Exclusive: चीन के वाटर बम का S-400 वाला जवाब, अब उछल-कूद नहीं कर पाएगा ड्रैगन!

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Last Updated:September 15, 2025, 12:38 IST

 चीन के वाटर बम का S-400 वाला जवाब, अब उछल-कूद नहीं कर पाएगा ड्रैगन!चीन के वाटर बम के जवाब में भारत ने अरुणाचल में अपनी बांध का निर्माण शुरू कर दिया है.

भारत और चीन दो एशियाई ताकतें हैं. खुद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पिछले दिनों भारत को हाथी बताया था. उन्होंने कहा था कि मौजूदा वक्त हाथी और ड्रैगन के एक साथ डांस करने का है. यानी दोनों मुल्क अगर मिल जाएं तो पूरी दुनिया को अपने इशारे पर नचा सकते हैं. लेकिन, यह इतना आसान नहीं है. ये बातें जितनी बड़ी हैं उतनी ही गहरी इन दोनों देशों के बीच अविश्वास की खाई है. हर भारतीय यह जानता है कि चीन ने बीते 70 सालों में बार-बार भारत के साथ छल किया है. ऐसे में उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों पर भरोसा करना कुंए में कूदने जैसा है.

भारत सरकार भी इस बात को अच्छी तरह जानती है. अब देखिए ना… बीते कुछ महीनों से भारत के साथ दोस्ती की बात कर करने वाला चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे ऊंचा और बड़ा बांध बना रहा है. इस बांध की वजह से भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों में ब्रह्मपुत्र के बहाव पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. साथ ही चीन अपनी बांध के जरिए भारत के सामने हमेशा एक वाटर बम लेकर बैठा रहेगा. भारत की आपत्ति और विरोध के बावजूद वह इस बांध पर काम शुरू कर चुका है. जानकार बता रहे हैं कि इस बांध की वजह से भारत के पूरे पूर्वोत्तर के इलाके पर हमेशा खतरा मंडराता रहेगा. ऐसे में भारत को भी इसके लिए उपाय करने पर मजबूर होना पड़ा. यानी अब भारत ने भी चीन के इस वाटर बम से बचाव के लिए एस-400 जैसे सुरक्षा कवच को विकसित करने का फैसला किया है. आज सब तो ऑपरेशन सिंदूर के वक्त भारतीय सुरक्षा कवच एस-400 से परिचित तो हो ही गए होंगे.

बांध के बदले बांध

भारत का यह सुरक्षा कवच भी बांध के बदले बांध है. भारत ने भी अपनी सबसे ऊंची बांध- अरुणाचल प्रदेश में डिबांग मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है. सरकारी कंपनी एनएचपीसी लिमिटेड ने अब मुख्य बांध के निर्माण के लिए 17,069 करोड़ रुपये की वैश्विक बोली जारी की है. यह बांध चीन के बांध से अचानक पानी छोड़े जाने की स्थिति में एक बफर का काम करेगी और भारत में बाढ़ को रोकेगी.

सीएनएन-न्यूज18 ने इस भारतीय दस्तावेज को विशेष रूप से हासिल किया है. इस बांध के निर्माण में 91 महीने का समय लगेगा. इस डिबांग बांध को 2032 तक बनने की उम्मीद है. यह भारत की रणनीतिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है. अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू हाल ही में मिनली गांव में साइट का दौरा कर रहे हैं, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 2,880 मेगावाट डिबांग मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी.

बांध निर्माण में तेजी

बांध निर्माण में यह तेजी जुलाई में आई रिपोर्ट के बीच आई है, जिसमें कहा गया था कि चीन ने तिब्बती क्षेत्र में दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत बांध का निर्माण शुरू कर दिया है. 2020 के गलवान संघर्ष के बाद इस साल भारत-चीन संबंधों में कुछ नरमी आई है. पीएम मोदी ने पिछले दिनों ही चीन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक की. लेकिन चीनी बांध भारत के लिए प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है.

