सबसे शक्तिशाली इंसान लगातार मुंह की खा रहा! अमेरिका में ट्रंप से ज्यादा पावरफुल कौन?

4 hours ago

Donald Trump Vs Harvard University: अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने देष के सबसे पुराने शिक्षा संस्थानों में एक Harvard University के खिलाफ मनमाने फैसले लेते हुए विदेशी छात्रों के दाखिले पर प्रतिबंध लगा दिया. दूसरी ओर Harvard ने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया और कोर्ट जाकर ट्रंप के फैसले पर स्टे लगवा दिया. ट्रंप को ये गलतफहमी लग रही थी कि वो अमेरिका में सबसे पावरफुल हैं, लेकिन अमेरिका की एक कोर्ट ने उनका गुरूर तोड़ दिया.

ट्रंप की हार भारतीयों की जीत कैसे?

अब पूरा मामला समझिये- ट्रंप ने Harvard University में अंतरराष्ट्रीय छात्रों को एडमिशन देने पर रोक लगाई. इसके तुरंत बाद Harvard की तरफ से ट्रंप सरकार के फैसले को चुनौती दी गई और अर्जी दाखिल होने के कुछ घंटों के भीतर ही जज एलिसन बरोज ने ट्रंप प्रशासन के फैसले पर रोक लगा दी. हालांकि ये रोक अभी अस्थायी है. इसका मतलब है कि Harvard फिलहाल अंतरराष्ट्रीय छात्रों को एडमिशन दे सकता है. पर ये मामला अभी खत्म नहीं हुआ है. कोर्ट में इस पर अगली सुनवाई 29 मई को होगी और ये भारतीय छात्रों के लिये राहत की खबर है.

हावर्ड को समझिए

Harvard में साल 2024 और 25 में 788 भारतीय छात्रों ने एडमिशन लिया था. वहां हर साल औसतन 500 से 800 इंडियन स्टूडेंट्स दाखिला लेते हैं.
Harvard में 6700 से ज्यादा विदेशी छात्र हैं. यहां 10 में से 3 छात्र विदेशी हैं. भारतीय छात्रों की संख्या दूसरी सबसे बड़ी है. पहले नंबर पर चीन है.
Harvard समेत US की अन्य यूनिवर्सिटी में मौजूद भारतीय छात्रों की वजह से इकॉनमी में सालाना 76000 करोड़ रुपये से अधिक का योगदान है.

कई भारतीय छात्रों ने Harvard में डॉक्टरेट और ग्रैजुएट प्रोग्राम में दाखिला लिया है. हालांकि ट्रंप प्रशासन ने ऐसे छात्रों को ट्रांसफर कराने के लिए कहा था पर इंडियन स्टूडेंट्स के लिये शैक्षणिक सत्र के बीच में ही ट्रांसफर कराना लगभग नामुमकिन था. कोर्ट के फैसले ने छात्रों का कीमती समय बर्बाद होने से बचा लिया. भारतीय छात्रों को तत्काल राहत मिल गई.

हालांकि ट्रंप के लिये चिंता की बात ये है कि ये फैसला देने वाले जज की अदालत में ही Harvard को 22 हजार करोड़ की फंडिंग रोके जाने का मामला भी आया है जो ट्रंप के इशारे पर रोकी गई थी. ट्रंप को Harvard कितना खटकता है. ये समझने के लिये आप उनका एक बयान ध्यान से पढ़िए, जिसमें उन्होंने Harvard University से जुड़े फंड्स की बात की थी.

ट्रंप की लगातार दूसरी हार

ट्रंप प्रशासन ने आरोप लगाया था कि Harvard ने अपने विश्वविद्यालय में यहूदियों के प्रति भेदभाव समाप्त नहीं किया. हालांकि Harvard इन आरोपों से साफ इनकार कर रहा है. आप इसे भारत से जुड़े मामलों में ट्रंप की लगातार दूसरी हार भी कह सकते हैं. 

Harvard University से ठीक पहले ट्रंप ने आईफोन बनाने वाली कंपनी Apple को भारत में फोन बनाने की फैक्ट्री लगाने से मना किया. लेकिन जब Apple ने अपना कदम पीछे नहीं हटाया तो ट्रंप ने टैरिफ लगाने की धमकी दी. इसके बावजूद Apple पीछे हटने को तैयार नहीं है और ये भी किसी बेइज्जती से कम नहीं है.

DNA में हमने आपको बताया था कि ट्रंप को एक बुरी आदत है. वो दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों को अपने घर बुलाकर बेइज्जत करते रहे हैं. हालांकि जिस तरह से अमेरिका के संस्थान और कंपनियां ट्रंप के खिलाफ पलटवार कर रही हैं. इसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति को भी बेइज्जती सहने की आदत डाल लेनी चाहिए.

Harvard University की ताकत

अब आपको Harvard University से जुड़े कुछ आंकड़े दिखाते हैं. जिससे आपको पता चलेगा कि इस यूनिवर्सिटी का अमेरिका को सुपरपावर बनाने में कितना बड़ा योगदान है. लेकिन ट्रंप इस विरासत को मिट्टी में मिलाना चाहते हैं.

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— Zee News (@ZeeNews) May 24, 2025

2009 से 2023 तक Harvard ने 45000 से ज्यादा पेटेंट फाइल किए जो किसी प्रोडक्ट/अविष्कार को बनाने या बेचने का अधिकार होता है.
Harvard से जुड़े रिसर्चर्स और पूर्व छात्रों को 160 से अधिक नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं. Harvard के पूर्व छात्र बिल गेट्स ने माइक्रोसॉफ्ट की स्थापना की. मार्क जकरबर्ग ने फेसबुक की स्थापना की. दोनों की मदद से अमेरिकी इकॉनमी में अरबों-खरबों डॉलर का योगदान हुआ. लाखों लोगों को नौकरियां भी मिलीं. हालांकि इन दोनों ने भी Harvard की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दिया था.

खुद अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे ट्रंप?

माना जाता है कि Harvard की मदद से अमेरिका आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी AI में दुनिया में सबसे आगे है. Harvard के पूर्व छात्रों में बराक ओबामा और जॉन एफ केनेडी जैसे 8 अमेरिकी राष्ट्रपति और कुल 188 अरबपति शामिल हैं. ये कोई छोटा-मोटा आंकड़ा नहीं है. IMF की डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर गीता गोपीनाथ, उद्योगपति रतन टाटा और नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन भी Harvard के छात्र रह चुके हैं.

आप ये भी कह सकते हैं कि Harvard University एक तरह से ग्लोबल लेवल पर अमेरिका की सॉफ्ट पावर जैसी है. इसकी एक वजह ये भी है कि यहां भारत सहित दुनिया भर का टैंलेंट पहुंचता है. लेकिन ट्रंप मनमानी करके इस विश्वविद्यालय को टारगेट करके. खुद अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारने की कोशिश कर रहे हैं.

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