सुप्रीम कोर्ट ने जब बंगाल में 25 हजार शिक्षकों की नियुक्ति को रद कर दिया तो उस पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बिफर गईं. उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की. उन्होंने कहा कि जिन जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप में हैं, जिनके घरों से पैसा पाया जाता है, उन्हें केवल ट्रांसफर कर दिया जाता है तो फिर शिक्षकों को क्यों बर्खास्त कर दिया गया.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर ममता खासी नाराज हैं. नाराजगी में उन्होंने ये प्रतिक्रिया दी. जो अदालत के किसी फैसले के खिलाफ अवमानना की श्रेणी में आते हैं. बीजेपी अलग सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ उनसे इस्तीफा मांग रही है. तो ममता बनर्जी की इस तीखी टिप्पणी के बाद सियासी हलकों में ये चर्चाएं उठ रही हैं कि क्या ममता का ये रिएक्शन कोर्ट की अवमानना की श्रेणी में आता है.
आमतौर पर ऐसे मामलों में कोर्ट खुद भी संज्ञान लेता है या अगर कोई इस मामले पर अपील करता है तो भी कोर्ट इस पर अवमानना का मामला करते हुए कार्रवाई कर सकती है. सवाल ये है कि क्या भारत के पद पर बैठे मुख्यमंत्रियों पर कोर्ट की अवमानना का मामला चल सकता है.
तो इसका जवाब है – हां, भारत में पद पर बैठे हुए मुख्यमंत्री पर कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट का मुकदमा चल सकता है. भारतीय संविधान और कानून के तहत कोई भी व्यक्ति, चाहे वह मुख्यमंत्री ही क्यों न हो, अदालत की अवमानना के लिए जवाबदेह हो सकता है.
सवाल – क्या इसका कोई कानून भी है?
– हां, इसका कानून है, गंभीर कानून है. कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट, 1971 के तहत अदालत की गरिमा को ठेस पहुंचाने, उसके आदेशों की अवहेलना करने या न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने जैसे मामलों को अवमानना माना जाता है.
सवाल – ये अवमानना कितने तरह की होती है?
– ये अवमानना भी दो तरह की होती है. पहली ये अवमानना तब मानी जाती है जब अदालत के फैसले को माना नहीं जाए, दूसरी अवमानना तब जबकि कोर्ट की निंदा करें, उसके फैसले की निंदा या उसके फैसलों की प्रक्रिया को बाधित करें. दूसरी अवमानना आपराधिक श्रेणी में मानी जाती है.
सवाल – पद पर रहते हुए मुख्यमंत्री को कौन सा कानूनी कवच मिलता है?
– मुख्यमंत्री को संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत कुछ विशेषाधिकार मिले हुए हैं, जो उन्हें कार्यकाल के दौरान सिविल और आपराधिक मामलों में सीमित छूट देते हैं लेकिन मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए ही दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल भेजे गए. लेकिन ये कवच कंटेम्प ऑफ कोर्ट के मामलों में लागू नहीं होता.
सवाल – क्यों अदालत की अवमानना का मामला गंभीर होता है?
– क्योंकि ये माना जाता है कि अदालत की अवमानना संविधान की अवमानना और इसे संवैधानिक व्यवस्था और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा की राह में अड़ंगा माना जाता है. उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय को अपनी अवमानना के मामलों में कार्रवाई करने का अधिकार है. वे इस शक्ति का प्रयोग किसी भी व्यक्ति, जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं, उसके खिलाफ कर सकते हैं. सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को संविधान के अनुच्छेद 129 और 215 के तहत अपनी अवमानना के मामलों में कार्रवाई करने का अधिकार है.
सवाल – कौन – कौन मुख्यमंत्री इसके निशाने पर आ चुका है?
– भारत में कई मौकों पर मुख्यमंत्रियों सहित बड़े नेताओं पर कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट के मामले दर्ज हुए हैं या कार्रवाई हुई है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर वर्ष 2014 में अरविंद केजरीवाल पर सुप्रीम कोर्ट के एक मामले में कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के लिए अवमानना का आरोप लगा था. यह मामला उनकी ओर से माफी मांगने के बाद सुलझ गया.
ममता बनर्जी खुद इससे पहले वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ टिप्पणी पर अवमानना के मामले में फंसते फंसते रह चुकी हैं. उन्होंने कोलकाता के पुलिस आयुक्त से संबंधित एक मामले में न्यायपालिका पर सवाल उठाए थे. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया, लेकिन इसे आगे नहीं बढ़ाया.
1990 के दशक में, तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयललिता पर मद्रास हाई कोर्ट के एक आदेश की अवहेलना के लिए अवमानना का मामला दर्ज हुआ. 2006 में, केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन को हाई कोर्ट के खिलाफ टिप्पणी के लिए अवमानना नोटिस जारी किया गया था, उन्होंने भी तब माफी मांग ली.
1996 में पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार के कुछ मंत्रियों पर जैन हवाला कांड में कोर्ट के निर्देशों का पालन न करने के लिए अवमानना का आरोप लगा था. हालांकि ये मामला आगे नहीं बढ़ा. इसी तरह तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कपिल कपिल सिब्बल पर वर्ष 2012 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करने के लिए अवमानना याचिका दायर की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.
सवाल – क्या अदालत की अवमानना प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ भी चल सकती है?
– हां, भारत में प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों पर भी अदालत की अवमानना का मुकदमा चल सकता है. इसके तहत कोई भी व्यक्ति वह कितने भी उच्च पद पर हो, अदालत की गरिमा को ठेस पहुंचाने या उसके आदेशों की अवहेलना करने के लिए जवाबदेह हो सकता है. संविधान और कानून के सामने सब बराबर हैं. भी समान हैं, हालांकि कुछ संवैधानिक प्रावधान उच्च पदाधिकारियों को सीमित सुरक्षा प्रदान करते हैं.
सवाल – किसे इस मामले में छूट मिली हुई है?
– अनुच्छेद 361 केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को उनके कार्यकाल के दौरान सिविल और आपराधिक मुकदमों से संरक्षण देता है, लेकिन इसमें कंटेंम्ट ऑफ कोर्ट का उल्लेख नहीं किया गया है.