स्पेस में क्या अलग होते हैं महिला-पुरुष के टॉयलेट, 'पेशाब' पीते हैं एस्ट्रोनॉट

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Last Updated:July 05, 2025, 14:35 IST

Space station toilets: ये सवाल सबके दिमाग में आता है कि क्या अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए टॉयलेट की व्यवस्था होती है? क्या पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग टॉयलेट होते हैं? शरीर से निकलने वाले वेस्ट का...और पढ़ें

स्पेस में क्या अलग होते हैं महिला-पुरुष के टॉयलेट, 'पेशाब' पीते हैं एस्ट्रोनॉट

क्या हमने कभी सोचा है कि अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में टॉयलेट या शौचालय का उपयोग कैसे करते हैं.

हाइलाइट्स

अंतरिक्ष में जीरो-ग्रेविटी टॉयलेट का उपयोग होता हैपेशाब को रीसाइकल कर पीने योग्य पानी बनाया जाता हैमहिला-पुरुष दोनों के लिए समान टॉयलेट डिजाइन हैं

Space station toilets: भारत के शुभांशु शुक्ला और तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री लगभग 10 दिनों से इंटरेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) में हैं. एक्सियम-4 मिशन के तहत ये चारों अंतरिक्ष यात्री 14 दिनों तक आईएसएस में रहेंगे. अंतरिक्ष यात्रियों के जीवन को लेकर लोगों में हमेशा एक जिज्ञासा रहती है. यह कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में क्या-क्या सुविधाएं हैं, अंतरिक्ष यात्री वहां कैसे रहते हैं, कैसे खाते पीते और सोते हैं. क्या वहां टॉयलेट की सुविधा भी उपलब्ध है?

अंतरिक्ष यात्रियों के बारे में सब कुछ हमें रोमांचित करता है. क्या हमने कभी सोचा है कि अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में टॉयलेट या शौचालय का उपयोग कैसे करते हैं. सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण मानव अपशिष्ट का निपटान एक मुश्किल और अक्सर थकाऊ मामला बना देता है. गुरुत्वाकर्षण के बिना अपशिष्ट इधर-उधर तैर सकता है. यह अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य के लिए घिनौना और हानिकारक दोनों है. इसके अलावा यह अंतरिक्ष यान में संवेदनशील उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकता है. इस समस्या का एक लंबा इतिहास है, जिसे सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत की है.

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समय के साथ आए काफी बदलाव
अंतरिक्ष में महिला और पुरुष अंतरिक्ष यात्रियों के लिए टॉयलेट की व्यवस्था में समय के साथ काफी बदलाव आए हैं. अब इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर इस्तेमाल होने वाले टॉयलेट में जेंडर स्पेसिफिक डिजाइन की तुलना में गुरुत्वाकर्षण-मुक्त वातावरण में कार्यक्षमता पर अधिक ध्यान दिया जाता है. अंतरिक्ष में शुरुआती मिशनों में टॉयलेट की कोई खास व्यवस्था नहीं थी. अंतरिक्ष यात्रियों को अपने स्पेस सूट में ही पेशाब करनी पड़ती थी, या फिर पाउच का इस्तेमाल करना पड़ता था. शौच के लिए पीछे बैग बांधे जाते थे, जो काफी मुश्किल और असुविधाजनक था.

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महिलाओं के लिए खास जरूरतों पर ध्यान
1980 के दशक में जब नासा ने महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजना शुरू किया, तो विशेष व्यवस्थाओं की आवश्यकता महसूस हुई. शुरुआत में ‘मैक्सिमम एब्जॉर्बेंसी गार्मेंट’ (MAG) नामक एक डायपर जैसा उत्पाद बनाया गया जिसका उपयोग पुरुष भी करते थे. पहले कुछ टॉयलेट पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे, जिससे महिलाओं को उनके उपयोग में परेशानी होती थी. उन्हें साफ रखना भी मुश्किल होता था. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर अब ‘जीरो-ग्रेविटी टॉयलेट’ का उपयोग होता है, जो वैक्यूम सिस्टम पर आधारित हैं. ये टॉयलेट लिंग-भेद के बिना डिजाइन किए गए हैं. ताकि सभी अंतरिक्ष यात्री (महिला-पुरुष दोनों) आराम और प्रभावी ढंग से उनका उपयोग कर सकें.

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बैठ या खड़े होकर कर सकते हैं इस्तेमाल
नासा ने हाल ही में (2018-2020 के आसपास) नए, आसानी से इस्तेमाल किए जाने वाले टॉयलेट बनाए हैं, जिनमें महिलाओं के लिए फनल-सक्शन सिस्टम और बेहतर फिटिंग के लिए विशेष डिजाइन शामिल हैं. इन टॉयलेट का उपयोग अंतरिक्ष यात्री धरती पर इस्तेमाल किए जाने वाले शौचालय की तरह ही कर सकते हैं, जिसमें ढक्कन उठाकर सीट पर बैठना होता है. ये टॉयलेट ऐसे डिजाइन किए गए हैं कि एस्ट्रोनॉट बैठ भी सकते हैं और खड़े भी हो सकते हैं. अंतरिक्ष यात्री अपने शरीर को टॉयलेट सीट से बेल्ट से बांध देते हैं ताकि वे गुरुत्वाकर्षण-मुक्त वातावरण में इधर-उधर न तैरें. फिर, एक वैक्यूम क्लीनर जैसी मशीन कचरे को खींचकर एक कंटेनर में जमा करती है. मल को कंप्रेस करके डंप कर दिया जाता है. जब भी कोई यान वापस आता है तो कंप्रेस्ड मल के कंटेनर को बदल दिया जाता है. 

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पेशाब से बनाया जाता है पीने का पानी
पेशाब के लिए एक विशेष फनल लगा हुआ पाइप होता है. पुरुष और महिलाएं दोनों इसका इस्तेमाल करते हैं. इस सिस्टम में वैक्यूम का उपयोग किया जाता है जो पेशाब को खींचकर एक अलग टैंक में भेजता है. अंतरिक्ष में पानी की कमी के कारण जमा किए गए पेशाब को वाटर रीसाइक्लिंग यूनिट से साफ करके पीने योग्य पानी में बदल दिया जाता है. पसीने और सांस से निकलने वाली नमी को भी रीसाइकल किया जाता है. नासा की अंतरिक्ष यात्री जेसिका मीर बताती हैं, “हम अंतरिक्ष स्टेशन पर मूत्र और पसीने सहित सभी जल-आधारित तरल पदार्थों का लगभग 90 फीसदी रीसाइक्लिंग करते हैं. अंतरिक्ष स्टेशन पर हम जो करने की कोशिश करते हैं, वह हवा से पानी को पुनः प्राप्त करने के लिए पृथ्वी के प्राकृतिक जल चक्र के तत्वों की नकल करना है. जब ISS पर हमारे मूत्र की बात आती है तो आज की कॉफी कल की कॉफी है!”

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