रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत दौरे पर हैं. यह दौरा कई मायनों में खास है. भारत दौरे पर आए पुतिन ने अमेरिका की पोलखोलकर रख दी. अमेरिका को इस बात की आपत्ति है कि भारत रूस और ईरान से तेल खरीदी ना करे. इसके साथ ही अमेरिका ने भारत पर टैरिफ 50 प्रतिशत कर दिया है, जो पहले था. इन दोनों ही मुद्दों को लेकर पुतिन ने अमेरिका की नीतियों पर सवाल खड़े किए. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत दौरे पर अपने एक बयान से साफ कर दिया कि अमेरिका भारत के साथ दोहरा खेल खेल रहा है.
इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में पुतिन ने बताया कि अमेरिका खुद रूस से न्यूक्लियर फ्यूल यानी यूरेनियम खरीदता है, जो उसके न्यूक्लियर पावर प्लांट्स में इस्तेमाल होता है. यह भी एक तरह का ऊर्जा ईंधन है, लेकिन जब भारत रूस से तेल या ऊर्जा से जुड़े उत्पाद खरीदता है, तो उस पर अमेरिका टैरिफ और दबाव बनाता है. पुतिन ने साफ-साफ कह दिया कि 'अगर अमेरिका को रूस से यूरेनियम खरीदने की आजादी है, तो भारत को क्यों नहीं?' उन्होंने इसे दोहरा मापदंड करार दिया और कहा कि इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ चर्चा होगी.
पुतिन ने इस बयान से साफ कर दिया कि वो भारत के साथ खड़े हैं. सिर्फ इतना नहीं, उनके इस दौरे से भारत को परमाणु ऊर्जा के मामले में काफी कुछ मिलने की उम्मीद है. यहां हम जानेंगे कि आखिर न्यूक्लियर फ्यूल यानी यूरेनियम क्या है, जिसे खुद अमेरिका रूस से खरीदता है? इसके साथ ही ये भी जानेंगे कि रूस की तरफ से भारत को परमाणु ऊर्जा को बढ़ाने के क्षेत्र में कौन सी बड़ी मदद मिलने वाली है....
आखिर क्या है न्यूक्लियर फ्यूल यानी यूरेनियम?
न्यूक्लियर फ्यूल यानी यूरेनियम एक ऐसा विशेष ईंधन है, जो धरती में पाया जाने वाला एक भारी धातु है. यह परमाणु बिजलीघरों में बिजली बनाने के काम आता है. इसमें U-235 नाम का हिस्सा होता है, जो टूटकर बहुत ज्यादा ऊर्जा पैदा करता है. इसी ऊर्जा से परमाणु ऊर्जा संयंत्र बिजली बनाते हैं. इसे इस्तेमाल करने से पहले यूरेनियम को जमीन से निकाला जाता है. फिर साफ किया जाता है और फिर खास तरह की फ्यूल रॉड्स में बदला जाता है.
रूस से क्यों यूरेनियम खरीदते हैं कई देश?
माना जाता है कि रूस के पास बहुत ज्यादा यूरेनियम है और उसे तैयार करने की दुनिया की सबसे बड़ी क्षमता भी है. यही वजह है कि वो दुनिया को परमाणु ईंधन देने वाले सबसे बड़े देशों में गिना जाता है. उससे अमेरिका और यूरोप के कई देश अपने परमाणु बिजलीघरों के लिए यूरेनियम लेते हैं. रूसी यूरेनियम इसलिए इतना अहम है, क्योंकि परमाणु ऊर्जा बनाने के लिए सबसे जरूरी हिस्सा यही होता है और रूस इसे खुद निकाल भी सकता है, तैयार भी कर सकता है और दुनिया को बेच भी सकता है. उसके पास पर्याप्त साधन भी हैं.
भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में रूस से क्या मिलने वाला है?
अब सवाल ये है कि भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में रूस से क्या मिलने वाला है? तो जान लीजिए कि रूसी परमाणु कंपनी Rosatom भारत में अपने छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) लगाने के लिए जोर दे रही है. साथ ही वह अपनी नई पीढ़ी की बड़ी परमाणु ऊर्जा रिएक्टर परियोजनाओं को भारत के साथ सहयोग का आधार बनाने की कोशिश कर रही है. पुतिन के भारत दौरे के दौरान रूस के परमाणु उद्योग का एक बड़ा दल भी आया है. दोनों देशों के बीच पिछली मुलाकात 10 नवंबर को मुंबई में हुई थी, जिसमें भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के अध्यक्ष अजीत कुमार मोहंती और Rosatom के डायरेक्टर जनरल एलेक्सी लिखाचेव ने चर्चा की थी.
