रोते हुए आते हैं और हंसते हुए जाते हैं, मुंगेर चंडिका स्थान की अद्भुत मान्यता

2 days ago

Last Updated:September 27, 2025, 12:42 IST

Durga Puja Festival : बिहार का मुंगेर जिला केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए ही नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था का भी एक प्रमुख केंद्र है. यहां स्थित चंडिका स्थान शक्तिपीठ न केवल भारत के प्राचीनतम धार्मिक स्थलों में शुमार है, बल्कि आस्था और किंवदंतियों का अद्भुत संगम भी है. मान्यता है कि सती का बायां नेत्र यहां गिरा था और इसी वजह से यह शक्तिपीठ बावन पीठों में गिना जाता है. यहां आने वाले श्रद्धालु आंखों की बीमारियों से मुक्ति और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना लेकर माता के चरणों में नतमस्तक होते हैं.

रोते हुए आते हैं और हंसते हुए जाते हैं, मुंगेर चंडिका स्थान की अद्भुत मान्यतादेश के 52 शक्तिपीठों में से एक मुंगेर का चंडिका स्थान जहां गिरा था माता सती का बायां नेत्र.

मुंगेर. बिहार के मुंगेर जिला में अवस्थित चंडिका स्थान भारत के बावन शक्तिपीठों में एक माना जाता है. चंडिका स्थान न केवल धार्मिक मान्यता बल्कि अद्भुत किंवदंतियों का संगम है. सती की नेत्र पूजा से लेकर कर्ण और विक्रमादित्य की कथाओं तक यह स्थान भारत की सांस्कृतिक धरोहरों का जीवंत उदाहरण है. मंदिर की ज्योति और काजल की आस्था, भक्तों के विश्वास को और गहरा करती है. यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी समस्याओं का समाधान लेकर जाते हैं और माता के दरबार से खुश होकर लौटते हैं. यही कारण है कि चंडिका स्थान आज भी पूरे भारत में श्रद्धा का प्रतीक बना हुआ है.

शक्तिपीठ की ऐतिहासिक मान्यता

मान्यता है कि राजा दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर जब सती ने अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शिव उनके शरीर को लेकर विचरण कर रहे थे. उसी दौरान सती की बाईं आंख इस स्थान पर गिरी और यही जगह माता के शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गई. यहां गुफा में माता के बाएं नेत्र की पूजा होती है.

माता की ज्योति और काजल का चमत्कार

इस मंदिर में एक निरंतर जलती हुई ज्योति है, जिसके बारे में विश्वास किया जाता है कि उससे निकलने वाला काजल आंखों की बीमारियों को दूर करता है. श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा से इस काजल को अपनी आंखों में लगाते हैं। मंदिर के पुजारी भी इसे माता की कृपा का चमत्कार मानते हैं.

महाभारत काल से जुड़ी कथा

चंडिका स्थान को महाभारत काल से भी जोड़ा जाता है. कथा है कि अंगराज कर्ण माता की नियमित पूजा करते थे और उनसे सवा मन सोना प्राप्त कर दान देते थे. उनके इस रहस्य को जानने के लिए राजा विक्रमादित्य स्वयं वहां पहुंचे. किंवदंती कहती है कि कर्ण हर सुबह गंगा स्नान के बाद खौलते तेल के कड़ाह में कूदते थे और माता उन्हें पुनर्जीवित कर देती थीं. इसी कारण उन्हें प्रतिदिन सवा मन सोना मिलता था.

राजा विक्रमादित्य की तपस्या

राजा विक्रमादित्य ने भी इस रहस्य को जानकर वही अनुष्ठान किया और माता से अमृत कलश और सोने की थैली प्राप्त की. इसके बाद माता ने कड़ाह को उलट दिया, क्योंकि वे किसी और को पुनर्जीवित करने का वरदान नहीं दे सकती थीं. आज भी यह कड़ाह उलटा पड़ा हुआ है और यहीं माता की पूजा होती है.

भक्तों की आस्था का केंद्र

मंदिर में मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालु रोते हुए आते हैं और हंसते हुए लौटते हैं. यही वजह है कि यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. हाल ही में गंगा का पानी जैसे ही मंदिर परिसर में पहुंचा, वैसे ही यहां आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा.

Vijay jha

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें

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First Published :

September 27, 2025, 12:42 IST

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