Explainer : भारत भी कुछ सालों में होगा 'वृद्धों का देश', तब क्या होगा असर

8 hours ago

Last Updated:March 03, 2025, 17:54 IST

"द इकोनामिस्ट" मैगजीन की ताजातरीन रिपोर्ट कहती है कि भारत अब बूढे लोगों का बड़ा और बढ़ता हुआ समूह है. करीब 15 करोड़ लोग 60 या उससे ज्यादा आयु के हैं. इससे आने वाले सालों में देश के विकास पर क्या असर होगा.

 भारत भी कुछ सालों में होगा 'वृद्धों का देश', तब क्या होगा असर

हाइलाइट्स

भारत में 60 वर्ष से अधिक उम्र के 15 करोड़ लोग हैं2050 तक भारत की 21% आबादी बूढ़ी हो जाएगी.बूढ़ी आबादी से आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ेगा.

दुनिया की जानी-मानी मैगजीन “द इकोनामिस्ट” की ताजातरीन रिपोर्ट कहती है कि भारत अब बूढे लोगों का बड़ा और बढ़ता हुआ समूह है. करीब 15 करोड़ लोग 60 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के हैं. इससे आने वाले सालों में देश के विकास पर क्या असर होगा. वर्ष 2050 तक भारत की आबादी का 21 फीसदी हिस्सा यानि 35 करोड़ आबादी बूढ़ी हो जाएगी. प्रजनन दर लगातार कम हो रही है. इससे भारत के विकास पर क्या असर पड़ेगा. क्या ये पहलू भारत के धनी और विकसित देश बनने में असर डालेगा.

भारतीय गणतंत्र के 75 साल पूरे हो चुके हो चुके हैं. उस वर्ष भारत में जीवन प्रत्याशा 41.2 वर्ष थी. अब 2023 तक जीवन प्रत्याशा 72 तक पहुंच गई. ये विश्व औसत से सिर्फ़ एक वर्ष कम है. जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) एक सांख्यिकीय माप है जो किसी विशेष जनसंख्या के लोगों के औसत जीवनकाल को बताती है. इसे भारत की विशाल और विविधतापूर्ण आबादी के लिए उपलब्धि कहना चाहिए.

फिलहाल भारत की 140 करोड़ की आधी आबादी 29 वर्ष से कम आयु की है. यह बड़ा और बढ़ता हुआ कार्यबल आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है. थिंक-टैंक मैकिंसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट ( MGI ) का अनुमान है कि इसने पिछले 25 वर्षों में प्रति व्यक्ति जीडीपी वृद्धि में सालाना 0.7 प्रतिशत अंक जोड़े हैं.

इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट कहती है अपने इतिहास में पहली बार भारत में वृद्ध लोगों का एक बड़ा और बढ़ता हुआ समूह है. करीब 15 करोड़ लोग 60 या उससे अधिक आयु के हैं. 2050 तक यह हिस्सा लगभग 21% या लगभग 35 करोड़ का हो जाएगा. यानि मौजूदा अमेरिकी आबादी से ज्यादा.

सवाल – आबादी का असर देश की जीडीपी पर किस तरह पड़ता है?
– देश की आबादी का सीधा असर जनसांख्यिकी लाभांश पर पड़ता है. अगली तिमाही से जनसांख्यिकीय लाभांश कम हो जाएगा, जिससे हर साल जीडीपी वृद्धि में केवल 0.2 प्रतिशत अंक ही जुड़ पाएंगे. इकोनामिस्ट ने एमजीआई की अनु मडगावकर के हवाले से कहा, “हमारे पास अमीर बनने के लिए सिर्फ़ एक पीढ़ी है”. उसके बाद, “आपके पास एक ऐसा देश होगा जिसकी आयु संरचना उत्तरी अमेरिका जैसी होगी, लेकिन प्रति व्यक्ति जीडीपी का एक अंश होगा.”

