Last Updated:March 31, 2025, 06:32 IST
अमित शाह बिहार दौरे पर आए तो इससे जितनी घबराहट आरजेडी को हुई, उससे कम भाजपा के पुराने सहयोगी जेडीयू में नहीं थी. आरजेडी को अपने भरोसेमंद साथी VIP प्रमुख मुकेश सहनी के अमित शाह के जाल में फंसने का भय सता रहा था....और पढ़ें

रविवार को अमित शाह बिहार दौरे पर आए थे.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भाजपा के चुनावी चाणक्य माने जाते हैं. उनकी मेहनत और सुचिंतित रणनीति 2014 से लगातार दिखती रही है. राज्यों में 2014 के बाद भाजपा शासित सरकारों की संख्या लगातार बढ़ती गई. नार्थ ईस्ट के राज्यों में भी भाजपा ने गहरी पैठ जमा ली है, इसके पीछे शाह की ही रणनीति रही है. 2015 में बिहार एनडीए के हाथ से निकला तो अमित शाह ने दो साल बाद ही नीतीश कुमार को पटा कर महागठबंधन सरकार का पटाक्षेप करा दिया था. अमित शाह ने इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बिहार में डेरा डालने की बात कही है. चुनावी साल में उनका दो दिवसीय बिहार दौरा भी हो गया. अलग-अलग बैठकों-मुलाकातों में भाजपा के साथ-साथ उन्होंने एनडीए में शामिल पार्टियों के नेताओं को भी जीत का मंत्र दिया है. चुनाव के नेतृत्व पर भी उन्होंने साफ कर दिया है. नीतीश कुमार के नाम पर मुहर लगा कर उन्होंने जेडीयू को भी राहत दे दी है. एनडीए को उन्होंने इस बार 243 में 225 सीटों पर जीत का टास्क दिया है.
यूपी में दिखा था शाह का करिश्मा
अमित शाह की कुशल चुनावी रणनीति पहली बार उत्तर प्रदेश में दिखी थी. वर्ष 2013 में भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम फेस बनाने का फैसला किया तो उनके आग्रह पर तत्कालीन पार्टी प्रमुख राजनाथ सिंह ने अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया. अमित शाह ने बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत किया. नतीजा 2014 के लोकसभा चुनाव में सामने आया. उत्तर प्रदेश की 80 संसदीय सीटों में भाजपा ने 71 पर जीत दर्ज की. भाजपा की यही बेमिसाल जीत 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में आधार बनी. समाजवादी पार्टी के हाथ से यूपी की कमान निकल गई. योगी आदित्यनाथ सूबे के सीएम बने. 2022 में योगी के काम और नरेंद्र मोदी के नाम पर अगर यूपी की जनता ने दोबारा भाजपा को बहुमत दी तो इसमें अमित शाह के बूथ स्तर पर तैयार किए गए सांगठनिक ढांचे की भूमिका भी कम न थी.
ज्यादातर मामलों में शाह सफल
अमित शाह जो ठान लेते हैं, ज्यादातर मामलों में उन्हें सफलता मिल ही जाती है. उनके कामकाज का तरीका औरों से अलग होता है. वे जो काम करने जा रहे होते हैं, उससे पहले उसका वे बड़ी बारीकी से अध्ययन करते हैं. गृह मंत्रालय का प्रमुख होने के नाते उन्हें किसी की कमी-कमजोरी खोजना मुश्किल नहीं होता. इसे समझने के लिए दशक भर पीछे चलना होगा. गुजरात में राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने थे. सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल तब कांग्रेस कोटे से प्रत्याशी थे. उनकी जीत में कोई संशय नहीं था. अमित शाह की रणनीति से अहमद पटेल का खेल बिगड़ गया. हुआ यह कि भाजपा ने कांग्रेस के ही एक विधायक को उम्मीदवार बना दिया. उनके समर्थन में कांग्रेस के 6 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. विधायकों में मची भगदड़ को रोकने के लिए कांग्रेस ने बाकी विधायकों को कर्नाटक भेज दिया. कर्नाटक में वे जिसके मेहमान बने, उसी के यहां केंद्रीय एजेंसियों ने दस्तक दे दी. ऐसी होती है अमित शाह की रणनीति, जिसकी वजह से उन्हें चुनावी चाणक्य लोग कहते हैं.
पटना पहुंचे अमित शाह का सीएम नीतीश कुमार ने स्वागत किया.
