राजस्थान में 13.5 लाख लोगों की पेंशन रोकी, री-वेरिफिकेशन किया जाए

1 day ago
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा 
सामाजिक सुरक्षा पेंशन रोकना एक तरह का भ्रष्टाचार है.सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा सामाजिक सुरक्षा पेंशन रोकना एक तरह का भ्रष्टाचार है.

जयपुर. राजस्थान में कुल 90.8 लाख लोग सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना से जुड़े हुए हैं. लेकिन इनमें से 13.5 लाख लोगों की पेंशन या तो मृत्यु का कारण बताकर या प्रदेश से बाहर चले जाने के हवाले से रोक दी गई है. इसकी एक मुख्य वजह केंद्र सरकार के आधार डेटाबेस और राजस्थान के जनआधार डेटाबेस में विसंगति भी है. मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) ने इन आंकड़ों का दावा करते हुए मांग की है कि पूरे प्रदेश में पेंशन के लिए री-वेरिफिकेशन किया जाए ताकि लाखों लोगों की रुकी हुई पेंशन बहाल हो सके.

यह मुद्दा रविवार को राजस्थान के ब्यावर में सूचना का अधिकार (RTI) संग्रहालय का शिलान्यास समारोह में जोरशोर से उठा. शिलान्यास सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मदन बी. लोकुर और उड़ीसा हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एस. मुरलीधर ने किया. वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने ऑनलाइन जुड़कर अपनी भागीदारी निभाई.

समारोह के दौरान सामाजिक सुरक्षा के तहत मिलने वाली पेंशन को रोकने की बात उठी. इसमें जिंदा लोगों को मृत बताकर पेंशन रोकने की पर चिंता जाहिर की गई. मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) का कहना था कि जिन लोगों की पेंशन इस विसंगति के चलते रोकी गई है उसे फिर से चालू किया जाए. इसके साथ ही संगठन ने कहा कि जिन्होंने इसे झेला है इसका मुआवजा भी उन्हें दिया जाना चाहिए.

सामाजिक पेंशन रोकना एक तरह का भ्रष्टाचार
इस मुद्दे पर बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा कि सभी पीढ़ियों को मिलकर संविधान को बचाना होगा. यह हम सबकी जिम्मेदारी है. सामाजिक सुरक्षा की पेंशन रोकना गलत है. जिन अधिकारियों की लापरवाही और गलत कामों की वजह से लोगों की पेंशन रोकी गई है उनकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए. बकौल जस्टिस लोकुर- यह गंभीर विषय है और एक तरह का भ्रष्टाचार ही है. यदि कोई भी लोग सामाजिक सुरक्षा पेंशन के पात्र हैं तो उन्हें पेंशन मिलनी ही चाहिए. जिन लोगों की पेंशन गलत तरीके से रोकी गई है उसे सुचारू करना चाहिए. यदि सरकार तब भी ऐसा नहीं करती है तो अदालत का दरवाजा खटखटाने के अलावा और कोई चारा नहीं है.

आधार के चलते सोशल सिक्योरिटी ना मिलना लोगों के साथ धोखा
ओडिशा हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने इस मामले में बोलते हुए कहा यह इस बात का उदाहरण है कि कैसे आधार के जरिए बायोमीट्रिक वेरिफिकेशन पर निर्भरता लोगों के लिए परेशानी खड़ी कर रही है. यह असंवैधानिक और गैर-कानूनी है. सुप्रीम कोर्ट को इस बात के लिए आश्वस्त किया गया था कि सामाजिक सुरक्षा से जुड़े लोगों को मिलने वाले फायदे आधार के चलते रोके नहीं जाएंगे. यह आधार का मिसयूज है. यह आधार के फेल हो जाने का प्रमाण है. यह देश की एक बड़ी आबादी के साथ धोखा है.

बायोमीट्रिक वेरिफिकेशन पर निर्भरता काफी बढ़ गई
दरअसल वर्तमान समय में आधार और बायोमीट्रिक वेरिफिकेशन पर निर्भरता काफी बढ़ गई. पूरे सिस्टम के आधुनिक होने के साथ ही उसमें कई तरह के बदलाव आए हैं. आधार आज सभी तरह के लेनदेन और योजनाओं का अहम हिस्सा और बायोमैट्रिक वेरिफिकेशन उसकी एक प्रणाली है. आधार बनना और अपडेट होना अलग बात है. जानकारों के अनुसार बढ़ती उम्र के साथ इंसान में भी बदलाव आते हैं. इसका असर बॉयोमैट्रिक वेरफिकेशन पर भी पड़ता है।

सामाजिक सुरक्षा से वंचित करना कतई उचित नहीं
महज इस बायोमैट्रिक वैरिफिकेशन के आधार पर किसी भी शख्स को सामाजिक सुरक्षा से वंचित करना कतई उचित नहीं माना जा सकता है. यह न केवल असंतोष का कारण बनती है बल्कि को इंसान को दिमागी रूप से भी तोड़ कर रख देती है. समारोह में इसी पर चिंता जताई गई और सिस्टम को दुरुस्त करने की बात कही गई ताकि सामाजिक सुरक्षा और न्याय की भावना पर असर नहीं पड़े. इसके साथ ही एमकेएसएस ने यह भी मांग की कि राज्य सरकार न्यूनतम गारंटी आय अधिनियम, 2023 को लागू करने के लिए तुरंत नियम अधिसूचित करे.

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FIRST PUBLISHED :

October 21, 2024, 16:32 IST

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