द्वारा बनाई गई मजून-ए-इश्क (एक हर्बल पेस्ट) का सेवन करते थे. कथक नृत्य और संगीत को वह तनाव कम करने का तरीका मानते थे. उन्हें "रसिक" नवाब कहा जाता था, और वह शारीरिक सुख-साधनों के प्रति जागरूक थे.

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<br />आजादी के समय हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली देश के सबसे अमीर शख़्स थे. निजाम भी खाने-पीने के शौकीन थे. डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स लिखते हैं कि निजाम की डाइट एक तरीके से फिक्स थी. इसमें मलाई, मिठाई, फल, सुपारी और अफीम शामिल थी. निजाम अफीम के भी लती थे. हर दिन एक प्याली अफीम पिए बगैर उन्हें नींद नहीं आती थी.  निजाम खास तरह का दम-ए-क़ौस (विशेष हर्बल सूप) पीते थे, जो हकीमों द्वारा बनाया जाता था. वो बिरयानी और कोरमा जैसे प्रोटीनयुक्त भोजन करते थे. निजामों की सेहत और विलासिता प्रसिद्ध थी

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बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला नदी के मछलियों का सेवन करते थे, जिसे ताकतवर माना जाता था. पाचन और ताकत के लिए आयुर्वेदिक चूर्ण लेते थे. वह युवा थे और कहा जाता है कि अपनी फौजी ताकत के लिए वह विशेष आहार लेते थे.

परमार वंश के महाराजा भोज, जो धार के शासक थे, वो च्यवनप्राश और ब्राह्मी का सेवन करते थे. सोने की भस्म को दूध में मिलाकर पीते थे. उन्हें "राजा भोज" कहा जाता था और वह विद्वानों के संरक्षक थे, साथ ही स्वास्थ्य के प्रति सजग थे.

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