चीन का वाटर बम

अरुणाचल प्रदेश के सीएम खांडू ने पहले चेतावनी दी थी कि चीन के बांध निर्माण के कारण सियांग और ब्रह्मपुत्र नदियां काफी सूख सकती हैं और चीन इसे वाटर बम की तरह इस्तेमाल कर सकता है. बांध से अचानक पानी छोड़ने पर भारतीय क्षेत्र में बाढ़ आ सकती है. यह चिंता इसलिए भी गंभीर है क्योंकि यारलुंग त्संग्पो नदी तिब्बत से निकलकर अरुणाचल प्रदेश में सियांग के रूप में प्रवेश करती है, जहां यह डिबांग नदी से मिलकर ब्रह्मपुत्र बनती है.

डिबांग मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट क्यों महत्वपूर्ण है?

एनएचपीसी लिमिटेड द्वारा जारी बोली दस्तावेज के अनुसार- डिबांग मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट के निर्माण के दो मुख्य उद्देश्य हैं- बिजली उत्पादन और बाढ़ नियंत्रण. यह प्रोजेक्ट अरुणाचल प्रदेश के लोअर डिबांग वैली जिले में डिबांग नदी पर बनाया जा रहा है. 278 मीटर ऊंचा यह बांध भारत का सबसे ऊंचा कंक्रीट-ग्रेविटी बांध होगा, जो वार्षिक 11,223 मिलियन यूनिट बिजली पैदा करेगा. डिबांग नदी ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली की प्रमुख सहायक नदी है, जो पांडू में ब्रह्मपुत्र के वार्षिक रनऑफ का लगभग 7 फीसदी योगदान देती है. यह नदी हिमालय की दक्षिणी ढलान से निकलती है, जो तिब्बत सीमा के करीब है और उत्तर से दक्षिण की ओर बहते हुए डिबांग वैली जिले से गुजरती है. अंत में असम के सादिया के पास लोहित नदी से मिलती है. डिबांग का कुल लंबाई स्रोत से संगम तक 195 किलोमीटर है. प्रोजेक्ट की कुल लागत 31,875 करोड़ रुपये है.

बाढ़ नियंत्रण के लिए

मानसून में रिजर्वायर को फुल रिजर्वायर लेवल से नीचे रखकर 1,282 मिलियन क्यूबिक मीटर की क्षमता बनाई जाएगी. यह न केवल बाढ़ को नियंत्रित करेगा, बल्कि चीन की बांध से आने वाले अचानक पानी के प्रवाह को बफर के रूप में अवशोषित करेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रोजेक्ट भारत को जल सुरक्षा में आत्मनिर्भर बनाएगा, खासकर जब चीन ऊपरी धारा पर नियंत्रण कर सकता है. सीएम खांडू ने हाल ही में एनएचपीसी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर संजय कुमार सिंह के साथ साइट पर तैयारी कार्यों का निरीक्षण किया. उन्होंने कहा कि 2032 तक इस मेगा प्रोजेक्ट को पूरा करने की प्रतिबद्धता है. यह प्रोजेक्ट 2019 में मोदी सरकार द्वारा पुनः मंजूरी दी गई थी, लेकिन स्थानीय विरोध और फंडिंग की कमी से देरी हुई. अब केंद्र सरकार ने फंडिंग बढ़ाकर प्रोजेक्ट को गति दी है.

चीन क्या कर रहा है?

जुलाई 2025 में एक रिपोर्ट के अनुसार चीनी अधिकारियों ने तिब्बती क्षेत्र में यारलुंग त्संग्पो नदी पर दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत बांध का निर्माण शुरू कर दिया है. इसे पूरा होने पर मोटुओ हाइड्रोपावर स्टेशन कहा जाएगा, जो थ्री गॉर्जेस बांध से आगे निकल जाएगा. निर्माण 19 जुलाई 2025 को आधिकारिक रूप से शुरू हुआ और 2033 तक व्यावसायिक संचालन की योजना है. यह मेडोग काउंटी में निंगत्री प्रिफेक्चर में बनाया जा रहा है, जो भारतीय सीमा राज्य अरुणाचल प्रदेश के पास है. यह प्रोजेक्ट 60,000 मेगावाट की क्षमता वाला होगा, जो वार्षिक 300 बिलियन किलोवाट-घंटे बिजली पैदा करेगा.

संतोष कुमार

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...और पढ़ें

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...

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First Published :

September 15, 2025, 12:38 IST

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