सवाल – अगर भारत में वृद्धों की आबादी बढ़ने लगेगी तो क्या फर्क पड़ेगा?
– भारत अगर अमीर होने से पहले ही बूढ़ा हो जाए तो वह विकसित देश बनने के सपने से बहुत दूर होगा. ज्यादा लोग रिटायर होने के करीब बढ़ रहे हैं. भारत की प्रजनन दर भी कम हो रही है. इसके गिरकर 2.0 से भी कम होने की आशंका रिपोर्ट्स में जताई जा चुकी है. अभी भारत में एक बुजर्ग पर 9.8 व्यस्क लोग हैं लेकिन ये अब घटेंगे. यह संख्या 2050 तक वर्तमान यूरोप के स्तर से कुछ ऊपर हो जाएगी. सदी के अंत तक 1.9 तक गिर जाएगी, जो आज के जापान के बराबर है.

सवाल – इसका और क्या असर सामाजिक तौर पर पड़ेगा?
– बुजुर्गों की देखभाल के लिए कामकाजी उम्र के वयस्कों की संख्या कम होने और बचत के लिए बहुत कम साधन होने के कारण भारत के बुजुर्गों को तंगहाली और अकेलेपन का सामना करना पड़ सकता है. स्वास्थ्य सेवा जैसी सार्वजनिक सेवाओं पर बोझ पड़ सकता है. चूंकि व्यक्तिगत और सरकारी आय का एक बड़ा हिस्सा बुजुर्गों की देखभाल में खर्च हो जाता है, इसलिए युवा पीढ़ी को कम बचत और निवेश की आशंका का सामना करना पड़ेगा.

महिलाएं, जो पुरुषों से ज़्यादा जीती हैं, उन्हें ज़्यादा तकलीफ़ हो सकती है. भारत की तेज़ी से बढ़ती बुज़ुर्ग आबादी के लिए सरकार के पास ढेरों नीतियां हैं लेकिन उनमें से कई सिर्फ़ कागज़ों पर ही हैं. जो मौजूद हैं, वे अक्सर अपर्याप्त होती हैं.

सवाल – जब किसी देश की बड़ी आबादी बूढ़ी होने लगती है उससे देश के विकास पर क्या फर्क पड़ता है?
– जब किसी देश की बड़ी आबादी बूढ़ी होने लगती है, तो उसके विकास पर कई तरह के प्रभाव पड़ सकते हैं. ये प्रभाव आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर देखे जा सकते हैं.

सवाल – आर्थिक तौर पर ये प्रभाव किस तरह से पड़ने लगते हैं?
– कार्यबल की कमी आ जाती है. युवा आबादी की तुलना में बुजुर्ग कामकाजी नहीं होते, जिससे उत्पादकता घट सकती है. पेंशन, स्वास्थ्य सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा पर सरकार का खर्च बढ़ता है. युवा लोग नए विचारों और तकनीकी विकास में अधिक योगदान देते हैं, जो कम हो सकता है. जब कामकाजी लोगों की संख्या कम हो जाती है, तो टैक्स कलेक्शन भी प्रभावित होता है, जिससे सरकार की आमदनी घट सकती है.

सवाल – ज्यादा आबादी बूढ़ी होने पर सामाजिक होने पर क्या असर होने लगता है?
– स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ता है. बुजुर्गों की संख्या बढ़ने से अस्पतालों, दवाइयों और देखभाल सेवाओं की मांग बढ़ जाती है. बुजुर्गों की देखभाल के लिए परिवारों को अधिक समय और धन खर्च करना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित हो सकती है. युवा रोजगार की तलाश में अन्य देशों की ओर पलायन कर सकते हैं, जिससे कार्यबल की समस्या और गंभीर हो सकती है.

सवाल – क्या इससे देश की राजनीतिक माहौल पर भी कोई प्रभाव पड़ता है?
सरकार को अधिक पेंशन और वृद्धावस्था योजनाओं पर ध्यान देना पड़ता है. बूढ़ी आबादी आमतौर पर परंपरागत विचारों की ओर झुकाव रखती है, जिससे नई नीतियों और सुधारों में बाधा आ सकती है. अगर युवा जनसंख्या कम हो और रोजगार के अवसर घटें, तो असंतोष बढ़ सकता है.

