Last Updated:April 02, 2025, 07:25 IST
आरएसएस ने मंदिर-मस्जिद विवाद को गैरजरूरी बताते हुए समाज में शांति और एकता पर जोर दिया है. मोहन भागवत, दत्तात्रेय होसबाले और भैय्याजी जोशी ने कहा कि इतिहास में उलझने से समाज में तनाव बढ़ेगा.

संघ का शीर्ष नेतृत्व.
हाइलाइट्स
आरएसएस ने मंदिर-मस्जिद विवाद को गैरजरूरी बताया.मोहन भागवत, होसबाले और जोशी ने शांति और एकता पर जोर दिया.इतिहास में उलझने से समाज में तनाव बढ़ेगा.उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद में खुदाई और महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र विवाद के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है. संघ के मुखिया मोहन भागवत पहले ही मंदिर-मस्जिद विवाद को गैरजरूर बता चुके हैं. अब संघ के दो शीर्ष पदाधिकारियों दत्तात्रेय होसबाले और भैय्याजी जोशी के भी इसको लेकर बयान आए हैं. इससे स्पष्ट हो जाता है कि संघ देश को अब आगे और मंदिर-मस्जिद विवाद में उलझाना नहीं चाहता. संघ ने देश भर में उन हजारों मस्जिदों को वापस लेने की बढ़ती मांग का विरोध किया है, जिनके बारे में दावा किया जाता है कि वे मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं. आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने साफ कहा कि संघ इस विचार के खिलाफ है. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए शुरू हुए आंदोलन का समर्थन करने की बात कही, जिसमें साधु-संतों ने अहम भूमिका निभाई थी. इसके साथ ही उन्होंने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के लिए विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और अन्य संगठनों के प्रयासों का समर्थन करने की बात भी दोहराई. लेकिन होसबाले ने कहा कि सभी मस्जिदों को लेकर ऐसा करना एक अलग और जटिल मुद्दा है.
होसबाले ने कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका विक्रम को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि अगर हम बाकी सभी मस्जिदों और इमारतों की बात करें, तो क्या हमें 30,000 मस्जिदों को खोदना शुरू कर देना चाहिए और इतिहास को बदलने की कोशिश करनी चाहिए? क्या इससे समाज में और नफरत और तनाव नहीं बढ़ेगा? हमें समाज के तौर पर आगे बढ़ना चाहिए या अतीत में अटके रहना चाहिए? हम इतिहास में कितना पीछे जाएंगे? उनका कहना था कि इस तरह के कदम से समाज में शांति और एकता को नुकसान पहुंचेगा.
मोहन भागवत भी रख चुके हैं अपनी राय
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पहले भी इस मुद्दे पर अपनी राय रख चुके हैं. होसबाले ने उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मस्जिदों के विवादित स्थानों पर कब्जे की मांग समाज के लिए बहुत भारी पड़ सकती है. उन्होंने कहा कि समाज की दूसरी जरूरी प्राथमिकताएं जैसे छुआछूत को खत्म करना और युवाओं में अच्छे मूल्यों का विकास करना पीछे छूट सकता है. उन्होंने सवाल उठाया कि अगर हम लगातार ऐसा करते रहें, तो समाज के बाकी जरूरी बदलावों पर कब ध्यान देंगे? छुआछूत को खत्म करने का काम कब होगा? युवाओं में मूल्यों को कैसे स्थापित करेंगे?
होसबाले ने यह भी कहा कि इस तरह के आंदोलन से संस्कृति और भाषा को बचाने, धर्मांतरण, गोहत्या और लव जिहाद जैसे मुद्दों पर ध्यान कम हो सकता है, जो आरएसएस के लिए हमेशा से अहम रहे हैं. उनका कहना था कि संघ ने कभी नहीं कहा कि इन मुद्दों को नजरअंदाज करना चाहिए या इन पर काम नहीं करना चाहिए. लेकिन उनका जोर इस बात पर था कि मस्जिदों को लेकर बड़े पैमाने पर आंदोलन सही दिशा में नहीं है.
मंदिर का मतलब क्या?
टाइम्स ऑफ इंडिया ने होसबोले के बयान पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. उन्होंने मंदिर की अवधारणा पर भी अपनी बात रखी. होसबाले ने कहा कि मंदिर का मतलब क्या है? क्या कोई मंदिर, जो मस्जिद में बदल गया, अब भी पवित्र स्थान है? क्या हमें हिंदुत्व को पत्थर की इमारतों के अवशेषों में ढूंढना चाहिए या उन लोगों के दिलों में हिंदुत्व को जगाना चाहिए जो इससे दूर हो गए हैं? अगर हम पत्थर की इमारतों में हिंदू धरोहर की खोज करने की बजाय लोगों और उनके समुदायों में हिंदू जड़ों को फिर से जागृत करें तो मस्जिद का मुद्दा अपने आप हल हो जाएगा.
इससे पहले आरएसएस के वरिष्ठ नेता भैय्या जी जोशी ने भी इसी तरह के विचार रखे थे. उन्होंने कहा था कि इतिहास को बार-बार खोदने से समाज में सिर्फ तनाव बढ़ेगा और हमें वर्तमान और भविष्य पर ध्यान देना चाहिए. होसबाले और जोशी, दोनों के बयानों से साफ है कि आरएसएस मंदिर-मस्जिद विवाद को बढ़ाने के बजाय समाज में सकारात्मक बदलाव और एकता पर जोर देना चाहता है. उनका मानना है कि अतीत के झगड़ों में उलझने से बेहतर है कि हम आज के समाज को मजबूत करें और आगे बढ़ें.
First Published :
April 02, 2025, 07:18 IST