माधवराव सिंधिया: कई शौक वाले शख्स, जो बन सकते थे 'लोकप्रिय' प्रधानमंत्री

1 month ago

Last Updated:March 10, 2025, 11:29 IST

Madhavrao Scindia 80th Jayanti: 10 मार्च 1945 को जन्में माधवराव सिंधिया कई शौक रखते थे. गोल्फ, क्रिकेट या फिर फिल्में... वे सभी के जबरदस्त शौकीन थे. उन्हें भारत के भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखा जाता था, लेक...और पढ़ें

 कई शौक वाले शख्स, जो बन सकते थे 'लोकप्रिय' प्रधानमंत्री

माधवराव सिंधिया संभवत: भारत के श्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों में से एक होते. (फाइल फोटो)

हाइलाइट्स

माधवराव सिंधिया की आज 10 मार्च को 80वीं जयंती है.गोल्फ, क्रिकेट, कला या फिल्में... वे सभी के जबरदस्त शौकीन थे.वह बीसीसीआई के अध्यक्ष भी रहे और उन्हें भावी पीएम के रूप में देखा जाता था.

माधवराव सिंधिया संभवत: भारत के श्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों में से एक होते, लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल और प्रणब मुखर्जी की तरह ये भी कभी देश के शीर्ष पद पर नहीं पहुंच सके. उनके उत्थान को विधाता ने बड़ी क्रूरता से समय से पहले ही रोक दिया. उनके निधन (30 सितंबर 2001) के करीब तीन साल बाद ही 2004 में कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन की केंद्रीय सत्ता में वापसी हो गई और अगले 10 साल तक सत्ता की बागडोर उसके हाथ में ही रही. पूर्व विदेश मंत्री (अब दिवंगत) के. नटवर सिंह ने उनके बारे में कहा भी था, “… अगर माधवराव सिंधिया जीवित होते तो प्रधानमंत्री वे ही बनते.’

माधवराव सिंधिया का सोनिया गांधी के साथ एक अनूठा तालमेल था. माधवराव संभवत: ऐसे अकेले कांग्रेसी नेता थे, जो निजी बातचीत में सोनिया को उनके पहले नाम से बुलाते थे. हालांकि अन्य लोगों की मौजूदगी और पार्टी के औपचारिक मंचों पर उन्हें “सोनिया जी’ कहते थे. सोनिया भी उन्हें माधव ही कहती थीं और अक्सर उन्हें चाय या कॉफी के लिए आमंत्रित कर लेती थीं. वे दोनों एक-दूसरे को तब से जानते थे, जब 1968 में सोनिया गांधी भारत आई थीं और राजीव गांधी के साथ विवाह बंधन में बंधी थीं.

लोकप्रियता में कोई आस-पास भी नहीं
पहले रेलवे मंत्री और फिर नागरिक उड्‌डयन मंत्री बनने तक माधवराव इतने लोकप्रिय हो चुके थे कि नई दिल्ली स्थित शास्त्री भवन में पदस्थ उनके निजी कर्मचारियों को रोज ही अनेकों पत्र और परफ्यूम की बोतलें, फूल और रुमाल जैसे उपहार मिलते. सब पर लिखा होता – “जनता के महाराजा’ के लिए. इन सभी आइटमों को दर्ज कर एक “निजी’ फाइल बनती जो माधवराव के समक्ष प्रस्तुत की जाती. माधवराव हर प्रेषक के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते.

हवाला कांड में नाम आने के बावजूद उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई. 1996 के चुनावों के दौरान कई उम्मीदवारों ने अपने चुनाव प्रचार के लिए उन्हें बुलाया था. इनमें से एक नटवर सिंह भी थे, जो राजस्थान के भरतपुर से ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. जब उनका प्रचार करने के लिए माधवराव भरतपुर गए तो वहां एक रैली को संबोधित करते हुए नटवर सिंह ने कहा : “महाराज, जब आप देश के प्रधानमंत्री बन जाएं तो कृपया अपने विदेश मंत्री के रूप में मुझे भी सेवा का मौका देना याद रखना.’ इतना सुनते ही वहां एकत्र लोगों में हंसी के फव्वारे छूट पड़े थे. इसी साल माधवराव ने ग्वालियर से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. उस समय जी.के. मूपनार की अगुवाई वाले और कांग्रेस से छिटके हुए एक और दल तमिल मणिला कांग्रेस के पी. चिदंबरम ने माधवराव के लिए चुनाव प्रचार करते हुए उन्हें “भावी प्रधानमंत्री’ के रूप में पेश किया था.

