कौन हैं वो गोद ली हुईं बेटियां जिनकी वजह से जस्टिस चंद्रचूड़ ने मांगी थी मोहलत

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Last Updated:July 08, 2025, 14:54 IST

पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की दोनों बेटियां स्पेशल चाइल्ड हैं. उनकी देखभाल की वजह से सरकारी आवास में रहने की मोहलत मांगी थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट प्रशासन के पत्र लिखे जाने से विवाद पैदा हो गया.

कौन हैं वो गोद ली हुईं बेटियां जिनकी वजह से जस्टिस चंद्रचूड़ ने मांगी थी मोहलत

पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ परिवार के साथ.

हाइलाइट्स

पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेटियां दुर्लभ बीमारी से पीड़ित हैंबेटियों की देखभाल के कारण सरकारी आवास में रहने की मोहलत मांगीसुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने आवास खाली करने के लिए पत्र लिखा

Justice DY Chandrachud: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को रिटायर हुए सात महीने हो चुके हैं. लेकिन वे आधिकारिक सीजेआई आवास में तय समय सीमा से अधिक समय से रह रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने आधिकारिक आवास खाली करने के लिए सरकार को पत्र लिखा. अखबारों में पत्र छपने के बाद भारत के कानूनी हलकों में एक विवाद छिड़ गया. पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने अपनी दो बेटियों प्रियंका और माही की गंभीर देखभाल की जरूरतों का हवाला देते हुए अपने लंबे समय तक रहने का कारण स्पष्ट किया है. उन्होंने ‘द हिंदू’ को बताया, “हम यहां अंतहीन रूप से रहने के लिए नहीं आए हैं. मैंने यह स्पष्ट कर दिया था कि मैं बहुत लंबे समय तक नहीं रहने वाला हूं.”

तो फिर मामला क्या है? पूर्व सीजेआई ने अपना सरकारी आवास छोड़ने में देरी के लिए बेटियों की किस मेडिकल समस्या का हवाला दिया है? डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “परिवार 10 दिनों में बाहर जाने के लिए तैयार है. देरी उनकी दो बेटियों की चिकित्सा आवश्यकताओं के कारण हुई, जो नेमालाइन मायोपैथी नामक एक दुर्लभ मांसपेशी विकार से पीड़ित हैं.” जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि उनका मौजूदा घर उनकी बेटियों की जरूरतों के हिसाब से बना है. इसलिए उनके लिए घर बदलना खास तौर पर मुश्किल है. उन्होंने कहा कि मुख्य रूप से यही वजह है कि रिटायरमेंट के सात महीने बाद भी सरकारी आवास खाली करने में देरी हो रही है. फिलहाल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और उनकी पत्नी कल्पना दास के लिए दोनों बेटियों प्रियंका और माही की देखभाल सबसे ऊपर है.

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बेटियों को खास देखभाल की जरूरत
जस्टिस चंद्रचूड़ ने बताया कि उनकी दो बेटियां – प्रियंका और माही – नेमालाइन मायोपैथी नामक एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी से पीड़ित हैं. जिसके कारण वे व्हीलचेयर पर हैं और उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत पड़ती हैं. उन्होंने कहा, “हमारी असली चुनौती इनकी विशेष जरूरतें हैं. उन्हें रैंप की जरूरत है. यहां तक कि बाथरूम में जाने के लिए भी हमें उनकी व्हीलचेयर के लिए पर्याप्त चौड़े दरवाजे की जरूरत है. लड़कियां 16 और 14 साल की हैं. वे सब कुछ खुद करना चाहती हैं. हमें उस समय दिल्ली में कोई जगह ढूंढ़ना बेहद मुश्किल लगा था. आधुनिक फ्लैट में दो या ढाई फीट चौड़े दरवाजे होते हैं. जो व्हीलचेयर के साथ प्रवेश करने के लिए पर्याप्त चौड़े नहीं होते. बच्चे हमारे जीवन का सबसे खूबसूरत हिस्सा हैं… मुझे आश्चर्य है कि लोग इन चीजों के बारे में नहीं सोचते?” 