बिहार में अमित शाह जमाएंगे डेरा
बिहार में अमित शाह की रणनीति कितनी कारगर होती है, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा. वैसे अमित शाह के बिहार में डेरा डालने की घोषणा से यह संकेत जरूर मिलता है कि वे इस बार भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनाने का संकल्प ले चुके हैं. उनकी कामयाबी में संदेह की गुंजाइश सिर्फ इतनी भर दिखती है कि बंगाल में तमाम तरह की रणनीति के बावजूद भाजपा 2021 में ममता बनर्जी का कुछ बिगाड़ नहीं पाई थी. वैसे शाह की ऐसी असफलता के अनेक नहीं, इक्का-दुक्का उदाहरण ही मिलेंगे. ज्यादातर मामलों में वे कामयाब ही रहे हैं. बिहार की अगली सरकार भाजपा के ही नेतृत्व में बनेगी, इसका इशारा वे पहले ही कर चुके हैं. उन्होंने एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि चुनाव नीतीश कुमार के ही नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, लेकिन सीएम फेस का फैसला संसदीय बोर्ड की बैठक में होगा. शनिवार को पटना में भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में भी उन्होंने दोहराया कि नीतीश के नेतृत्व में ही एनडीए चुनाव लड़ेगा. पर, अगला सीएम कौन होगा, इस पर वे चुप रह गए.
शाह के आने से सहमा रहा RJD!
अमित शाह ने बिहार में दस्तक दे दी है. अब वे विधानसभा चुनाव तक बिहार पर खास नजर रखेंगे. कहा तो यह है कि वे बिहार में डेरा जमाएंगे. संभव है, चुनाव के कुछ महीने बचें तो बिहार आने की उनकी फ्रिक्वेंसी बढ़ जाए. डेरा जमाने में संदेह इसलिए है कि उनके जिम्मे कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी है. बिहार में दो दिन रह कर उन्होंने सबके होश फाख्ता कर दिए थे. महागठबंधन को भय सता रहा था कि कहीं विकासशील इंसान पार्टी (VIP) सुप्रीमो मुकेश सहनी को वे न खिसका लें. प्रसंगवश यह उल्लेख आवश्यक है कि मुकेश सहनी को लोकसभा चुनाव से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उन्हें Y+ सेक्योरिटी मुहैया कराई थी. तब भी यह चर्चा थी कि सहनी एनडीए में वापसी कर सकते हैं. इस पर भाजपा नेताओं या एनडीए के साथियों से कोई चर्चा की, इस बारे में जानकारी तो बाहर नहीं आई है, पर अभी निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता. सहनी अभी महागठबंधन में आरजेडी के भरोसेमंद साथी हैं. जेडीयू नेताओं को भय था कि कहीं नीतीश कुमार की सेहत को लेकर कोई अप्रीय फैसला न सुना दें. हालांकि शाह ने अब सबको निश्चिंत कर दिया है कि चुनाव तक कोई खतरा नहीं है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा.
शाह प्री और पोस्ट पोल के मास्टर
अमित शाह बिहार पर अगर नजर रख रहे हैं तो तीन बातें हो सकती हैं. पहला कि विपक्ष में तोड़-फोड़ की जाए. महागठबंधन से वीआईपी को अलग किया जाए. यह उनके प्री पोल की प्राथमिकता में होगा. इससे इतर एक और महत्वपूर्ण काम वे यह कर सकते हैं कि कैसे सहयोगी दलों को भाजपा की शर्तों पर टिकट के लिए राजी किया जाए. राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि एक साथ बिहार के जिन 6 लोगों के यहां प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीम ने छापेमारी कर 11 करोड़ से अधिक नकदी बरामद की, वे सभी नीतीश कुमार के करीबियों में रहे हैं. इसमें भवन निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता तारिणी प्रसाद भी हैं, जिन्हें नीतीश सरकार ने एक्सटेंशन देकर रखा था. इसे जेडीयू पर चुपचाप भाजपा की बात मान लेने के लिए दबाव के तौर पर देखा जा रहा है. पोस्ट पोल स्केट्रेटजी के भी अमित शाह मास्टर माने जाते हैं. महाराष्ट्र में शिंदे को समझाने में शाह की ही भूमिका रही. शाह का करिश्मा तो जम्मू-कश्मीर में भी दिखा था, जब 2014 में भाजपा ने पीडीपी के नेतृत्व वाली सरकार में भागीदारी की थी.
First Published :
March 31, 2025, 06:32 IST