Last Updated:October 01, 2025, 12:38 IST
पति-पत्नी के बीच विवाद पर दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला दिया है.दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल ईएमआई चुकाने के आधार पर पति संयुक्त रूप से खरीदी गई और पति-पत्नी दोनों के नाम पर पंजीकृत संपत्ति पर एकमात्र स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता. यह टिप्पणी जस्टिस अनिल क्षत्रपाल और हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने 22 सितंबर को की. कोर्ट ने कहा कि जब संपत्ति पति-पत्नी के संयुक्त नाम पर पंजीकृत है, तो केवल यह तर्क कि पति ने ही खरीद के लिए राशि दी, उसे एकमात्र स्वामित्व का दावा करने की अनुमति नहीं देता.
कोर्ट ने यह भी बताया कि ऐसा दावा बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम की धारा 4 का उल्लंघन होगा, जो किसी व्यक्ति को उस संपत्ति पर अधिकार लागू करने के लिए मुकदमा, दावा या कार्रवाई करने से रोकता है जो किसी अन्य के नाम पर पंजीकृत है. मामले के अनुसार याचिकाकर्ता पत्नी ने हाईकोर्ट में दावा किया कि संयुक्त संपत्ति से प्राप्त अधिशेष राशि का 50 प्रतिशत हिस्सा उसका है, क्योंकि यह उसका स्त्रीधन (हिंदू कानून के तहत महिला की पूर्ण और विशेष संपत्ति) है और इसलिए उसका उस पर विशेष स्वामित्व है.
याचिका के अनुसार दंपति की शादी 1999 में हुई थी और उन्होंने 2005 में मुंबई में संयुक्त रूप से एक मकान खरीदा था. हालांकि 2006 में वे अलग हो गए और उसी साल पति ने तलाक के लिए अर्जी दायर की, जो अभी तक लंबित है. कोर्ट का यह फैसला संयुक्त संपत्ति के स्वामित्व को लेकर महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि केवल वित्तीय योगदान के आधार पर कोई एक पक्ष पूर्ण अधिकार का दावा नहीं कर सकता. इस निर्णय से उन मामलों में स्पष्टता आएगी, जहां संयुक्त रूप से खरीदी गई संपत्ति के स्वामित्व को लेकर विवाद उत्पन्न होता है. कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि कानूनी रूप से पंजीकृत संयुक्त स्वामित्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, भले ही एक पक्ष ने पूरी राशि का भुगतान किया हो. यह फैसला वैवाहिक संपत्ति विवादों में महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
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First Published :
October 01, 2025, 12:38 IST

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