Last Updated:October 19, 2025, 20:02 IST
BARC के साइंटिस्ट छोटे पोर्टेबल न्यूक्लियर रिएक्टर बना रहे हैं, जो जहाजों और इंडस्ट्री में लगेंगे. सरकार एक्ट बदलकर निजी कंपनियों को भी न्यूक्लियर सेक्टर में प्रवेश देगी.

भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों और आधुनिक तकनीक के लिहाज से एक बड़ा कदम आगे बढ़ा रहा है. देश में छोटे, पोर्टेबल न्यूक्लियर रिएक्टर डेवलप किए जा रहे हैं, जिनमें सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें जहाजों पर या अलग-अलग इंडस्ट्री में लगाया जा सकेगा. भारतीय परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) के साइंटिस्ट इस काम में जोरशोर से लगे हुए हैं. पहले दो रिएक्टर पर फोकस है, जिनमें एक की क्षमता 55 मेगावाट और दूसरे की 200 मेगावाट होगी. एक्सपर्ट के मुताबिक, न्यूक्लियर फिशन की मदद से गर्मी पैदा की जाती है, जिसे बाद में बिजली में बदला जाता है. ये रिएक्टर कहीं भी लग सकते हैं, चाहे जहाज हो या फैक्ट्री.
इसका मतलब साफ है कि अब बिजली सिर्फ जमीन पर ही नहीं, बल्कि समुद्र में भी पैदा की जा सकेगी. 200 मेगावाट वाला रिएक्टर इतना पावरफुल है कि किसी बड़ी इंडस्ट्री जैसे सीमेंट मिल या बिजली-खपत वाले यूनिट्स को भी चला सकता है. अधिकारी ने यह भी कहा कि ये रिएक्टर सुरक्षा मानकों के लिहाज से बहुत मजबूत हैं और इन्हें कॉमर्शियल जहाजों में भी लगाया जा सकता है.
क्या सबमरीन में भी लगेंगी
अफसरों ने न्यूक्लियर सबमरीन में इसके इस्तेमाल पर सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा.भारत के पास फिलहाल दो होम-बिल्ट न्यूक्लियर सबमरीन हैं- INS अरिहंत और INS अरिघात, जो 83 मेगावाट के रिएक्टर से चलती हैं. तीसरी न्यूक्लियर सबमरीन INS अरिधमन ट्रायल्स में है. अगर 200 मेगावाट वाले छोटे रिएक्टर को इस्तेमाल में लाया गया, तो यह नौसेना और वाणिज्यिक जहाज दोनों के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है.
एक्ट बदलने की तैयारी में सरकार
सरकार ने यह भी घोषणा की है कि एटॉमिक एनर्जी एक्ट, 1962 में बदलाव करके निजी कंपनियों को सिविल न्यूक्लियर सेक्टर में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी. इसका मतलब है कि अब सिर्फ सरकारी विभाग ही नहीं, बल्कि निजी क्षेत्र भी न्यूक्लियर पावर प्लांट चला सकेगा और न्यूक्लियर फ्यूल के शुरुआती हिस्से को संभाल सकेगा. कहने का मतलब है कि निजी कंपनियों को विदेशी देशों से फ्यूल खरीदने की भी अनुमति दी जा सकती है, साथ ही खर्चा हुआ फ्यूल वापस उसके देश को भेजने की व्यवस्था भी की जा सकती है. इसके साथ ही सिविल लाइबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज (CLND) एक्ट में भी बदलाव किए जा रहे हैं, ताकि न्यूक्लियर उपकरण सप्लायर की जिम्मेदारी केवल कॉन्ट्रैक्ट में तय सीमा तक रहे. नए बदलाव में ‘सप्लायर’ को क्रिटिकल उपकरण प्रदान करने वाला के रूप में परिभाषित किया गया है.
कई चीजें बदल जाएंगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक 100 गीगावाट न्यूक्लियर पावर क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है, जबकि अभी देश की कुल न्यूक्लियर क्षमता सिर्फ 8.8 गीगावाट है. यानी अगले दो दशकों में न्यूक्लियर पावर का हिस्सा भारत की ऊर्जा जरूरतों में सात गुना से अधिक बढ़ेगा. इस नए विकास से कई चीजें बदल सकती हैं. सबसे पहली बात यह कि विदेशी ऊर्जा पर निर्भरता कम होगी. समुद्र में चलने वाले कॉमर्शियल जहाज अब डीजल या भारी ईंधन पर निर्भर नहीं रहेंगे. बिजली-खपत वाले बड़े उद्योग जैसे स्टील, सीमेंट और केमिकल फैक्ट्रियां अपने कम्पैक्ट रिएक्टर से खुद की बिजली बना सकेंगे, जिससे बिजली की कटौती और लागत में कमी आएगी.
कहीं भी पहुंचाई जा सकेगी बिजली
दूसरी बड़ी बात यह है कि ये छोटे रिएक्टर फ्लेक्सिबल और स्केलेबल हैं. यानी इन्हें जरूरत के अनुसार कहीं भी लगाया जा सकता है और बढ़ाया भी जा सकता है. इससे दूरदराज के इलाकों में बिजली पहुंचाना आसान होगा और ग्रामीण या समुद्री क्षेत्रों में ऊर्जा संकट दूर हो सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, ये छोटे रिएक्टर सुरक्षा मानकों पर बहुत कड़े हैं, जिससे हादसे की संभावना बेहद कम है. इसके अलावा, यदि निजी क्षेत्र इसमें शामिल होता है, तो भारत में न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी की प्रतिस्पर्धा और तेजी दोनों बढ़ेंगी.
Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें
Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...
और पढ़ें
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
Location :
Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
October 19, 2025, 20:02 IST