'संविधान से हटाएं सेकुलर शब्द?' SC में सुब्रमण्यम स्वामी ने कही ऐसी बात कि...

1 month ago
संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को गर्मागर्म जिरह देखने को मिली. (प्रतीकात्मक- News18)संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को गर्मागर्म जिरह देखने को मिली. (प्रतीकात्मक- News18)

संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को गर्मागर्म जिरह देखने को मिली. यह पीआईएल दायर करने वालों वरिष्ठ वकील विष्णु शंकर जैन, बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय और सुब्रमण्यम स्वामी शामिल हैं. इस दौरान पूर्व बीजेपी सांसद स्वामी ने ऐसी दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले पर विस्तार से सुनवाई के तैयार हो गया.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की बेंच ने सोमवार को इस पीआईएल पर सुनवाई की. यहां याचिकाकर्ता और अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने दलील दी कि वर्ष 1976 में संविधान में 42वें संशोधन के जरिये इसमें ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए, जबकि इन बदलावों पर संसद में कभी बहस नहीं हुई. इस वजह से इन्हें संविधान की प्रस्तवना से हटा देना चाहिए.

‘समाजवाद-धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी अवधारणा नहीं’
इस पर जस्टिस खन्ना ने जवाब दिया कि इस मामले पर लंबी बहस हो चुकी है. उन्होंने कहा, ‘प्लीज देखें मिस्टर जैन, इन शब्दों की अलग-अलग व्याख्याएं हैं. आज दोनों शब्दों की अलग-अलग व्याख्याएं हैं. यहां तक ​​कि हमारी अदालतों ने भी इन्हें बार-बार (संविधान के) मूल ढांचे का हिस्सा घोषित किया है.’ जस्टिस खन्ना ने इसके साथ ही कहा, ‘समाजवाद का अर्थ यह भी हो सकता है कि सभी के लिए उचित अवसर हो, समानता की अवधारणा हो. इसे पश्चिमी अवधारणा में न लें. इसका कुछ अलग अर्थ भी हो सकता है. धर्मनिरपेक्षता शब्द के साथ भी यही है.’

याचिकाकर्ता में शामिल वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने इंदिरा गांधी सरकार के लगाए आपातकाल का हवाला दिया, जिस दौरान संविधान में यह संशोधन लागू किया गया था. अश्विनी उपाध्याय ने कहा, ‘मैं इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता कि जस्टिस एचआर खन्ना ने क्या किया और हमें बचाया.’

यहां वह सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 1976 के उस फैसले की तरफ से इशारा कर रहे थे, जिसमें कहा गया था कि किसी व्यक्ति को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में न लिए जाने के अधिकार को राज्य के हित में निलंबित किया जा सकता है. संविधान पीठ के 4-1 से पारित इस फैसले में जस्टिस एचआर खन्ना अकेले असहमति जताने वाले जज थे. जस्टिस संजीव खन्ना इन्ही जस्टिस एचआर खन्ना के भतीजे हैं.

‘क्या आप नहीं चाहते कि भारत धर्मनिरपेक्ष हो?’
इन वकीलों की दलीलों का जवाब देते हुए जस्टिस खन्ना ने सवाल किया, ‘क्या आप नहीं चाहते कि भारत धर्मनिरपेक्ष हो?’ इस पर एडवोकेट जैन ने जवाब दिया, ‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं है. हम इस संशोधन को चुनौती दे रहे हैं.’ तो जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘अगर संविधान में समानता के अधिकार और ‘बंधुत्व’ शब्द के साथ-साथ भाग III के तहत अधिकारों को देखें, तो साफ संकेत मिलता है कि धर्मनिरपेक्षता को संविधान की मुख्य विशेषता माना गया है. मैं आपके लिए कुछ उदाहरण दे सकता हूं. जब धर्मनिरपेक्षता पर बहस हुई थी, तब केवल फ्रांसीसी मॉडल था. सुप्रीम कोर्ट ने धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध जाने वाले कानूनों को खारिज कर दिया है. आप अनुच्छेद 25 को देख सकते हैं. समाजवाद के लिए, हमने पश्चिमी अवधारणा का पालन नहीं किया है और हम इससे खुश हैं.’

फिर एडवोकेट जैन ने डॉ. बीआर अंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि उनका मानना ​​था कि ‘समाजवाद’ शब्द स्वतंत्रता को कम करेगी. इस पर जस्टिस खन्ना ने सवाल किया, ‘क्या स्वतंत्रता कम हुई है? मुझे बताएं?’

सुब्रमण्यम स्वामी की दलील
पीआईएल दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं में शामिल भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में 26 नवंबर, 1949 की तारीख का जिक्र है. उन्होंने कहा, ‘संविधान की प्रस्तावना में जो बदलाव हुआ, वह संविधान की मूल भावना के खिलाफ था. यह (संशोधन) कहीं और हो सकता है, लेकिन प्रस्तावना में नहीं.’

सुब्रमण्यम स्वामी ने इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वो अपनी दलील विस्तार से रखना चाहते हैं. इस पर जस्टिस खन्ना ने मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को तय करते हुए सभी याचिकाकर्ताओं से प्रासंगिक दस्तावेज पेश करने को कहा ताकि वह उनकी जांच कर सके.

Tags: Indian Constitution, Supreme Court

FIRST PUBLISHED :

October 21, 2024, 17:23 IST

Read Full Article at Source