जब वाजपेयी को स्तब्ध कर दिया था
साल 1984 में माधवराव सिंधिया और अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर संसदीय सीट से आमने-सामने थे. ग्वालियर दोनों का ही गृह क्षेत्र था. नामांकन भरने के आखिरी दिन तक इस बात को उजागर नहीं किया गया था कि क्या होने जा रहा है. राजीव गांधी की योजनानुसार माधवराव ने पहले गुना संसदीय सीट से अपना पर्चा दाखिल किया, जिसकी अपेक्षा की जा रही थी. ग्वालियर में वाजपेयी के खिलाफ बहुत ही कम राजनीतिक हैसियत रखने वालीं विद्या राजदान से कांग्रेस के डमी प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल करवाया गया. हालांकि नामांकन के आखिरी दिन जबकि केवल डेढ़ घंटे का समय बाकी था, माधवराव बहुत ही नाटकीय ढंग से ग्वालियर में रिटर्निंग अधिकारी के दफ्तर पहुंचे और अपना पर्चा दाखिल कर दिया. वाजपेयी के पास अब कोई समय नहीं बचा था. इस घटनाक्रम से वाजपेयी स्तब्ध थे. यहां से वाजपेयी को 1,75,000 वोटों से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. वाजपेयी अपनी इस हार से इतने व्यथित हो गए थे कि इसके बाद उन्होंने अपने गृह क्षेत्र से कभी चुनाव नहीं लड़ा.

बीसीसीआई के कठिन चुनाव में फतह किया था मोर्चा
माधवराव कई शौक रखते थे. गोल्फ हो या क्रिकेट या फिर कला और फिल्में, वे सभी के जबरदस्त शौकीन थे. लोगों को इस बात से अचरज होता था कि इन सब भूमिकाओं के बावजूद वे राजनीति के लिए दिन में कम से कम 12 घंटे का समय निकाल लेते थे. राजनीति के बाद क्रिकेट उनका सबसे बड़ा पैशन था. वे न केवल खुद अच्छे खिलाड़ी थे, बल्कि बाद में अच्छे क्रिकेट प्रशासक भी साबित हुए। उन्होंने 1990 में बीसीसीआई की कमान संभाली थीं. कोलकाता में बीसीसीआई अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव का संबंध खेल से कम और राजनीति से ज्यादा था. माधवराव बीसीसीआई के उस समय पदासीन अध्यक्ष बी.एन. दत्त से मुकाबले में थे. दत्त को कारोबारी और क्रिकेट प्रशासक जगमोहन डालमिया का समर्थन हासिल था. दत्त और डालमिया को मात देने के लिए माधवराव ने अपनी रणनीति बनाने की जिम्मेदारी राजनेता अमर सिंह को सौंपी. इस मुकाबले का परिणाम माधवराव के पक्ष में गया और उन्होंने 15 के मुकाबले 16 मतों से यह मोर्चा फतह कर लिया, जबकि विशेषाधिकार के तहत दत्त ने भी खुद के पक्ष में मतदान किया था.

जब दिग्गज क्रिकेटरों की बंध गई थी घिग्घी
माधवराव को प्रैंक्स करने में भी मजा आता था. एक बार उन्होंने मंसूर अली खान पटौदी सहित कई दिग्गज क्रिकेटरों को एक प्रदर्शन मैच में खेलने के लिए ग्वालियर आमंत्रित किया. मैच के विश्राम वाले दिन माधवराव ने पटौदी, सुनील गावस्कर, ईरापल्ली प्रसन्ना, गुंडप्पा विश्वनाथ और अन्य कई क्रिकेटरों को शिवपुरी के जंगलों में शिकार के लिए ले जाने का निश्चय किया (उस समय शिकार की अनुमति थी). मध्यरात्रि को जब सभी खिलाड़ी नींद में थे तो अचानक से उन्हें गोलियों की आवाज सुनाई दीं. जल्दी ही उन्हें भान हो गया कि “डकैतों’ ने उन्हें घेर लिया है और उनका “अपहरण’ करके ले जा रहे हैं. उन सभी से कहा गया कि वे जीपों में बैठ जाएं और उनके पास जो कुछ भी हैं, वह “डकैतों’ के हवाले कर दें. इस वाकये से खासकर विश्वनाथ व प्रसन्ना की घिग्घी बंध गई और डर के मारे घिघियाने लगे कि वे भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य हैं और देश को उनकी जरूरत है. हालांकि “डकैतों’ ने भी कह दिया कि उन्हें क्रिकेट के बारे में कुछ भी नहीं पता है. यह नाटक कुछ ज्यादा ही लंबा खींच गया और इससे खिलाड़ियों को पता चल गया कि “डकैत’ तो असल में माधवराव के ही कर्मचारी थे और उन्होंने यह केवल एक नाटक रचा था.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

March 10, 2025, 11:29 IST

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