3 नाम, 3 रोल और तिकड़ी पावर, BJP का 'DKP' और 'S' फैक्टर, चालें और चुनौतियां

2 days ago

Last Updated:September 27, 2025, 13:44 IST

Bihar Chunav 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने धर्मेंद्र प्रधान को बिहार का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया गया है, जबकि केशव प्रसाद मौर्य और सी.आर. पाटिल को सह-प्रभारियों की जिम्मेदारी दी गई है. ये फेरबदल केवल संगठनात्मक बदलाव भर नहीं, बल्कि बिहार की सियासत के लिए बड़ा राजनीतिक संदेश भी है. राजनीति के जानकार कहते हैं कि इस तिकड़ी के नामों में छिपे राजनीतिक राज गहरे हैं और इसकी 'मेगा मैसेजिंग' है. आइये जानते हैं कि इस तिकड़ी के पीछे BJP का इरादा क्या है और बिहार में वे कैसे आगे बढ़ने की योजना बना रहे हैं.

3 नाम, 3 रोल और तिकड़ी पावर, BJP का 'DKP' और 'S' फैक्टर, चालें और चुनौतियांभाजपा ने धर्मेंद्र प्रधान को बिहार प्रभारी और केशव प्रसाद मौर्य एवं सीआर पाटिल को सह प्रभारी बनाया है.

पटना. भारतीय जनता पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में बड़ी चाल चली है. धर्मेंद्र प्रधान को प्रभारी नियुक्त किया है, साथ में केशव मौर्य और सी.आर. पाटिल को सह-प्रभारियों की जिम्मेदारी दी है. राजनीति के जानकारों की नजर में भाजपा ने बिहार की तैयारी में एक स्पष्ट संदेश भेजा है. भाजपा की रणनीति साफ दिख रही है कि पार्टी संगठन को अधिक केंद्रित करने की मैसेजिंग के साथ ही जातीय समीकरणों को संतुलित करने की रणनीति के तहत और चुनाव अभियान को अधिक तेज और आक्रामक तौर पर चलाना चाहती है. भाजपा के इस निर्णय के पीछे जातीय संतुलन, संगठन नियंत्रण और केंद्र-राज्य समन्वय का प्रतीक भी है. केशव प्रसाद मौर्य के चेहरे के साथ जहां OBC मोर्चा मजबूत करने की नीति है, वहीं सीआर पाटिल केंद्रीय नियंत्रण सुनिश्चित करेंगे और धर्मेंद्र प्रधान पूरे अभियान का नेतृत्व संभालेंगे. इतना ही नहीं चुनावी मैदान में इस तिकड़ी के साथ-साथ राज्य स्तर पर सम्राट चौधरी जैसे ओबीसी (कोयरी) चेहरे को आगे करना यह संकेत देता है कि पार्टी जातीय समीकरण पर खास ध्यान दे रही है.

नया नेतृत्व, नया संदेश…आखिर क्या बदला है?

बीजेपी की तिकड़ी धर्मेंद्र प्रधान, केशव प्रसाद मौर्य और सीआर पाटिल में धर्मेंद्र प्रधान पर बड़ी जिम्मेवारी है. वह बिहार के प्रभारी बनाए गए हैं. वह इससे पहले भी चुनावी मोर्चों पर प्रभारी रह चुके हैं और उनको बेहतरीन रणनीतिकार माना जाता है. उनकी दक्षता, अनुभव और कार्यक्षमता पर भाजपा नेतृत्व भरोसा करता है. उनको बिहार का प्रभारी बनाकर भेजा जाना और प्रदेश को बाहरी नेतृत्व देना एक संकेत है कि राष्ट्रीय नेतृत्व पार्टी के भीतर स्थानीय विवादों से ऊपर उठकर चुनावी अभियान को आगे ले जाना चाहता है. इसके साथ ही बिहार प्रभारी के रूप में धर्मेंद्र प्रधान को लाकर पार्टी ने दो तरह का संदेश दिया है- एक, अभियान की कमान राष्ट्रीय नेतृत्व के भरोसेमंद हाथों में और दूसरा, ओबीसी-पहचान वाले चेहरों को आगे करके जातीय संतुलन साधने की कोशिश. बता दें कि प्रधान को रणनीतिकार के रूप में देखा जाता है और उन्हें पार्टी के बड़े अभियानों में तैनात कर जीत का रिकॉर्ड बनाने की उम्मीद है.