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नेमालाइन मायोपैथी क्या है?
रॉड मायोपैथी के नाम से भी जानी जाने वाली नेमालाइन मायोपैथी (एनएम) एक दुर्लभ मांसपेशी विकार है जिसमें व्यक्ति को पूरे शरीर में मांसपेशियों की कमजोरी का अनुभव होता है. खासकर चेहरे, गर्दन, धड़ और उसके नजदीक मांसपेशियों में. मांसपेशियों की कमजोरी समय के साथ खराब हो सकती है. जिससे भोजन और निगलने जैसी दैनिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं, जिससे स्थिति और भी जटिल हो जाती है. जैसे-जैसे स्थिति खराब होती है, पीड़ित व्यक्ति को व्हीलचेयर की सहायता की आवश्यकता होती है. जस्टिस चंद्रचूड़ और उनकी पत्नी कल्पना दास ने प्रियंका और माही को गोद लिया है.

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पिछले साल की थी खुलकर बात
अक्टूबर 2024 में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी बेटियों की स्थिति के बारे में खुलकर बात की थी. उन्होंने यह भी बताया था कि इस विकार से निपटने में उन्हें और उनकी पत्नी को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा. ‘विकलांगता के साथ जी रहे बच्चों के अधिकारों की रक्षा’ पर 9वें वार्षिक राष्ट्रीय सेमिनार में उन्होंने कहा था, “हमारे बच्चे नेमालाइन मायोपैथी नामक स्थिति के साथ पैदा हुए हैं. डॉक्टरों, देखभाल करने वालों और निश्चित रूप से, माता-पिता के बीच मायोपैथी के बारे में जानकारी का अभाव है. हर कोई आत्म-त्याग की भावना के साथ जीता है. जिन परिवारों में बच्चे पैदा होते हैं, उन्हें लगता है कि उनके साथ कुछ भी गलत नहीं है. भारत के प्रमुख संस्थानों में भी टेस्ट की कोई सुविधा नहीं थी.”

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क्या है मौजूदा विवाद?
विवाद जस्टिस चंद्रचूड़ के रिटायरमेंट के सात महीने बाद भी अपने आधिकारिक आवास (5, कृष्ण मेनन मार्ग) पर तय सीमा से ज्यादा समय तक रहने को लेकर है. सुप्रीम कोर्ट जज (संशोधन) नियम, 2022 के नियम 3बी के तहत रिटायर्ड सीजेआई रिटायरमेंट के बाद अधिकतम छह महीने तक टाइप VII बंगला (इस आवास से एक स्तर नीचे) अपने पास रख सकते हैं. अपने रिटायरमेंट के बाद उन्होंने तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना से बात की थी, जो उनके उत्तराधिकारी बने थे. जस्टिस चंद्रचूड़  ने उन्हें बताया था कि उन्हें 14, तुगलक रोड बंगले में वापस जाना है, जहां वे पहले रहते थे. हालांकि जस्टिस खन्ना ने उन्हें सीजेआई बंगले में ही रहने के लिए कहा क्योंकि वे आधिकारिक आवास नहीं चाहते थे.

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सुप्रीम कोर्ट के पत्र से बखेड़ा
1 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने केंद्र को पत्र लिखकर कहा कि जस्टिस चंद्रचूड़ सीजेआई के बंगले में तय समय से ज्यादा समय तक रहे हैं और उन्होंने बंगले को खाली करने की मांग की. सूत्रों के मुताबिक आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि मौजूदा सीजेआई के लिए नामित आवास को कोर्ट के आवास पूल में वापस कर दिया जाना चाहिए. पत्र में आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय के सचिव से बिना किसी देरी के पूर्व सीजेआई से बंगले का कब्जा लेने का अनुरोध किया गया है. क्योंकि न केवल आवास को अपने पास रखने के लिए उन्हें दी गई अनुमति 31 मई को समाप्त हो गई, बल्कि 2022 नियमों के तहत आगे रहने की निर्धारित छह महीने की अवधि भी 10 मई को समाप्त हो गई.

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