16 साल की 'राजनीतिक परिक्रमा'...यादों में घूम गई मोदी-नीतीश की दो दौर की कहानी

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पटना. सियासत की कुछ खास यादगार तस्वीरों में मई 2009 की वो तस्वीर बेहद महत्वपूर्ण बन पड़ी है जिसने देश की राजनीतिक दिशा पर गहरा प्रभाव डाला था. एनडीए की लुधियाना रैली में मंच पर नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार का हाथ जीत के अंदाज में विक्ट्री साइन के रूप में ऊपर उठना ऐसा ही एक पल था जो दिखने में साधारण था पर असर में असाधारण साबित हुआ. लेकिन, अब 2025 की तस्वीर भी आ गई है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ठीक 16 साल पहले वाले अंदाज में ही एकसाथ मुस्कुरा रहे हैं. इस बार भी नीतीश कुमार दिल से पीएम मोदी से मिले और अंदाज वही डेढ़ दशक पुराना वाला ही था. दोनों नेताओं के ड्रेस भी लगभग 16 साल पुराने जैसे और दोनों नेताओं के अंदाज भी लगभग एक जैसा पर दोनों के वक्त अलग और मायने भी अब अलग-अलग.

2009 की उस तस्वीर ने जो गुल खिलाया…

वर्ष 2009 में मई महीने की अकाली दल की लुधियाना की उस रैली का उद्देश्य था एनडीए की एकजुटता दिखाना. उसी मंच पर नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार का हाथ उठाया और तस्वीर अखबारों में छपी. तब चर्चा तो हुई पर बात आई गई हो गई. उस दौर में नीतीश कुमार बिहार के सीएम थे तो नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. दोनों ही विकासवादी चेहरे प्रतीक कहे जाते थे सो दोनों की जोड़ी को एनडीए की मजबूती से जोड़ा गया था. लेकिन, 2009 के बाद 2010 भी आ गया और राजनीति में अलग दिशा की पृष्ठभूमि तैयार होने लगी.

गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह तस्वीर 2009 की एनडीए की लुधियाना रैली की है. यह तस्वीर 2010 में बिहार के अखबारों में प्रकाशित हुई और इसके बाद नीतीश कुमार का भाजपा से सियासी अलगाव का दौर शुरू हो गया.

‘मोदी–नीतीश साथ’ की राजनीति के साइड इफेक्ट

एनडीए में भाजपा थी, लेकिन बिहार की सत्ता में सहयोगी जेडीयू तब तक भाजपा के साथ वाली पार्टी से अपनी अलग पहचान के साथ खुद को स्थापित करने की होड़ में आ चुकी थी. इसी दौरान 2010 में पटना में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक आयोजित की गई. इसी दौरान एनडीए की एकता को प्रदर्शित करने के लिए पीएम मोदी और नीतीश का एक दूसरे का हाथ थामने वाली लुधियाना रैली वाली तस्वीर बिहार के अखबारों में फ्रंट पेज पर छापी गई. बस फिर क्या था नीतीश कुमार की नाराज़गी फूट पड़ी और एनडीए नेताओं के लिए दिया जाने वाला भोज तक रद्द हो गया. यह वही दौर था जब भाजपा-जदयू के रिश्तों में दूरी बढ़ी और अंततः 2013 तक जेडीयू–बीजेपी गठबंधन टूट गया.

नीतीश के मन की हलचल और आगे बढ़ गई कहानी

राजनीति के जानकारों के अनुसार, यह तस्वीर नीतीश कुमार के मन में उठी पहली हलचल की एक प्रतीक थी जिसने आने वाले वर्षों में राजनीति के पूरे समीकरण बदल दिए. वर्ष 2013 में नीतीश कुमार ने NDA से अलग होकर नई राजनीतिक यात्रा शुरू की. जानकार कहते हैं कि इसके पीछे एक बड़ा कारण नीतीश कुमार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी रही जो वह स्वयं के लिए राष्ट्रीय फलक पर सोच रहे थे. वर्ष 2013 में ही 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी प्रचार की कमान सौंप दी गई. यह भाजपा की गोवा बैठक में हुआ जब गुजरात के सीएम राष्ट्रीय स्तर पर सीधे बीजेपी का फेस घोषित कर दिए गए. इसके बाद तो जो हुआ वो इतिहास बन गया.

तस्वीरों ने तय किया बिहार की राजनीति का ‘नया रास्ता’

भारतीय जनता पार्टी ने 282 सीटों के साथ केंद्र की सत्ता में अकेले दम पर पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लिया और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए. इस बीच नीतीश कुमार की अगुवाई वाला जदयू लोकसभा चुनाव में बुरी तरह धराशायी हो गया और महज 2 सीट ही जीत सका. नीतीश कुमार थोड़ा नरम तो पड़े, लेकिन उनकी राजनीति की दिशा एनडीए के विपरीत ही रही. 2015 के बिहार चुनाव में लालू यादव के साथ गठबंधन का फैसला उन दोनों के लिए जितना फायदेमंद रहा और नीतीश कुमार बिहार के सीएम बन गए. मगर नीतीश कुमार का राजद के साथ जाना चुनौतीपूर्ण रहा क्योंकि दोनों दलों के बीज संबंधों में सहजता का अभाव दिखा.

20 नवंबर 2025 की पटना गांधी मैदान की तस्वीर है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार की तस्वीर ठीक उसी अंदाज में सामने आई जो 2009 में आई थी. वर्तमान तस्वीर बदलते दौर की राजनीति के रिश्तों की कहानी बताती है.

