अनुसूचित जाति में सब कैटगरी बनाकर लाभ से वंचित उपजातियों को वास्तविक लाभ पहुंचाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने वाला हरियाणा पहला राज्य बन गया है. ऐसा तब हुआ है, जब केंद्र की एनडीए सरकार ने विपक्ष और एनडीए की घटक एलजेपीआर के दबाव में इसे मानने से इनकार कर दिया है. एनडीए की दूसरे घटक बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने इस बाबत अभी कोई कदम नहीं उठाया है, लेकिन उन्होंने दलितों की दो श्रेणी बना कर पहले से लाभ का बंटवारा कर दिया है. एनडीए के एक और घटक हम (HAM) के संस्थापक दलित नेता जीतनराम मांझी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़े रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अपना ही फैसला पलट दिया
अपने ही फैसले को 18 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने पलट कर इस साल एक और ऐतिहासिक फैसला सुनाया. शीर्ष कोर्ट ने अनुसूचित जाति के लिए संवैधानिक प्रावधान के तहत मिलने वाले आरक्षण के लिए इस वर्ग की अन्य उपजातियों को सब कैटगरी बना कर निर्धारित आरक्षण कोटे में ही कोटा बनाने की छूट राज्यों को दे दी. यानी क्रीमी लेयर की पहचान कर आरक्षण का लाभ न उठा पाने वाली एससी वर्ग की उपजातियों को अधिकार देने का शीर्ष अदालत ने प्रावधान कर दिया. भाजपा विरोधी दलों ने इस पर खूब हड़बोंग मचाया. एनडीए की घटक लोक जनशक्ति पार्टी- आर के अध्यक्ष चिराग पासवान भी विरोध में इंडिया ब्लाक के नेताओं के सुर में सुर मिलाने लगे.
चिराग पासवान SC के फैसले के खिलाफ हैं
चिराग पासवान एनडीए में रह कर भी सरकार पर शीर्ष कोर्ट का फैसला न मानने का दबाव बना चुके हैं. एक बार तो स्थिति ऐसी हो गई कि भाजपा नेतृत्व को चिराग के प्रति सख्त रुख अपनाना पड़ा. उनके तीन सांसदों के टूटने की अफवाह भी इसी दौरान उड़ी. लोजपा के दो धड़े करने वाले चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस की भाजपा में अचानक पूछ बढ़ गई. भाजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पारस से मिलने उनके दफ्तर पहुंच गए. दिल्ली से गृहमंत्री अमित शाह का पारस को बुलावा आ गया. उसके बाद चिराग की भी पेशी जेपी नड्डा और अमित शाह के यहां हुई. इस तरह उन्हें काबू किया गया. वैसे केंद्र सरकार ने इसे संविधान के प्रावधान से अलग बता कर लागू करने से मना भी कर दिया.
विपक्ष की SC के बहाने सरकार की घेराबंदी
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को विपक्ष ने संविधान पर हमला और आरक्षण खत्म करने की भाजपा की कवायद बताया. इस फैसले पर जनवरी 2024 तक भाजपा विरोधी खेमे में रहने के बावजूद नीतीश कुमार खामोश रहे. इसलिए कि संवैधानिक दायरे में यह कोशिश बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने 2007 में ही महादलित मिशन और महादलित आयोग बना कर शुरू कर दी थी. सुविधाएं भी उन्होंने दलित-महादलित श्रेणी बना कर 2007 से महादलित श्रेणी में सूचीबद्ध जातियों को देनी शुरू कर दी थी. हालांकि उन्होंने आरक्षण का सब कोटा तय करने का काम अभी तक नहीं किया है. खैर, नीतीश का यह प्रयास सफल हुआ या विफल, इस पर अलग राय हो सकती है, लेकिन इसे एकबारगी खारिज नहीं किया जा सकता. हरियाणा सरकार द्वारा सब कोटा बना कर आरक्षण घटाने-बढ़ाने के फैसले से नीतीश कुमार का कंधा जरूर ऊंचा हो गया होगा. उन्हें भी लग रहा है कि उनकी दूरदृष्टि के आगे बाकी सब अभी तक बौने साबित हुए हैं.
RJD शीर्ष कोर्ट के फैसले का विरोधी रहा है
जाहिर सी बात है कि बिहार में आरजेडी के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लाक को पूर्व की भांति ही हरियाणा सरकार के फैसले पर एतराज ही होगा. झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में विपक्ष इसे मुद्दा बनाए तो आश्चर्य नहीं. विपक्ष हरियाणा सरकार के फैसले को आरक्षण खत्म करने की भाजपा की कवायद बता सकता है. आरक्षण और संविधान के नैरेटिव पर विपक्ष भाजपा को लोकसभा चुनाव में नुकसान पहुंचा चुका है. गैर भाजपा दलों को इन दो संवेदनशील मुद्दों पर 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कामयाबी पहली बार मिली तो इस साल लोकसभा चुनाव में भी विपक्ष ने भाजपा को इसी नैरेटिव से नुकसान पहुंचाया.
क्रीमी लेयर तय करना क्या BJP का एजेंडा!
केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार है. गठबंधन की सरकार होने के नाते केंद्र सरकार को अपने साथियों का भी ख्याल रखना पड़ता है. यही वजह रही कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने से इनकार कर दिया. पर, हरियाणा में भाजपा की ही सरकार ने फैसले पर अमल कर यह संकेत दे दिया है कि यह पार्टी के एजेंडे का हिस्सा है. अगर भाजपा का एजेंडा नहीं रहता तो पार्टी हरियाणा सरकार को रोक सकती थी. विपक्ष भी तो यही आरोप भाजपा पर लगाता रहा है. आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव और कांग्रेस लीडर राहुल गांधी लगातार कहते रहे हैं कि भाजपा संविधान को खत्म करना चाहती है. भाजपा आरक्षण विरोधी है.
2015 में आरक्षण की वजह से भाजपा हारी
वर्ष 2015 में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने हाथ मिला लिया था. कांग्रेस भी साथ आ गई थी. बिहार विधानसभा का चुनाव भाजपा बनाम गैर भाजपा दलों के बीच हुआ. चुनाव प्रचार के दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत बिहार आए तो आरक्षण की समीक्षा की बात कह दी. भागवत के बयान को लालू ने भाजपा का आरक्षण विरोधी मंसूबा बता दिया. इसे लालू ने ऐसा प्रचारित किया कि भाजपा की बिहार में हवा बिगड़ गई. उसी अनुभव को लालू ने इस साल लोकसभा चुनाव में भी आजमाया और भाजपा लगातार दो बार बहुमत से आगे रहने के बावजूद इस बार बहुमत से पीछे छूट गई.
हरियाणा के फैसले का होगा बिहार में असर
हरियाणा सरकार के पैसले का बिहार की राजनीति में असर पड़ना स्वाभाविक है. इसलिए कि आरजेडी और कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पहले ही दिन से विरोध कर रहे हैं. आरजेडी इसे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में हथियार के तौर पर इस्तेमाल करेगी. इस मुद्दे पर राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और चिराग पासवान के तेवर एक जैसे रहे हैं. इसलिए चिराग भी हरियाणा सरकार के फैसले की मुखालफत करें तो आश्चर्य नहीं. हालांकि इन दिनों चिराग के सुर बदले हुए हैं. वे नीतीश कुमार के कभी घोर विरोधी थे, लेकिन अब उनके कशीदे पढ़ते हैं.
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FIRST PUBLISHED :
October 21, 2024, 08:45 IST