मुंबई, कोलकाता, देहरादून, पहाड़ और अब दार्जिलिंग - क्यों हर जगह जानलेवा बारिश

2 weeks ago

देशभर में इस मानसून में जगह जगह ऐसी बारिश देखने को मिली, जो इतनी तेज और मूसलाधार थी कि कुछ देर की बारिश में ही ऐसा लगा जैसे प्रलय सरीखी तबाही आ गई हो. मकान और संपत्तियां नष्ट हो गईं. लोगों की मौत हुई. अब ऐसी तबाही भरी बारिश दार्जिलिंग में हुई है. हालांकि मौसमविज्ञानियों का कहना है कि कि इस विनाशकाली बारिश के पीछे लो प्रेसर सिस्टम में अचानक आया दबाव जिम्मेदार था. दरअसल इस मानसूनी बादलों को जाना कहीं था और पहुंच ये कहीं गए ..और वहां तबाही मचा दी.

मौसम विभाग का कहना है कि 30 सितंबर को बंगाल की खाड़ी के ऊपर बना यह सिस्टम ओडिशा में दबाव के रूप में पहुंचा था. फिर ये उत्तर पश्चिम में छत्तीसगढ़ की ओर बढ़ रहा था. तभी लो प्रेसर सिस्टम में ऐसा बदलाव हुआ कि ये अचानक उत्तर बिहार की ओर मुड़ गया. फिर खतरनाक रूप से उत्तर बंगाल के करीब आ गया.

एक मौसम विज्ञानी का कहना है, ” इस तरह के सिस्टम एक बड़े एरिया को कवर करते हैं. उत्तरी बंगाल इसके दायरे में आता है, जिससे भारी बारिश होती है, इसी वजह से कोलकाता में भारी बारिश हुई. शुक्रवार और शनिवार को दार्जिलिंग, अलीपुरद्वार, का-लिम्पोंग और जलपाईगुड़ी के कुछ हिस्सों में लगभग 24 घंटों में 200 मिमी से अधिक भारी बारिश हुई. जिससे तबाही हुई.

रविवार सुबह 8 बजे तक 24 घंटों में दार्जिलिंग में 261 मिमी बारिश दर्ज की गई. सिक्किम और भूटान से बंगाल में प्रवेश करने वाली नदियों के माध्यम से बहने वाले अतिरिक्त पानी ने तबाही को और बढ़ा दिया. क्योंकि आसपास के एरिया में लगातार मूसलाधार बारिश हो रही थी.

सवाल – मानसून का अचानक बंगाल की ओर मुड़ जाना क्या अप्रत्याशित नहीं था, ऐसा क्यों हो गया?

– एक मौसम विज्ञानी ने कहा, “चूंकि मानसून अब उत्तर भारत से पीछे हट रहा है, तेज़ पश्चिमी हवाओं ने इस सिस्टम को उत्तर बिहार की ओर मोड़ दिया, जिससे बारिश हुई है. हालांकि इसे मध्य भारत से आगे की बढ़ना था, वहीं से इसने घुमाव ले लिया. मौसम विज्ञानियों का कहना है कि इसका कर्व लेना प्रत्याशित जरूर है लेकिन असमान्य नहीं. खतरे की स्थिति अब भी बनी हुई है क्योंकि मानसून का ये सिस्टम अब भी उत्तर बिहार, बंगाल की पहाड़ियों और पूर्वी नेपाल के एक बड़े क्षेत्र को कवर कर रहा है. मौसम विज्ञानी ने आगे कहा, “इन इलाकों में बारिश जारी रहेगी. हालांकि ऐसे सिस्टम जब बनते हैं तो जबरदस्त पानी वाले बादल आगे बढ़ते हैं और जबरदस्त बारिश करते हैं. ये अब बांग्लादेश की ओर बढ़ सकते हैं लेकिन अगले 48 घंटों में इसकी गति भी धीमी पड़ सकती है.जब मानसून प्रणाली कमजोर होती है या असामान्य रूप से विचलित होती है, तब ऐसी भारी बारिश जन्म लेती है.

सवाल – क्या इस तरह की बारिश की वजह प्राकृतिक है या जलवायु परिवर्तन के कारण मानसूनी सिस्टम में बदलाव आ रहा है?

– दार्जिलिंग में हुई जरूरत से ज्यादा भारी वर्षा और भूस्खलन की घटना भले प्राकृतिक सी लगें लेकिन असल में ये हमारे बदलते जलवायु और पर्यावरणीय दबावों को ही दिखा रही हैं. जब एक पहाड़ी क्षेत्र में कुछ ही घंटों में 200–300 मिमी बारिश हो जाए, तो वहां इस वजह से तबाही आना लाजिमी है. पिछले कुछ वर्षों से हम भारत के कई हिस्सों में “अत्यधिक वर्षा की घटनाओं” की आवृत्ति बढ़ी हुई देख रहे हैं.

सवाल – दार्जिलिंग जैसे इलाके ऊंचाई पर हैं, क्या ऊंचाई का कोई असर मानसून सिस्टम पर पड़ता है?

– पहाड़ी इलाकों में जैसे दार्जिलिंग में हवा को ऊपर उठना पड़ता है. जब नमीयुक्त हवा पहाड़ों की ढलानों से टकराती है, तो वह ऊपर उठती है, ठंडी होती है और उसमें मौजूद नमी वर्षा के रूप में गिरने लगती है. पहाड़ों की अनियमितता इस प्रक्रिया को और तेज कर देती हैं यानि बारिश काफी ज्यादा तेजी से होने लगती है.इस तरह की स्थिति में स्थानीय स्तर पर “ओवरग्रोन क्लाउड्स” बन जाते हैं, जिनमें ऊंचाई बहुत होती है और वे भारी वर्षा छोड़ते हैं.

