2030 तक बदल जाएगी इंजीनियरिंग की दुनिया, नौकरी चाहिए तो सीख लें ये स्किल्स

1 month ago

Last Updated:September 15, 2025, 12:12 IST

Engineer's Day: भारत रत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जयंती के अवसर पर भारत में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे मनाया जाता है. पिछले कुछ सालों में इंजीनियरिंग की दुनिया में कई बदलाव आए हैं. 2030 तक इंजीनियरिंग सेक्टर और भी ज्यादा बदल जाएगा.

2030 तक बदल जाएगी इंजीनियरिंग की दुनिया, नौकरी चाहिए तो सीख लें ये स्किल्सEngineer's Day: इंजीनियर बनने के लिए कुछ खास स्किल्स पर फोकस करना जरूरी है

नई दिल्ली (Engineer’s Day). साल 2030 तक इंजीनियरिंग की दुनिया पूरी तरह बदल चुकी होगी. जहां आज इंजीनियर का ज्यादातर काम कोडिंग या तकनीकी हल निकालने तक सीमित है, वहीं आने वाले समय में इंजीनियर को सिर्फ ‘कोडर’ नहीं, बल्कि इनोवेटर, डिसरप्टर और लीडर के रूप में देखा जाएगा. टेक्नोलॉजी बहुत तेजी से बदल रही है – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, रोबोटिक्स, ग्रीन टेक्नोलॉजी और स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्र नई नौकरियों और नई स्किल्स की डिमांड करेंगे.

भविष्य में इंजीनियरिंग जॉब केवल डेस्क तक सीमित नहीं होंगी. इंजीनियर्स को समाज, पर्यावरण और उद्योग के बड़े मुद्दों पर काम करना होगा. उन्हें समझना होगा कि टेक्नोलॉजी सिर्फ मशीन के लिए नहीं, बल्कि इंसानों और धरती के लिए भी काम करनी चाहिए. इसीलिए अब सस्टेनेबिलिटी, सर्कुलर इकॉनमी और ग्रीन इंजीनियरिंग जैसे कॉन्सेप्ट शिक्षा और ट्रेनिंग का हिस्सा बनने लगे हैं. आने वाले समय में समस्या हल करने के साथ ही क्रिटिकल थिंकिंग, टीम वर्क और लीडरशिप जैसी सॉफ्ट स्किल्स में भी एक्सपर्ट ही आगे बढ़ सकेंगे.

इंजीनियरिंग सिलेबस में बदलाव की जरूरत

हर साल लाखों 12वीं पास स्टूडेंट्स इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बीटेक कोर्स में एडमिशन लेते हैं. थ्योरी के साथ ही प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पर भी फोकस करने वाले स्टूडेंट्स को भविष्य में टॉप कंपनी में अच्छे पैकेज वाली नौकरी मिल सकती है. इंजीनियर्स डे के अवसर पर हमने कई एक्सपर्ट से बात करके इंजीनियरिंग का बदलता स्वरूप समझने की कोशिश की है. आप भी जानिए, 2030 में इंजीनियर बनने के लिए क्या करना होगा.

कोडिंग तक सीमित नहीं रहेंगी इंजीनियरिंग स्किल्स

आने वाले कुछ सालों में वर्कप्लेस पर नई स्किल्स की डिमांड बढ़ेगी. टेक्नोलॉजी हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी. लेकिन इंजीनियर्स को केवल डेस्क पर बैठकर कोडिंग करने वाली भूमिकाओं से आगे बढ़ना होगा. उन्हें इनोवेटर, डिसरप्टर और लीडर्स की भूमिका निभानी होगी. शूलिनी यूनिवर्सिटी की ट्रस्टी और डायरेक्टर निष्ठा शुक्ला आनंद ने इन 3 स्किल्स को जरूरी माना है:

