Last Updated:May 02, 2025, 15:50 IST
Ancient stone inscription: तमिलनाडु के परमकुडी स्थित इमनेश्वरम शिव मंदिर में 800 साल पुराना पांड्य काल का शिलालेख मिला है. इसमें भूमि दान, कर माफी और धार्मिक आयोजनों की जानकारी है, जो उस दौर के इतिहास को उजागर ...और पढ़ें

800 साल पुराना शिलालेख
तमिलनाडु के परमकुडी इलाके में स्थित इमानेश्वरम शिव मंदिर में एक नया ऐतिहासिक रहस्य सामने आया है. पुरातत्वविदों को यहां 13वीं शताब्दी यानी करीब 800 साल पुराना एक शिलालेख मिला है. यह शिलालेख पांड्य राजाओं के दौर से जुड़ा हुआ है और इससे उस समय की सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था का पता चलता है.
1914 के रिकॉर्ड की जांच में हुआ नया खुलासा
यह खोज रामनाथपुरम पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रमुख वी. राजगुरु और उनकी टीम ने की. उन्होंने केंद्रीय पुरातत्व विभाग के साथ मिलकर मंदिर में पहले से दर्ज 1914 के शिलालेखों की दोबारा जांच शुरू की थी. इसी दौरान मंदिर के दक्षिण हिस्से में एक काले पत्थर पर यह नया शिलालेख दिखाई दिया, जो अब तक दर्ज नहीं था.
मंदिर के अंदर दो तीर्थ स्थल, मिला खास पत्थर
इस मंदिर में दो प्रमुख पूजा स्थल हैं – इयामनेश्वरमुदैयार और मल्लिकार्जुनेश्वरम. माना जा रहा है कि जो पत्थर मिला है, वह मल्लिकार्जुनेश्वरम मंदिर के गर्भगृह में पहले लगा हुआ था. इस पर दो खंडित यानी टूटे हुए हिस्सों में कुल 22 पंक्तियों में लिखा गया शिलालेख है. इसकी खास बात यह है कि हर पंक्ति में अक्षरों का आकार अलग है, जिससे लगता है कि यह कई शिलालेखों के टुकड़ों को जोड़कर बना है.
शिलालेख में भूमि दान और उत्सवों का ज़िक्र
इस शिलालेख में खास बात यह है कि इसमें मंदिर में होने वाले तीन धार्मिक उत्सवों के लिए दान में दी गई भूमि का ज़िक्र है. इनमें दो बाड़ भूमि, मठ के लिए पांच मास भूमि और एक खास पूजा ‘तिरुगणम’ के दिन के लिए दो मास भूमि दान की बात कही गई है. ‘तिरुगणम’ दरअसल थेवरम जैसे भक्ति गीतों का पाठ होता है जो मंदिरों में गाया जाता था.
पांड्य काल की कर व्यवस्था और भूमि दान की झलक
शिलालेख में पांड्य राजाओं के समय प्रचलित कर प्रणाली और दान व्यवस्था की भी जानकारी मिलती है. इसमें कामता, अंदारायम, वेट्टीपट्टम जैसे शब्दों का ज़िक्र है, जो उस समय की कर या भूमि व्यवस्था से जुड़े थे. इन करों को राजा माफ कर देते थे और मंदिर या मठों को भूमि दान में दे देते थे. यह भूमि कभी-कभी बौद्ध और जैन मंदिरों को भी दी जाती थी, जिसे ‘पल्लीचंदा’ कहा जाता था.
मठ के अस्तित्व की वजह भी सामने आई
इस शिलालेख में साफ तौर पर बताया गया है कि मठ यानी धार्मिक आश्रम इस इलाके में इसलिए बना क्योंकि उसे चलाने के लिए भूमि दी गई थी. इससे यह भी संकेत मिलता है कि मठ न सिर्फ पूजा का केंद्र थे, बल्कि सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में भी बड़ी भूमिका निभाते थे.