Last Updated:November 07, 2025, 08:41 IST
आज वंदे मातरम की रचना के 150 पूरे हो गए.150th Anniversary of Vande Mataram: आज शुक्रवार सात नवंबर को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की रचना के 150 वर्ष पूरे हो गए. यह गीत न केवल एक काव्य रचना है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा थी. बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह गीत भारत माता की आराधना का प्रतीक है, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रवाद की ज्वाला बन गई. फिर यह गीत समय बढ़ने के साथ राष्ट्रीय गीत बन गई. इतिहास के पन्नों को पलटें तो यह सफर एक साधारण कविता से शुरू होकर स्वाधीन भारत के संविधान तक पहुंचता है.’वंदे मातरम’ की रचना का बीज 1870 के दशक में बोया गया. ब्रिटिश इंडिया में डिप्टी मजिस्ट्रेट रहे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों से आहत थे. सात नवंबर 1875 में उन्होंने इसे पहली बार अपनी बंगाली पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित किया. लेकिन, पूर्ण रूप से इस गीत को 1882 में उनके उपन्यास आनंदमठ में स्थान दिया गया.
उपन्यास की कहानी 18वीं शताब्दी के संन्यासी विद्रोह पर आधारित है, जहां वंदे मातरम एक संन्यासी भवनानंद द्वारा गाया जाता है. गीत के पहले दो छंद संस्कृत में हैं, जो भारत को दुर्गा के रूप में चित्रित करते हैं. इसमें सपनों की मातृभूमि करोड़ लोगों की आवाजों से गूंजती है. बाकी छंद बंगाली में हैं, जो मां भारती की स्तुति करते हैं. बंकिम ने इसे ‘गॉड सेव द क्वीन’ का विकल्प बनाने के लिए रचा, जो ब्रिटिश शासन का राजकीय गान था.
सबसे पहले वंदे मातरम का सार्वजनिक गायन 1896 में हुआ. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता (अब कोलकाता) अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे बंगाली शैली में संगीतबद्ध कर गाया. यह अधिवेशन कांग्रेस का 12वां सत्र था, जहां राष्ट्रवाद की लहर तेज थी. टैगोर ने इसे लयबद्ध बनाया, जिससे यह केवल कविता न रहकर एक शक्तिशाली गान बन गई. इससे पहले 1882 में उपन्यास प्रकाशन पर कुछ अंश गाए गए थे, लेकिन राजनीतिक मंच पर पहली बार 1896 में ही यह गूंजा.
वर्ष 1886 के कोलकाता अधिवेशन में कवि हेमचंद्र बनर्जी ने इसके कुछ अंश गाए थे, लेकिन पूर्ण गायन 1896 का मानक माना जाता है. इस गायन ने कांग्रेस अधिवेशनों की परंपरा शुरू की. हर सत्र ‘वंदे मातरम’ से आरंभ होता. 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन ने इसे हथियार बना दिया. रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे राष्ट्रवादी नारे में बदल दिया. सड़कों पर, जुलूसों में, लाहौर से कोलकाता तक वंदे मातरम का जयघोष गूंजा. अरविंद घोष जैसे क्रांतिकारियों ने इसे स्वतंत्रता का मंत्र कहा. ब्रिटिश ने इसे प्रतिबंधित करने की कोशिश की, लेकिन 1911 में बंगाल विभाजन रद्द कराने में इस गान की भूमिका रही.
1906-1911 तक पूर्ण गीत गाया जाता था, लेकिन मुस्लिम लीग के विरोध के कारण बाद में पहले दो छंद ही अपनाए गए. गांधीजी ने भी इसे अपनाया, हालांकि वे इसके धार्मिक रंग से सावधान थे. 1937 में कांग्रेस ने इसे अपना गान घोषित किया. आजादी के बाद 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया. राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की अगुवाई में यह फैसला हुआ. ‘जन गण मन’ राष्ट्रीय गान बना, लेकिन ‘वंदे मातरम’ ने मातृभूमि की भावना को जीवंत रखा.
वर्ष 2003 में बीबीसी ने इसे एशिया का सर्वश्रेष्ठ गीत चुना. आज भी यह 52 सेकंड में गाया जाता है, जो देशभक्ति जगाता है.’वंदे मातरम’ का सफर बताता है कि एक गीत कैसे आंदोलन बन जाता है. 1875 की स्याही से निकला यह शब्द आज भी भारत की एकता का प्रतीक है. स्वतंत्रता संग्राम में इसने लाखों युवाओं को प्रेरित किया और आजादी के बाद लोकतंत्र को मजबूत किया.
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First Published :
November 07, 2025, 08:41 IST

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