इसमें दिन के समय तापमान का बढ़ना स्थितियों को और मुश्किल बना देता है. इससे हवा और ऊपरी वायुमंडल के बीच ताप एवं नमी का अंतर बढ़ जाता है. तेजी से विकास करने वाले कंवेक्टिव बादल बनते हैं, जो अचानक गहरे बारिश छोड़ सकते हैं.

सवाल – क्या इसके पीछे पहाड़ी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई और पहाड़ों के खिलवाड़ भी जिम्मेदार है?

– पहाड़ी क्षेत्रों में अवैज्ञानिक निर्माण, सड़क कटाई, वनों की छेड़छाड़, छोटे नाले को अवरुद्ध करना -ये सारी बातें पहाड़ी मिट्टी को अस्थिर बना देते हैं, जब भारी बारिश होती है तो ये मिट्टी बड़े पैमाने पर जमीन की ओर बहने लगती है. यानि खतरनाक भूस्खन हो जाता है. वैसे दार्जिलिंग में भी बरसों से पहाड़ों से खिलवाड़ हो रहा है.

सवाल – वायुमंडल की बढ़ती गर्मी का तेज बारिश से क्या रिश्ता बन रहा है?

– जैसे-जैसे वायुमंडल गर्म हो रहा है, वो अधिक नमी लेने की कोशिश कर रहा है. अगर वायुमंडल में अधिक नमी का प्रवाह होने लगता है और ये स्थिति लो प्रेसर जोन या वातावरण में ज्यादा नमी की स्थिति ले आये तो बादल इस बर्दाश्त नहीं कर पाते, वो बहुत तेजी से बरसना शुरू हो जाते हैं. अध्ययन बताते हैं कि भारत में बहुत अधिकर बारिश की घटनाएं पिछले दशकों में तेजी से बढ़ी हैं.

कहा जा सकता है कि दार्जिलिंग की घटना सिर्फ “प्राकृतिक आपदा” नहीं है, बल्कि कई प्राकृतिक और मानवजनित कारणों का संयोजन है – इसी तरह की घटनाएं अब अनियमित रूप से देश के अन्य हिस्सों में भी हो रही हैं.

सवाल – भारत में एक नहीं कई शहरों में ऐसी विनाशकारी बारिश देखने को मिली है, क्या है वजह?
– ये बात सही है कि केवल दार्जिलिंग ही नहीं बल्कि कोलकाता, मुंबई, देहरादून, हिमाचल, उत्तराखंड जैसे स्थानों पर भी अचानक भारी वर्षा की घटनाएं इस बार के मानसून सत्र में खूब हुई हैं.

इसकी वजह मॉनसून प्रणाली की बदलती प्रवृत्तियां हैं. ये इस बार बहुत अस्थिर रहा है. इस बार इसकी अनिश्चितता और ज्यादा हुई है. अध्ययन बताते हैं कि, सामान्य वर्षा की कुल मात्रा घटने के बावजूद, अति मूसलाधार जैसी बारिश की संख्या बढ़ी है. यानि कम समय में बहुत ज्यादा बारिश.

वेस्टर्न डिस्टर्बेंसेज आमतौर पर सर्दियों और शुरुआती वसंत में सक्रिय होते थे, लेकिन अब मॉनसून मौसम में भी वेरलैंड गतिविधियां अधिक बढ़ गई हैं, जो मॉनसून ऋतु में असामान्य बारिश की स्थितियां पैदा कर रही हैं. कुछ शोध बताते हैं कि अरब सागर की हवाओं में उतार-चढ़ाव अधिक हो गया है, जिससे अतिरिक्त नमी देश के आंतरिक हिस्सों तक पहुंच रही है. कभी-कभी बड़ी बादल प्रणालियां छोटे क्षेत्र में तेजी से इकट्ठा होकर ज्यादा वर्षा कर देती हैं.

भारत के पहाड़ी इलाके मसलन उत्तरी भारत, हिमाचल, उत्तराखंड आदि ऊंचाई व ढलान की वजह से संवेदनशील है. एक छोटी बादल प्रणाली भी भारी तबाही कर सकती है. कोलकाता जैसे बंगाल क्षेत्र में बंगाल की खाड़ी की गतिविधि और बंगाल की नमी प्रवाह प्रमुख भूमिका निभाते हैं.

कुछ शोध बताते हैं कि भारत में एक्सट्रीम रैनफॉल की घटनाएं तीन गुना बढ़ गई हैं. बदलती हवाएं, समुद्र-तापमान वृद्धि, समुद्री वायुमंडलीय परिसंचरण में परिवर्तन – ये सभी लंबी अवधि में मॉनसून और वर्षा पैटर्न को प्रभावित कर रहे हैं.

सवाल – क्या शहरीकरण भी बारिश की हैरान कर देने वाली अनियमित प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार है?

– हां, तेजी से शहरीकरण और अनियोजित विस्तार से मिट्टी की रक्षा कम होती है. बर्फ़, झीली और हरित क्षेत्र कम हो जाते हैं. जल निकासी, सीवेज और वर्षा जल प्रबंधन प्रणाली अपर्याप्त होती है. जब अचानक भारी वर्षा हो, तो पानी को सही दिशा में ले जाने का कोई रास्ता नहीं होता. पानी शहर में ही फ़ंस जाता है. ये सब बाढ़ की तीव्रता को बढ़ाते हैं.

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