सीपी राधाकृष्‍णन को पीएम मोदी ने क्‍यों चुना? बायोडाटा में क्‍या-क्‍या देखा

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Last Updated:August 17, 2025, 20:43 IST

बीजेपी ने उपराष्‍ट्रपत‍ि पद के उम्‍मीदवार के ल‍िए सीपी राधाकृष्‍णन को चुना है. आरएसएस के खांटी नेता रहे, राधाकृष्‍णन का तमिलनाडु से कनेक्‍शन है. वे ओबीसी पर‍िवार से आते हैं और दक्ष‍िण की राजनीत‍ि में बीजेपी के ...और पढ़ें

सीपी राधाकृष्‍णन को पीएम मोदी ने क्‍यों चुना? बायोडाटा में क्‍या-क्‍या देखाप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सीपी राधा कृष्‍णन. (फाइल फोटो_PTI)

एनडीए ने उपराष्‍ट्रपत‍ि के ल‍िए महाराष्‍ट्र के राज्‍यपाल सीपी राधाकृष्‍णन को कैंड‍िडेट के तौर पर चुन ल‍िया है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके नाम पर मुहर लगाई है. सीपी राधाकृष्‍णन महाराष्‍ट्र के राज्‍यपाल हैं. कई राज्‍यों में उन्‍होंने काम क‍िया है. खांटी स्‍वयंसेवक माने जाते हैं. सिर्फ 15 साल की उम्र से वे आरएसएस से जुड़े हुए हैं. अच्‍छे ख‍िलाड़ी रहे हैं. उनका तमिलनाडु से खास कनेक्‍शन भी है, जहां अगले कुछ महीनों बाद चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है क‍ि पीएम मोदी ने उनके बायोडाटा में क्‍या-क्‍या देखा? क्‍यों उनके ही नाम पर मुहर लगाई?

विपक्ष और जनता दोनों यही जानना चाहते हैं कि उनके बायोडाटा में ऐसा क्या खास था, जिसने उन्हें देश के दूसरा सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बीजेपी ने बिठाने का फैसला कर ल‍िया. असल में यह फैसला महज एक राजनीतिक नियुक्ति नहीं, बल्कि 2026 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव और उससे आगे की दक्षिणी भारत की राजनीति को साधने की मोदी-शाह रणनीति का अहम हिस्सा है. साथ में आरएसएस को यह संदेश देने की कोश‍िश भी है, बीजेपी उनसे कहीं अलग नहीं है.

कौन हैं सीपी राधाकृष्णन?
सीपी राधाकृष्णन, मौजूदा समय में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं. इससे पहले वे लंबे समय तक भाजपा संगठन में सक्रिय रहे और दो बार लोकसभा सांसद भी चुने गए. मूल रूप से तमिलनाडु के त‍िरुपुर से आते हैं. जातीय पृष्ठभूमि की बात करें तो वे ओबीसी समुदाय से हैं, जो तमिलनाडु में अल्पसंख्यक है लेकिन भाजपा का पारंपरिक समर्थन आधार रहा है. संगठनात्मक स्तर पर वे आरएसएस के खांटी स्वयंसेवक माने जाते हैं, यानी विचारधारा से पूरी तरह जुड़े और लंबे समय तक जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेता के रूप में उनकी पहचान रही है.

तमिलनाडु से कनेक्शन क्यों अहम है?
तमिलनाडु दक्षिण भारत की सबसे जटिल राजनीतिक जमीन है. यहां दशकों से द्रविड़ दलों डीएमके और एआईएडीएमके का दबदबा रहा है. भाजपा को अभी तक यहां निर्णायक सफलता नहीं मिली, जबकि केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की तुलना में यहां का सांस्कृतिक-राजनीतिक समीकरण उसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण रहा है. पीएम मोदी और अमित शाह जानते हैं कि अगर तमिलनाडु में जरा भी पैठ बनानी है तो इसके लिए स्थानीय चेहरा और जातीय-सामाजिक बैलेंस बेहद जरूरी है.

सीपी राधाकृष्णन ही क्‍यों?