मोदी–नीतीश की जोड़ी की वापसी का राजनीतिक गणित

किसी तरह डेढ़ साल का वक्त कटा, लेकिन वर्ष 2017 में अचानक नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़कर वापस NDA में वापसी कर ली. यह वह मोड़ था जिसने साफ संकेत दिया कि नीतीश कुमार राजनीति व्यावहारिकता की कसौटी पर चलती है और वह परिस्थितियों और संभावनाओं के अनुसार बदल भी सकती है. इस बीच वर्ष 2020 का चुनाव भाजपा के साथ एनडीए के तहत लड़े और जीते भी. नीतीश कुमार फिर सीएम बने, लेकिन आरजेडी-जेडीयू के बीच कुछ असहजता के कारण वर्ष 2022 में वे फिर से महागठबंधन में शामिल हो गए. परन्तु इस बार यह प्रयोग 17 महीने भी नहीं चल पाया और वह फिर एनडीए में लौट आए.

पलट गई राजनीति, फिर एकसाथ खड़े हैं मोदी और नीतीश

इसके बाद 2024 का लोकसभा चुनाव पीएम मोदी के चेहरे के साथ बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई में लड़े और एनडीए 40 में 30 सीटें जीतने में सफल रहा. अब यह संबंध मजबूती के साथ बढ़ रहा है और पीएम मोदी-सीएम नीतीश की जोड़ी के कारण बिहार में एनडीए ने 243 में 202 सीटें जीत कर प्रचंड जीत प्राप्त की. अब जब बिहार में नीतीश कुमार के 10वीं बार शपथ ग्रहण करने के दौरान 2009 के लुधियाना अंदाज वाली तस्वीर का रीप्ले सामने आया तो ये तस्वीरें सिर्फ राजनीतिक सौहार्द की नहीं, बल्कि एक लंबी राजनीतिक परिक्रमा की कहानी कहती हुई लगी.

बीजेपी-जेडीयू गठबंधन का दूसरा जन्म और पुरानी दूरी का अंत

बिहार चुनाव 2025 में एनडीए की जीत के बाद जो तस्वीर सामने आई उसमें भी मोदी और नीतीश एक-दूसरे का हाथ ऊपर उठाए. नीतीश कुमार की लंबी राजनीतिक यात्रा का निष्कर्ष यही है कि वह एक व्यवहारवादी नेता हैं. सिद्धांतों से अधिक सहजता और स्थिरता उन्हें प्रेरित करती है और बीजेपी के साथ और इनके राजनीतिक रिश्ते बिल्कुल ही स्वाभाविक हो जाते हैं. दूसरी ओर भाजपा बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के अनुभव और जातीय-सामाजिक समीकरणों को संजोए रखना चाहती है. स्पष्ट है किसीएम नीतीश की पीएम मोदी के साथ की तस्वीरें ‘हम साथ-साथ’ का साफ-साफ संदेश दे रही है.

नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की 2009 और 2025 की तस्वीरें राजनीति में गठबंधन, बदलाव और स्थायित्व की कहानी बयां करती हैं. पीएम मोदी और सीएम नीतीश के रिश्ते अब उतने ही मधुर हैं जितने 2010 के पहले जैसे कहे जा रहे हैं जब नीतीश कुमार गुजरात के सीएम मोदी की तारीफ करते थे.

दो तस्वीरें, दो संदेश पर नीतीश कुमार की प्रासंगिकता बनी रही

वर्ष 2009 की तस्वीर में मोदी-नीतीश के बीच की नजदीकी के बाद दूरी के चर्चे तो खूब हुए. इसको लेकर लोगों के बीच भी काफी बहस हुई, पर राजनीतिक तौर पर अलगाव के बावजूद दिलों में दूरी नहीं रही. वर्ष 2025 की तस्वीर में दोनों के बीच की स्वाभाविक निकटता को राजनीतिक परिस्थितियों ने और मजबूती दी है. इन दो तस्वीरों के बीच कई चीजें बदल गईं-देश की राजनीति, बिहार की सामाजिक-राजनीतिक संरचना, पार्टियों की ताकत, गठबंधन की मजबूरी, सत्ता का संतुलन, लेकिन एक बात जो नहीं बदली वह यह कि- बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की प्रासंगिकता बनी रही.

राजनीति की अपनी धारा, नदियों की तरह बहती रहती है…

नीतीश कुमार अब भी बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं. पीएम नरेंद्र मोदी अब देश की राजनीति के केंद्र में हैं . इन दोनों की जोड़ी चाहे कितनी भी उतार-चढ़ाव से गुजरे, सत्ता के गणित में आज सबसे महत्वपूर्ण साझेदार बन चुकी है. वर्ष 2009 की वह तस्वीर सीएम नीतीश की नाराजगी की वजह बनी तो वर्ष 2025 की यह तस्वीर नीतीश और मोदी की जोड़ी के नए सियासी अध्याय का बड़ा संकेत बनी. दोनों ही तस्वीरें एक बात साफ कहती हैं कि-राजनीति में कभी नहीं जैसा कोई शब्द नहीं होता और मोदी-नीतीश की ये तस्वीरें आने वाली पीढ़ियों के लिए राजनीतिक स्थायित्व और उतार-चढ़ाव का एक प्रामाणिक पाठ है.

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