यूनुस ने SAARC पर पाकिस्तान से क्या कहा? 2014 से बेदम पड़ा संगठन भारत के लिए क्यों है जरूरी

2 hours ago

SAARC: पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार के साथ बातचीत दौरान बांल्गादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) को फिर से जिंदा करने की बात कही है, जबकि सार्क पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से बेजान पड़ा हुआ है. चलिए जानते हैं कि सार्क क्या, कब से, क्यों बंद पड़ा है और इसका भारत के लिए क्या महत्व है.

SAARC क्या है?

सबसे पहले जानते हैं कि सार्क है क्या? दरअसल दक्षिण एशियाई देशों का एक सहयोगी संगठन है. इस संगठन में दक्षिण एशिया के 8 देश आते हैं. भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, भूटान और अफगानिस्तान इस संगठन का हिस्सा हैं. हालांकि स्थापना के समय इसमें 7 देश थे लेकिन 2007 के बाद अफगानिस्तान भी इस संगठन का हिस्सा बन गया था.

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SAARC की स्थापना कब और क्यों हुई?

SAARC की स्थापना 8 दिसंबर 1985 को हुई थी. इसका पहला शिखर सम्मेलन बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हुआ था. सार्क के गठन का मुख्य मकसद क्षेत्रीय सहयोग का बढ़ावा देना था. गरीबी, अशिक्षा, बीमारियों और पिछड़ेपन जैसी साझा चुनौतियों से निपटने के साथ-साथ व्यापार, विज्ञान-तकनीक, संस्कृति, पर्यावरण, और लोगों-से-लोगों के संपर्क को बढ़ाने के लिए इस संगठन के सदस्य एक दूसरे की मदद के लिए आगे आएगे.

2014 से ठप पड़ा है SAARC

हालांकि इस संगठन का आखिरी सम्मेलन 2014 में नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुआ था. इसके बाद यह संगठन पूर्ण रूप से बेजान पड़ा हुआ है. काठमांडू सम्मेलन के 2 साल बाद 2016 में अगला शिखर सम्मेलन पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में होना था. तब से लेकर अब तक (2025 तक) कोई सार्क शिखर सम्मेलन नहीं हुआ, यानी संगठन व्यावहारिक रूप से ठप पड़ा है.

भारत के लिए SAARC क्यों है जरूरी?

आज पूरी दुनिया जिस तरह की राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रही है, ऐसे समय में भारत के लिए सार्क का फिर से जीवित होना जरूरी हो जाता है. जैसे हाल ही में ट्रंप ने ट्रंप ने रूस से तेल खरीद की वजह से भारत पर 25 फीसद अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है. ऐसे हालात में एक 'सार्क' भारत को कई फायदे दे सकता है. ऐसे हालात में भारत अपने पड़ोसी देशों (सार्क के मेंबर्स) के साथ घनिष्ठ आर्थिक व व्यापारिक संबंध बाहरी झटकों का असर कम कर सकते हैं.पश्चिमी बाजारों पर निर्भरता कम होगी तो वैश्विक राजनीति में भारत की चाल चलने की गुंजाइश बढ़ेगी.

चीन के प्रभाव का संतुलन: पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में चीन की पकड़ को सार्क संतुलित कर सकता है.

क्षेत्रीय स्थिरता: ऊर्जा की कमी, जलवायु आपदाओं जैसी साझा समस्याओं पर मिलकर काम करने से स्थिरता बढ़ेगी.

भारत की नेतृत्वकारी छवि: 2020 के कोविड-फंड की तरह भारत सार्क में फिर से केंद्रीय भूमिका निभा सकता है.

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