‘राम-राम सा’ से राजनीति के शिखर तक, क्या सचिन दोहरा पाएंगे पायलट की कहानी

1 day ago

Last Updated:June 11, 2025, 16:09 IST

Rajasthan Politics : राजेश पायलट को उनकी सादगी और जमीनी राजनीति के लिए जाना जाता है. सचिन पायलट भी उसी राह पर हैं लेकिन उनके रास्ते में पार्टी की आंतरिक राजनीति है. दोनों में जनता से जुड़ाव और साहसिक फैसलों की ...और पढ़ें

‘राम-राम सा’ से राजनीति के शिखर तक, क्या सचिन दोहरा पाएंगे पायलट की कहानी

राजेश पायलट का अंदाज हटकर था. वे ‘राम-राम सा’ कहकर वे जनता से ऐसे जुड़ते थे कि गांव-कस्बों तक के लोग उन्हें अपने जैसा मानते थे. इसलिए वे जनता में लोकप्रिय थे.

हाइलाइट्स

राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि पर दौसा में सर्वधर्म सभासचिन पायलट ने पिता की राजनीतिक विरासत संभालीसचिन को पार्टी की आंतरिक राजनीति से चुनौती

जयपुर. राजस्थान की सियासत में राजेश पायलट किसी परिचय के मोहताज नहीं है. उनका आमजन से ‘राम राम सा…’ संवाद आज भी उनसे जुड़े हर शख्स को याद है. आज पायलट की 25वीं पुण्यतिथि है. राजेश पायलट को श्रद्धाजंलि देने के लिए आज दौसा में आयोजित सर्वधर्म सभा में राजस्थान की पूरी कांग्रेस के साथ ही हजारों लोग उमड़े. सचिन पायलट के सियासी प्रतिद्वंदी पूर्व सीएम अशोक गहलोत भी वहां पहुंचे. राजेश पायलट अपने पीछे बड़ी राजनीतिक विरासत छोड़कर गए थे. उनके बेटे सचिन पायलट ने उनकी इस राजनीतिक विरासत को बखूबी संभाला और आगे बढ़ाया.

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नजदीकी दोस्तों में शुमार रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री राजेश पायलट की सबसे बड़ी ताकत उनकी सादगी, साहस और सीधा संवाद था. दौसा से देश की राजनीति में छाने वाले राजेश पायलट को आज उनकी 25वीं पुण्यतिथि पर न सिर्फ दौसा बल्कि पूरा राजस्थान श्रद्धांजलि दे रहा है. लेकिन इस मौके पर एक सवाल यह भी उठ रहा है क्या सचिन पायलट अपने पिता की राह पर चल पाए हैं?

वे हवा में उड़ते हुए भी जमीन से जुड़े रहे
राजेश पायलट का अंदाज हटकर था. वे ‘राम-राम सा’ कहकर वे जनता से ऐसा जुड़ते थे कि गांव-कस्बों तक के लोग उन्हें अपने जैसा मानते थे. वे पायलट जरुर रहे लेकिन राजनीति हवाई नहीं की. वे हवा में उड़ते हुए भी जमीन से जुड़े रहे. जमीनी राजनीति के कारण वे अपने इलाके में लोकप्रिय हुए. चाहे दौसा हो या फिर देश के दूसरे हिस्सों में काम करना हो. राजेश पायलट ने हर मौके पर खुद को साबित किया.

राजेश पायलट संघर्ष के साथ-साथ सत्ता में निर्णायक पदों पर रहे
सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस की सबसे मजबूत युवा आवाज माने जाते हैं. वे अपने पिता की छवि को जिंदा रखे हुए हैं. राजेश पायलट जिस तरह जात-पात से ऊपर उठकर सभी समुदायों में स्वीकार्य चेहरा बने सचिन भी उसी विविधता की राजनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन फर्क यह है कि राजेश पायलट संघर्ष के साथ-साथ सत्ता में निर्णायक पदों पर रहे जबकि सचिन को उनके मुकाबले सत्ता में बहुत ज्यादा निर्णायक पद नहीं मिल पाए. वे संगठन में ही जूझते रहे हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस को सत्ता दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई लेकिन ऐनवक्त पर सियासी खींचतान से सीएम की कुर्सी उनसे दूर रह गई.

सियासी टकराव बनाम विचारों की राजनीति
राजेश पायलट हमेशा खुलकर अपने विचार रखते थे. चाहे वह केंद्र सरकार हो या पार्टी की लाइन. लेकिन कभी संतुलन नहीं खोया. सचिन पायलट ने भी 2020 में पार्टी के सामने अपनी नाराजगी खुलकर सामने रखी और गहलोत सरकार के खिलाफ बगावती रुख अपनाया. फर्क बस यह है कि राजेश पायलट का विरोध विचार आधारित होता था जबकि सचिन का विरोध पद और सत्ता से जुड़ा माना गया.

जनता से जुड़ाव में कोई कमी नहीं
राजेश पायलट हों या सचिन जनसंपर्क दोनों की सबसे बड़ी ताकत रही है. सचिन आज भी सबसे ज्यादा भीड़ खींचने वाले नेताओं में से एक हैं. वे लगातार प्रदेश में घूमते हैं. युवाओं और किसानों के मुद्दे उठाते हैं. यही वजह है कि आज भी उनके पास मजबूत जनाधार है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सचिन पायलट में वह ‘पॉलिटिकल मटेरियल’ है जो उन्हें बड़े नेता की श्रेणी में लाता है. लेकिन उनके रास्ते में पार्टी के भीतर की राजनीति और वरिष्ठ नेताओं की चुप्पी सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ी है.

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Sandeep Rathore

संदीप ने 2000 में भास्कर सुमूह से पत्रकारिता की शुरुआत की. कोटा और भीलवाड़ा में राजस्थान पत्रिका के रेजीडेंट एडिटर भी रह चुके हैं. 2017 से News18 से जुड़े हैं.

संदीप ने 2000 में भास्कर सुमूह से पत्रकारिता की शुरुआत की. कोटा और भीलवाड़ा में राजस्थान पत्रिका के रेजीडेंट एडिटर भी रह चुके हैं. 2017 से News18 से जुड़े हैं.

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Jaipur,Jaipur,Rajasthan

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