एआई और मशीन लर्निंग (AI & ML)- इंजीनियर्स को एआई को सिर्फ थ्योरी के तौर पर समझने के बजाय उसे प्रैक्टिकली भी लागू करना आना चाहिए. आने वाले समय में एआई और एमएल से जुड़ी स्किल्स डिमांड में रहेंगी. एंप्लॉयर्स इन क्षेत्रों में इनोवेशन ढूंढेंगे. जो इंजीनियर अलग-अलग इंडस्ट्रीज में एआई और एमएल स्किल्स का इस्तेमाल कर पाएंगे, उन्हें बेहतर कमाई के अवसर मिलेंगे. सस्टेनेबिलिटी और ग्रीन इंजीनियरिंग- अगले कुछ सालों में ग्रीन इंजीनियरिंग का महत्व बहुत बढ़ जाएगा. इंजीनियरिंग सॉल्यूशंस सस्टेनेबल टेक्नीक्स पर आधारित होंगे, जिनसे एनर्जी की खपत कम हो और ह्यूमन वेलनेस को प्राथमिकता मिले. इंजीनियर्स को स्टेबिलिटी के मानकों पर खरा उतरने वाला सिस्टम डिजाइन करना होगा. उन्हें सर्कुलर इकॉनमी की गहरी समझ भी रखनी होगी. क्रिटिकल थिंकिंग (Critical Thinking)- जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी और उसके इस्तेमाल के मामले बढ़ते जाएंगे, वैसे-वैसे इंजीनियर्स को अपनी प्रॉब्लम सॉल्विंग क्षमता, कम्युनिकेशन और निर्णय लेने की योग्यता को मजबूत करना होगा. आलोचनात्मक सोच यानी क्रिटिकल थिंकिंग से जटिल समस्याओं को एनालाइज करने, सही निर्णय लेने और उन्हें प्रभावी ढंग से व्यक्त करने में मदद मिलेगी.

इन स्किल सेट के लिए रहें तैयार

एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रसाद पूर्णाये ने भविष्य के इंजीनियर्स के लिए स्किल सेट का खाका तैयार किया है. अगर आप 2030 तक इस क्षेत्र में नौकरी करना चाहते हैं, खुद की कंपनी बना रहे हैं या कैसे भी इंजीनियरिंग से जुड़े हुए हैं तो कुछ स्किल सेट्स पर काम करना होगा. इनके बिना जॉब कर पाना मुश्किल हो जाएगा.

आर्टिक्युलेटिंग स्किल्स- जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल सही से किया जाए तो यह बहुत पावरफुल टूल है. अच्छा रिजल्ट पाने के लिए प्रॉम्प्ट्स को स्पष्ट, विस्तृत और अच्छी तरह से समझाए हुए रूप में तैयार करना आना चाहिए. ज्यादातर एआई इंजन फिलहाल अंग्रेजी में काम करते हैं. जिन स्टूडेंट्स को अंग्रेजी में दिक्कत होती है, वे अपनी पूरी क्षमता का लाभ नहीं उठा पाएंगे. डोमेन एक्सपर्टीज- जॉब मार्केट में टिकने के लिए अब सिर्फ कोडिंग करना काफी नहीं होगा. किसी खास क्षेत्र में गहरी विशेषज्ञता होना ही इंजीनियर को अलग बनाएगा- चाहे वह फाइनेंस हो, हेल्थकेयर, एजुकेशन, ऑटोमोबाइल, सिविल इंफ्रास्ट्रक्चर या ऑयल एंड गैस. जेनरेटिव एआई से इस डोमेन नॉलेज का महत्व बढ़ जाएगा. रिसर्च स्किल्स- रिसर्च केवल लैब में बैठे इंटेलेक्चुअल्स का काम नहीं है. यह जिज्ञासा, ओवरव्यू और उपलब्ध तथ्यों से जानकारी जुटाने की क्षमता है. इंजीनियर्स को प्रभाव को मापना, मार्केट साइज का एनालिसिस करना और अवसरों का आकलन करना आना चाहिए. सही सवाल पूछने और भरोसेमंद जवाब ढूंढने की क्षमता उनके करियर को नई दिशा दे सकती है. डिजाइन थिंकिंग- इंजीनियरिंग से जटिल समस्याओं को हल करने में मदद मिलती है. डिजाइन थिंकिंग में समाधान केवल टेक्नोलॉजी पर आधारित नहीं होते हैं. ये यूजर-फोकस्ड होते हैं. Iterative (दोहराव वाला), एक्सपेरिमेंटल और ह्यूमन अप्रोच की मदद से इन सॉल्यूशंस को ज्यादा टिकाऊ और इनोवेटिव बनाया जा सकता है. बिजनेस एसेंशियल्स- अब बिजनेस नॉलेज केवल एमबीए ग्रेजुएट्स तक सीमित नहीं है. हर इंजीनियर को मैनेजमेंट की बेसिक जानकारी होनी चाहिए- जैसे SWOT एनालिसिस, फाइनेंशियल प्लानिंग, स्टेकहोल्डर मैनेजमेंट और MoSCoW एनालिसिस. टेक्निकल स्किल्स और बिजनेस अंडरस्टैंडिंग का कॉम्बिनेशन इंजीनियर्स को वर्सटाइल और इंप्रेसिव बनाएगा.