सीपी राधाकृष्णन हर मामले में फिट बैठते हैं. वे तमिलनाडु के नेता हैं. भाजपा और आरएसएस की विचारधारा से जुड़े हुए हैं. राज्य के शहरी और उच्च जातीय वर्ग में उनकी स्वीकार्यता है. उपराष्ट्रपति जैसे बड़े पद पर बैठाने से भाजपा तमिल समाज को संदेश देना चाहती है कि दिल्ली की सत्ता में उनका भी हिस्सा है.

महाराष्ट्र से तमिलनाडु तक का राजनीतिक सेतु

दिलचस्प बात यह है कि राधाकृष्णन फिलहाल महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं. महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बीच सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध लंबे समय से रहे हैं. मुंबई और पुणे में बड़ी संख्या में तमिल समुदाय के लोग बसे हैं. तमिलनाडु की फिल्म इंडस्ट्री और महाराष्ट्र की मराठी-संस्कृति के बीच भी दशकों पुराना मेलजोल है. भाजपा यहां से एक नेशनल कनेक्ट बनाकर दिखाना चाहती है कि दक्षिण का नेता भी पश्चिमी भारत में शासन संभाल सकता है और अब दिल्ली में नंबर दो पद पर आसीन है.

जातीय समीकरण और चुनावी रणनीति

तमिलनाडु की राजनीति में जाति का वजन बहुत अहम है. यहां ओबीसी और द्रविड़ जातियां राजनीति पर हावी हैं. ब्राह्मण समाज की हिस्सेदारी कम है, लेकिन भाजपा को लगता है कि यही उसका नैचुरल कैडर बेस है, क्योंकि द्रविड़ दलों की एंटी-ब्राह्मण राजनीति ने इस वर्ग को हाशिए पर धकेला. राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति बनाने से भाजपा ब्राह्मण वोटरों के साथ-साथ उस शहरी, पढ़े-लिखे मध्यम वर्ग तक पहुंच बनाना चाहती है, जो अभी भी डीएमके या एआईएडीएमके की राजनीति से दूरी रखता है.

तमिलनाडु से उपराष्ट्रपति बनने वाले पहले नेता?
अगर इतिहास देखें तो तमिलनाडु के नेताओं को केंद्र की राजनीति में अहम पद मिले हैं. आर. वेंकटरमण राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे. कई नेता मंत्री और स्पीकर रहे. लेकिन उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचने वाले तमिलनाडु के नेता पहली बार दिख रहे हैं. यह कदम प्रतीकात्मक तौर पर बहुत बड़ा है, क्योंकि भाजपा यह मैसेज देना चाहती है कि तमिल पहचान और राष्ट्रीय पहचान साथ-साथ चल सकती है.

आरएसएस का खांटी स्वयंसेवक

सीपी राधाकृष्णन का सबसे बड़ा गुण यही है कि वे आरएसएस की पॉलिटिक्स और संस्कारों से पूरी तरह प्रशिक्षित नेता हैं. मोदी-शाह की जोड़ी ने हमेशा ऐसे नेताओं पर भरोसा किया है जो विचारधारा और अनुशासन में बिना डगमगाए खरे उतरें. उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर किसी बाहरी या समझौता वाले चेहरे को लाने की बजाय, एक ऐसे नेता को आगे करना जिसने दशकों तक संगठन को समर्पित किया, यह भाजपा की “काडर-टू-कॉन्स्टिट्यूशनल” रणनीति को भी दर्शाता है.

दक्षिण भारत में भाजपा की नई चाल
भाजपा पिछले एक दशक से लगातार दक्षिण भारत में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. कर्नाटक में उसे सफलता मिली है. तेलंगाना में भी ग्रोथ दिखी है. लेकिन तमिलनाडु अब तक किले की तरह अडिग रहा है. सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति बनाकर भाजपा ने साफ संकेत दिया है कि वह तमिलनाडु को लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट जोन मान रही है. उसे पता है कि एक-दो चुनाव में परिणाम नहीं आएंगे. लेकिन अगर तमिल समाज को यह भरोसा हो जाए कि भाजपा उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दे रही है, तो धीरे-धीरे राजनीतिक जमीन बदल सकती है.

Gyanendra Mishra

Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें

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Location :

New Delhi,New Delhi,Delhi

First Published :

August 17, 2025, 20:36 IST

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