सवाल – इससे कैसे निपटा जा सकता है?
– आप्रवासन नीति में सुधार करके यानि युवा प्रवासियों को देश में आकर्षित कर कार्यबल को कैसे बढ़ाया जाए, ये प्लानिंग अभी से शुरू करके. वित्तीय और स्वास्थ्य योजनाओं को मजबूत बनाकर बुजुर्गों की देखभाल को टिकाऊ बनाया जा सकता है. इस लांगटर्म योजना पर भी तुरंत ध्यान देने की जरूरत होगी. ऑटोमेशन और एआई जैसी तकनीकों को अपनाकर श्रमशक्ति की कमी को पूरा किया जा सकता है.और सबसे जरूरी बात ये है कि जन्मदर बढ़ाने के उपाय करने होंगे. सरकार परिवार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दे सकती है लेकिन ये काम इस दौर में आर्थिक सहायता और बेहतर बाल देखभाल सेवाओं के जरिए ही होगा.

सवाल – किन देशों में ये स्थिति आ चुकी है यानि आबादी तेजी से बूढ़ी हो रही है?
– कई देश पहले ही तेजी से बूढ़ी होती आबादी की समस्या का सामना कर रहे हैं लेकिन ये देश आमतौर पर विकसित अर्थव्यवस्थाएं हैं, जहां जन्म दर कम हो गई है और जीवन प्रत्याशा बढ़ गई है
1. जापान- जापान में इस समय 30 फीसदी से ज्यादा आबादी बूढ़ी हो चुकी है, उनकी 65 वर्ष से अधिक है. इससे वहां कार्यबल की भारी कमी रही है. पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं पर ज्यादा दबाव आ चुका है. जनसंख्या में भी गिरावट की आशंका है. वहां की आबादी 12.5 करोड़ से घटकर 2060 तक 8 करोड़ होने की आशंका है. जापान इससे निपटने के लिए रोबोटिक्स और AI तकनीक के इस्तेमाल में लग गया है. विदेशी श्रमिकों को आकर्षित करने की नीति बना रहा है.

2. इटली – इटली में बूढ़ी आबादी करीब 24 फीसदी हो चुकी है. जन्म दर बहुत कम (1.2 बच्चे प्रति महिला) है. युवा वर्ग के विदेश पलायन कर रहे हैं. आर्थिक मंदी के साथ सामाजिक सुरक्षा प्रणाली पर दबाव है.

3. जर्मनी – बूढ़ी आबादी 22% है. कुशल श्रमिकों की कमी हो चुकी है. पेंशन सिस्टम पर भारी बोझ के साथ आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा है. इसी वजह से जर्मनी अब भारत, तुर्की, पोलैंड आदि से श्रमिक बुलाने की नीतियां बना रहा है. डिजिटल और ऑटोमेशन सेक्टर को बढ़ावा देने में लगा है.

4. दक्षिण कोरिया – 20 फीसदी आबादी बूढ़ी हो चुकी है. यहां दुनिया की सबसे कम जन्म दर (0.72 बच्चे प्रति महिला) है. कार्यबल क्षमता तेजी से घट रही है. युवा विवाह नहीं कर रहे और ना ही परिवार शुरू करना चाह रहे. वहां भी आर्थिक मदद देकर शादी और बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा. विदेशी प्रवासियों को अवसर दिया जा रहा.

5. चीन – चीन में बूढ़ी आबादी 21 विजय हो चुकी है. यानि आबादी का ये हिस्सा 60 वर्ष से अधिक उम्र का हो चुका है. हालांकि ये दशकों तक चली “एक बच्चा नीति” का असर है. चूंकि श्रमशक्ति कम हो रही है लिहाजा श्रमशक्ति की कमी से आर्थिक मंदी की आशंका है. बढ़ते बुजुर्गों की देखभाल का बोझ अलग है. जन्म दर बढ़ाने के लिए सरकार प्रोत्साहन दे रही है. सरकार सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने पर विचार कर रही है.
यही हाल फ्रांस, स्पेन और कनाडा का है. ये देश प्रवासियों को स्वीकार कर इस प्रभाव को कम कर रहे हैं.

Location :

Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh

First Published :

March 03, 2025, 17:54 IST

homeknowledge

Explainer : भारत भी कुछ सालों में होगा 'वृद्धों का देश', तब क्या होगा असर

Read Full Article at Source