Last Updated:July 19, 2025, 05:01 IST
21 साल के सेकंड लेफ्टिनेंट राजीव संधू ने श्रीलंका में ऑपरेशन पवन के दौरान साहस दिखाया. लिट्टे के घात लगाकर हमले में उनके दोनों पैर उड़ गए, शरीर गोलियों से छलनी था. फिर भी, रेंगते हुए उन्होंने कार्बाइन से आतंकी ...और पढ़ें

राजीव की बहादुरी को सलाम. (File Photo)
हाइलाइट्स
राजीव संधू ने श्रीलंका में ऑपरेशन पवन के दौरान वीरता दिखाई.लिट्टे के हमले में पैर उखड़ने के बावजूद आतंकियों से भिड़ गए.1990 में राजीव संधू को मरणोपरांत महावीर चक्र मिला.19 जुलाई 1988 यानी आज ही के दिन 37 साल पहले श्रीलंका के जंगलों में 21 साल के सेकंड लेफ्टिनेंट राजीव संधू ने वीरता की ऐसी मिसाल कायम की, जो आज भी प्रेरणा देती है. चंडीगढ़ के सैन्य परिवार में जन्मे राजीव ने देशभक्ति की भावना विरासत में पाई थी. उनके पिता देविंदर सिंह संधू भारतीय वायु सेना में सेवा दे चुके थे और दादा जी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना में योगदान दिया था. सेंट जॉन्स हाई स्कूल और डीएवी कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद राजीव ने 1988 में असम रेजिमेंट की 7वीं बटालियन में कमीशन हासिल किया और जल्द ही 19 मद्रास रेजिमेंट में स्थानांतरित हो गए.
गोली खाकर भी नहीं थमें
उस दिन ऑपरेशन पवन के तहत श्रीलंका में तैनात राजीव को राशन लाने के लिए एक काफिले का नेतृत्व सौंपा गया. उनकी जीप और एक टन का ट्रक जंगल से गुजर रहा था, तभी लिट्टे के उग्रवादियों ने घात लगाकर हमला किया. रॉकेट और गोलियों की बौछार में जीप के दो जवान शहीद हो गए और चालक नायक राजकुमार गंभीर रूप से घायल. राजीव के दोनों पैर विस्फोट से उड़ गए, शरीर गोलियों से छलनी था. फिर भी असहनीय दर्द में रेंगते हुए, उन्होंने अपनी 9 एमएम कार्बाइन उठाई और एक आतंकी को ढेर कर दिया. मारा गया आतंकी लिट्टे का सेक्टर कमांडर का खास गुर्गा था.
भाग खड़े हुए आतंकी
उग्रवादियों ने गोलीबारी तेज की लेकिन राजीव डटे रहे. उन्होंने हथियार और साथी का शव आतंकियों के हाथ नहीं लगने दिया. कमजोर आवाज में उन्होंने नायक भगीरथ को दुश्मनों को घेरने का आदेश दिया. उनकी रणनीति से काफिले ने जवाबी हमला किया, और आतंकी भाग खड़े हुए. घायल राजीव ने अपने साथियों को पहले निकालने का आदेश दिया, खुद को अंत में रखा. खून की कमी से कोमा में गए राजीव हेलीकॉप्टर निकासी के दौरान शहीद हो गए. उनके बलिदान के लिए 1990 में मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनकी कहानी साहस और समर्पण की अमर गाथा है.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
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