कोर टेक्निकल स्किल्स में ग्लोबल सर्टिफिकेट

इंजीनियरिंग में करियर बनाने के इच्छुक स्टूडेंट्स को विषय की फॉर्मल नॉलेज के साथ ही कोर टेक्निकल स्किल्स भी सीखनी चाहिए. उनमें वैश्विक प्रमाणपत्र (Global Certification) लेकर करियर में ग्रोथ हासिल कर सकते हैं. हिंदुस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस की डीन एकेडमिक्स डॉ. एंजेलिना गीता के मुताबिक, 2030 की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय इंडस्ट्री की जरूरतों को पूरा करने के लिए ये 18 स्किल्स सीख सकते हैं:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग- स्मार्ट सिस्टम और प्रेडिक्टिव मॉडल के लिए. डेटा साइंस और बिग डेटा एनालिटिक्स- बड़े डेटा सेट को संभालना, प्रोसेस और एनालाइज करना. रोबोटिक्स और ऑटोमेशन- ऑटोमेशन सिस्टम और इंडस्ट्रियल रोबोट विकसित करना. इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT)- स्मार्ट सिस्टम, सेंसर नेटवर्क और साइबर-फिजिकल सिस्टम. क्लाउड कंप्यूटिंग और एज कंप्यूटिंग- डिस्ट्रिब्यूटेड कंप्यूटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को मैनेज करना. डिजिटल ट्विन टेक्नोलॉजी- असली सिस्टम के वर्चुअल रेप्लिका बनाना. ब्लॉकचेन और वेब 3 इंजीनियरिंग- सिक्योर डेटा मैनेजमेंट और decentralized एप्लिकेशन.# क्वांटम कंप्यूटिंग (उभरता हुआ क्षेत्र)- अगली पीढ़ी की कंप्यूटिंग शक्ति. साइबरसिक्योरिटी इंजीनियरिंग- जरूरी ढांचे और IoT सिस्टम की सुरक्षा. सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट और लो-कोड/नो-कोड प्लेटफॉर्म. एआर/वीआर/एक्सआर इंजीनियरिंग- इमर्सिव डिजाइन और सिमुलेशन. एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (3D प्रिंटिंग)- प्रोटोटाइप और इंडस्ट्री प्रोडक्टिविटी. स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग और इंडस्ट्री 4.0- सेंसर, एआई और रियल-टाइम मॉनिटरिंग का एकीकरण. नैनोटेक्नोलॉजी और एडवांस्ड मटीरियल्स- हल्के, मजबूत और फंक्शनल मटीरियल का विकास. स्पेस टेक्नोलॉजी और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग- सैटेलाइट और स्पेस सिस्टम. बायोटेक्नोलॉजी और बायोइंजीनियरिंग- हेल्थ और बायोमटीरियल्स में इनोवेशन. न्यूरोइंजीनियरिंग और ह्यूमन-मशीन इंटरफेस- ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस और wearable तकनीक. अंडरवॉटर टेक्नोलॉजी- मरीन माइनिंग और एक्सप्लोरेशन.

Deepali Porwal

Having an experience of more than 10 years, she loves to write on anything and everything related to lifestyle (health, beauty, fashion, travel, astrology, numerology), entertainment and career. She has covered...और पढ़ें

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First Published :

September 15, 2025, 12:12 IST

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