अक्सर लोग कहते हैं कि हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है. मैं इस कहावत को थोड़ा बदलकर कहूँगा कि हर सफलता के पीछे ईश्वर हैं जो कह रहे हैं, “मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं.” जब आप ईश्वर के लिए प्रार्थना करते हैं, उनके लिए रोते हैं, तो ईश्वर स्वयं आपके भीतर प्रकट होते हैं.
प्रार्थना आपके जीवन को बेहतर बनाने का एक महत्वपूर्ण साधन है. जो आप कर सकते हैं, वह करें. जो नहीं कर सकते, उसके लिए प्रार्थना करें! जब आपको लगे कि बाधा बहुत बड़ी है, तो गहरी प्रार्थना चमत्कार ला सकती है. आप जो भी करें, यह जान लें कि अंतिम निर्णय ईश्वरीय शक्ति का है और आप अपनी प्रार्थनाओं के माध्यम से उस परम शक्ति की कृपा पा सकते हैं.
प्रार्थना करने के लिए आपको किसी विशेष योग्यता या क्षमता की आवश्यकता नहीं है. चाहे आप मूर्ख हों या बुद्धिमान, चाहे आप अमीर हों या गरीब, आप प्रार्थना कर सकते हैं. प्रार्थना का अर्थ केवल बैठकर कुछ शब्दों का जाप करना नहीं है. यह उस शांत, स्थिर ध्यान की अवस्था में होने के बारे में है. इसीलिए, वैदिक परंपरा में, प्रार्थना से पहले ध्यान करने का विधान है और प्रार्थना के बाद भी ध्यान किया जाता है. जब मन एकाग्र होता है, तो प्रार्थना कहीं अधिक शक्तिशाली हो जाती है.
प्रार्थना आत्मा की पुकार है. आप किससे प्रार्थना करते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है. जहाँ धर्म प्रार्थना को शब्द देता है, उसमें प्रतीक और अनुष्ठान जोड़ता है, वहीं प्रार्थना स्वयं इन सबसे परे होती है. यह भावनाओं के सूक्ष्म स्तर पर घटित होती है और भावनाएँ शब्दों और धर्म से परे होती हैं. प्रार्थना करने मात्र से परिवर्तन आरंभ हो जाता है.
जब आप प्रार्थना करते हैं, तो पूर्ण समर्पण होना चाहिए. यदि मन कहीं और व्यस्त है, तो वह प्रार्थना नहीं है. जब पीड़ा होती है, तो अधिक समर्पण होता है. इसलिए लोग पीड़ा में होने पर प्रार्थना की ओर मुड़ते हैं. प्रार्थना तब होती है जब आप कृतज्ञता महसूस करते हैं या जब आप पूरी तरह से असहाय महसूस करते हैं. दोनों ही स्थितियों में आपकी प्रार्थनाएँ सुनी जाती है. जब आप असहाय महसूस करते हैं, तो प्रार्थना अपने आप घटित होती है. इसलिए कहते हैं – ‘निर्बल के बल राम’.
यदि आप स्वयं को निर्बल महसूस कर रहे हैं, तो ईश्वर आपके साथ हैं. प्रार्थना वह क्षण है जब आपको अपनी सीमाओं का ज्ञान होता है. आज भाग-दौड़ भरी जिंदगी में, लोग अक्सर डर या लालच के कारण प्रार्थना करते हैं. आमतौर पर जब आप किसी चीज़ से प्यार करते हैं, तो आप उसे पाना चाहते हैं और उसके लिए प्रार्थना करते हैं. हालाँकि, सच्ची प्रार्थना, पाने की चाहत के ठीक विपरीत होती है. यह ईश्वर को सम्मान देने और सब कुछ अर्पित करने से जुड़ी है. सम्मान से भक्ति आती है और फिर यह भक्ति ही समर्पण की ओर ले जाती है.
भक्ति और विश्वास प्रार्थना का मूल है. भक्ति और विश्वास के बिना सच्ची प्रार्थना संभव नहीं है. विश्वास का अर्थ है कि ईश्वर की कृपा आपके साथ है. भक्ति एक आंतरिक पुष्प अर्पण है. भक्ति वहीं से शुरू होती है जहाँ आप हैं. जब तक आपके हृदय में ईश्वर की भक्ति का दीप प्रज्वलित नहीं होता, आपका जीवन अशांत रहेगा. भक्ति में आपके भीतर ईश्वर के लिए तड़प जागृत होगी. और जब तड़प होती है, तो सच्ची प्रार्थना अपने आप घटित होती है.
अपनी प्रार्थनाओं में सच्चे रहें. ईश्वर के साथ चालाकी करने की कोशिश न करें. प्रायः मन ईश्वर को पूरी तरह से भूल जाता है. आप ईश्वर को किस प्रकार का समय देते हैं? आमतौर पर आप बचा हुआ समय देते हैं; जब आपके पास करने के लिए कुछ नहीं होता, तो आप ईश्वर के पास जाते हैं. यह गुणवत्तापूर्ण समय नहीं है. ईश्वर को अपना सर्वश्रेष्ठ समय दें. आपको अवश्य ही फल मिलेगा. अगर आपकी प्रार्थनाएँ स्वीकार नहीं होतीं, तो इसका कारण यह है कि आपने कभी भी गुणवत्तापूर्ण समय नहीं दिया.
ईश्वर के पास चार प्रकार के लोग जाते हैं. आर्त वे हैं जो दुःखी हैं. दूसरे जिज्ञासु होते हैं. अर्थार्थी, वे जो भौतिक सुख (धन) की खोज करते हैं और ज्ञानी वे जो ज्ञान में हैं. ज्ञानी किसी चीज़ के लिए प्रार्थना नहीं करता. उसका जीवन ही एक प्रार्थना है. अगर आपको किसी चीज़ के लिए प्रार्थना करनी ही है, तो दुनिया के सभी लोगों की खुशी के लिए प्रार्थना करें. लोका: समस्ता: सुखिनो भवन्तु (सभी सुखी हों).
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।