Last Updated:April 19, 2025, 20:29 IST
Supreme Court vs Parliament: सुप्रीम कोर्ट को लेकर सत्ता पक्ष की ओर से जिस तरह के बयान आ रहे हैं, यह साफ है कि टकराव का एक नया दौर शुरू हो चुका है.

सुप्रीम कोर्ट पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान से छिड़ी नई बहस. (File Photo)
नई दिल्ली: बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने शुक्रवार को एक ऐसा बयान दिया, जिसने सत्ता और न्यायपालिका के बीच टकराव की आंच और भड़का दी. उन्होंने सीधे सुप्रीम कोर्ट को निशाने पर लिया और कहा, ‘अगर कानून सुप्रीम कोर्ट को ही बनाना है, तो संसद भवन बंद कर देना चाहिए.’ दुबे यहीं नहीं रुके. उन्होंने चीफ जस्टिस संजीव खन्ना पर भी हमला बोला और कहा कि ‘देश में जो भी सिविल वॉर हो रहे हैं, उसके जिम्मेदार संजीव खन्ना हैं.’ इस बयान के तुरंत बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने दुबे की आलोचना शुरू कर दी. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि बीजेपी जानबूझकर संवैधानिक संस्थाओं पर हमला कर रही है. ‘सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करना, ईडी का गलत इस्तेमाल और धार्मिक ध्रुवीकरण – ये सब जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाने की साजिश है.’
इन दिनों सुप्रीम कोर्ट वक्फ एक्ट से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. दुबे का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट खुद को ‘सुपर पार्लियामेंट’ समझने लगा है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर हर काम के लिए कोर्ट ही फैसला करेगा, तो संसद और विधानसभाओं को ताले लगा देने चाहिए.
‘सुप्रीम कोर्ट कैसे नया कानून बना सकता है?’
बीजेपी सांसद ने सुप्रीम कोर्ट पर यह आरोप भी लगाया कि वह धार्मिक विवादों को बढ़ावा दे रहा है. आर्टिकल 377 का हवाला देते हुए दुबे बोले, ‘एक वक्त था जब समलैंगिकता अपराध मानी जाती थी. हर धर्म इसे गलत मानता है. लेकिन एक सुबह सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को खत्म कर दिया.’
उन्होंने कहा कि संविधान के आर्टिकल 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले देश की हर अदालत पर लागू होते हैं, लेकिन आर्टिकल 368 ये स्पष्ट करता है कि कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को है. दुबे ने सवाल उठाया, ‘तो फिर सुप्रीम कोर्ट कैसे नया कानून बना सकता है? कैसे राष्ट्रपति को समयसीमा में निर्णय लेने का निर्देश दे सकता है?’.
उपराष्ट्रपति के बयान बाद आया दुबे का बयान
इस विवाद की टाइमिंग भी अहम है. हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी पर ऐतराज जताया था जिसमें कोर्ट ने राष्ट्रपति से कहा था कि उन्हें बिल पर तीन महीने में निर्णय लेना चाहिए. धनखड़ ने कहा, ‘राष्ट्रपति को निर्देश देना? ये कैसी लोकतंत्र की कल्पना है?’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘अगर जज ही कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम करेंगे और संसद से ऊपर खुद को समझेंगे, तो ये लोकतंत्र नहीं, अराजकता होगी.’
दूसरी ओर, कांग्रेस ने दुबे के बयान को ‘मानहानिकारक’ बताया है. मणिकम टैगोर ने कहा, ‘दुबे का बयान सुप्रीम कोर्ट का अपमान है. वो हर संवैधानिक संस्था को कमजोर करते हैं. ये बयान संसद से बाहर दिया गया है, इसलिए कोर्ट को खुद इसका संज्ञान लेना चाहिए.’ कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा, ‘ये बयान दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के खिलाफ फैसला दिया हो. लेकिन सत्ता पक्ष की ये झुंझलाहट समझ से परे है.’
सवाल यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट कोई संवैधानिक टिप्पणी करता है, तो उसे चुनौती देना जनतंत्र का हिस्सा है या उसका अपमान? और क्या संसद व कार्यपालिका को कानून और संविधान के दायरे से ऊपर माना जा सकता है?
न्यायपालिका और विधायिका में टकराव
वक्फ एक्ट की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने भी माना कि वह इसकी कुछ धाराओं को लागू नहीं करेगी, जब तक कोर्ट अगली सुनवाई ना कर ले. यानी सरकार भी कोर्ट की बातों को गंभीरता से ले रही है. यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि भारत के लोकतंत्र में आज एक नया टकराव जन्म ले चुका है. बात सिर्फ एक संस्थान बनाम दूसरे की नहीं है. यह टकराव उस भरोसे पर चोट कर रहा है, जो जनता ने संविधान पर रखा है. अगर संसद और सुप्रीम कोर्ट आमने-सामने हो जाएं, तो लोकतंत्र की नींव हिलने लगती है.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
April 19, 2025, 20:29 IST