रूस की एसएमआर पेशकश
रूस छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) के क्षेत्र में दुनिया में सबसे आगे है. SMR छोटे, उन्नत परमाणु रिएक्टर हैं, जिनकी क्षमता भले ही पारंपरिक रिएक्टरों की लगभग एक-तिहाई होती है, लेकिन इनकी खासियत ये है कि यह कम कार्बन वाली बिजली बड़े पैमाने पर पैदा कर सकते हैं. परमाणु रिएक्टर अपनी बिजली बनाने के लिए यूरेनियम का ईंधन इस्तेमाल करता है. रिएक्टर के अंदर यूरेनियम-235 के परमाणु टूटते हैं, जिससे गर्मी पैदा होती है. यह गर्मी पानी को भाप में बदल देती है, और भाप टर्बाइन घुमा कर बिजली बनाती है.
दुनिया में सिर्फ 2 SMR
विश्व में फिलहाल दो SMR पहले से चल रहे हैं. एक है Akademik Lomonosov जो एक फ्लोटिंग पावर यूनिट. इसकी दो इकाइयां 35 मेगावाट बिजली देती हैं. यह आर्कटिक बंदरगाह Pevek को बिजली और हीटिंग देने काम करता है. दूसरा SMR चीन का HTR-PM है, जो दिसंबर 2021 में ग्रिड से जुड़ा और दिसंबर 2023 में वाणिज्यिक संचालन शुरू हुआ. इसके अलावा, Holtec , Rolls-Royce SMR, NuScale, Westinghouse और GE-Hitachi जैसी कंपनियां भी SMR बनाने में लगी हैं.
भारत में सबसे बड़ा परमाणु स्टेशन
अगर भारत की बात करें तो तमिलनाडु का कुडनकुलम न्यूक्लियर पावर प्लांट (KKNPP) भारत का सबसे बड़ा परमाणु स्टेशन है. यह भारत-रूस का प्रमुख प्रोजेक्ट भी है. यहां लगी यूनिट 1 और 2 पहले से बिजली दे रहे हैं. पहली यूनिट 2013 में लगी थी, जबकि दूसरी 2016 से चल रही है. यूनिट 3 में सुरक्षा प्रणाली के परीक्षण चल रहे हैं. यूनिट 4 में निर्माण और उपकरण डिलीवरी जारी है. यूनिट 5 और 6 का निर्माण भी सक्रिय रूप से चल रहा है. यहां लगे कुल 6 यूनिटों की क्षमता 6000 मेगावाट है.
अब रूस भारत में नई पीढ़ी के VVER-1200 रिएक्टर लगाने की प्लानिंग कर रहा है, हालांकि नए बड़े समझौते तुरंत नहीं हो सकते, क्योंकि अगले सप्ताह अमेरिका का प्रतिनिधिमंडल भी भारत आने वाला है. आगामी बातचीत में दोनों देशों के बीच बड़े और छोटे दोनों प्रकार के रिएक्टर लगाने और न्यूक्लियर ईंधन चक्र में सहयोग बढ़ाने की पूरी संभावना है. अप्रैल 2024 में Rosatom ने भारत को अपने फ्लोटिंग न्यूक्लियर पावर समाधान की जानकारी दी थी, जिसमें यह तकनीक सीमित ग्रिड वाले दूरस्थ इलाकों और बड़े उद्योगों को बिजली देने में सक्षम है. इतना ही नहीं. भारत में उपकरण का स्थानीय उत्पादन (Make-in-India) करने के मौके भी हैं, क्योंकि रेल विकास निगम (RVNL) जैसे विभाग अपनी चार चालू रेल परियोजनाओं के लिए SMR लगाने की तैयारी में हैं, जैसे ऋषिकेश-कर्णप्रयाग लाइन.
अखिर SMR भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण?
सवाल ये है कि छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर यानी SMR भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं तो जान लीजिए कि इससे दूर-दराज के क्षेत्रों में बिजली पहुंचेगी. औद्योगिक इकाइयों और डेटा सेंटर को बिजली मिल पाएगी. आधारभूत बिजली (Base Load) की क्षमता तेजी से बढ़ेगी. Rosatom की कंपनी TVEL भारत को पहले ही TVC-2M ईंधन दे रही है, जो कुडनकुलम रिएक्टर को 18 महीने के ईंधन चक्र पर चलाने की अनुमति देता है. इससे बिजली इकाइयों की आर्थिक दक्षता पारंपरिक 12 महीने की तुलना में बेहतर होती है.
क्या है भारत का टारगेट?
भारत अब एसएमआर तकनीक को औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन और बेस लोड बिजली के लिए बढ़ावा दे रहा है. इससे ग्रिड ऑपरेटर्स को नवीकरणीय ऊर्जा के उतार-चढ़ाव को संतुलित करने में मदद मिलती है. भारत में फिलहाल 24 रिएक्टर काम कर रहे हैं, जो कुल 7,943 मेगावाट है. इसके अलावा 4,768 मेगावाट वाले 6 रिएक्टर निर्माणाधीन हैं. भारत का टारगेट है कि 2033 तक 5 स्वदेशी डिजाइन वाले SMR बनाए जाएं. ऐसा हुआ तो विदेशी कंपनियों को भी निवेश करने का रास्ता खुलेगा.
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