केशव प्रसाद मौर्य: OBC पर फोकस और क्षेत्रीय विस्तार

केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री हैं और भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख ओबीसी चेहरा (OBC Face) हैं और उनकी तैनाती साफ तौर पर ओबीसी आउटरीच की दिशा में है. उनको बिहार का सह प्रभारी बनाकर भाजपा ने अपनी रणनीति स्पष्ट कर दी है कि वह बिहार में OBC वोटों को मजबूत करना चाहती है. मौर्य की काबिलियत संगठन को जमीन से जोड़कर धरातल पर मजबूत करने की रही है. वह संभवत: स्थानीय नेतृत्वों को जोड़ने और बूथ स्तर पर जन संपर्क बढ़ाने की भूमिका निभाएंगे.

सीआर.पाटिल: संगठन और जातीय पहचान का मिक्सचर

सीआर पाटिल पाटिल मूलतः महाराष्ट्र-जलगांव से हैं, जहां ‘पाटिल’ उपाधि मुख्य रूप से मराठा समुदाय से जुड़ी हुई है. गुजरात की राजनीति में उनकी भूमिका काफी सक्रिय रही है और वह पटेल यानी पाटीदार समुदाय, जो बिहार में मोटे तौर पर कुर्मी पहचान के साथ भी जुड़ी है, उनको भेजा गया है. इसके साथ ही उनको पूर्व अनुभव और चुनावी-प्रबंधन के लिए उन्हें पार्टी का भरोसेमंद व्यवस्थित नेता माना जाता है. उनको बिहार का सह-प्रभारी बनाना भी भाजपा के रणनीतिक इरादों को स्पष्ट करता है. वह संगठनात्मक नियंत्रण, संसाधन प्रबंधन और स्थानीय तौर पर ओबीसी पहचान से जुड़ी प्रासंगिक सामाजिक पहचान बिहार जैसे जटिल जातीय माहौल में अलग तरह का राजनीतिक संतुलन जोड़ सकती है.

सम्राट चौधरी का चेहरा और जातीय संतुलन की रणनीति

दूसरी ओर राज्य स्तरीय सेट-अप में सम्राट चौधरी को आगे करना भाजपा की रणनीति का अहम हिस्सा है. चौधरी का संबंध कोइरी (कुशवाहा) समूह से है और वे बिहार में ओबीसी के प्रभावी चेहरे रहे हैं. पार्टी के लिए यह जरूरत है कि केंद्रीय-नेतृत्व और राज्य-चेहरों का मेल बैठे जिसके लिए सम्राट चौधरी जैसे स्थानीय पिछड़े वर्ग के नेता आवश्यक बताए जाते हैं. वहीं, भाजपा इस तिकड़ी के माध्यम से ओबीसी वोटों को मजबूत करने के साथ ही स्थानीय संगठन को सुदृढ़ करने और विरोधी दलों को पीछे छोड़ने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ी है.

जमीन पर राजनीतिक रणनीति, मैसेजिंग और बूथ-मिशन

दरअसल, बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण का बड़ा महत्व है. कुशवाहा-कोइरी, कुर्मी, यादव, दलित जैसे वोट समूह चुनावी समीकरण को गहराई तक प्रभाव छोड़ते हैं. धर्मेंद्र प्रधान, केशव मौर्य और सी.आर. पाटिल की यह तिकड़ी सिर्फ नामों का संयोग नहीं, बल्कि बीजेपी की बिहार चुनाव में नई रणनीति है. एक ओर उनमें जातीय संतुलन, दूसरी ओर संगठन नियंत्रण और केंद्रीय तालमेल का मिश्रण है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी की इस तिकड़ी को इन समीकरणों को संतुलित करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. बहरहाल, आने वाले महीनों में यह देखने लायक होगा कि यह रणनीति कितनी असरदार साबित होती है.

Vijay jha

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें

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First Published :

September 27, 2025, 13:44 IST

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